उन्होंने अनुभूति से प्रेरणा पायी थी, अनुभूति को ही काव्यात्मक अभिव्यक्ति देना उन्होंने अपना ध्येय बनाया।एक प्रकाशन तेरा हार पहले भी प्रकाशित हो चुका था, पर बच्चन का पहला काव्य संग्रह 1935 ई. में प्रकाशित मधुशाला से ही माना जाता है। इसके प्रकाशन के साथ ही बच्चन का नाम एक गगनभेदी रॉकेट की तरह तेज़ी से उठकर साहित्य जगत पर छा गया।
मधुबाला, मधुशाला और मधुकलश-एक के बाद एक, ये तीनों संग्रह शीघ्र ही सामने आ गये हिन्दी में जिसे हालावाद कहा गया है। ये उस काव्य पद्धति के धर्म ग्रन्थ हैं। उस काव्य पद्धति के संस्थापक ही उसके एकमात्र सफल साधक भी हुए, क्योंकि जहाँ बच्चन की पैरोडी करना आसान है, वहीं उनका सच्चे अर्थ में, अनुकरण असम्भव है।
अपनी सारी सहज सार्वजनीनता के बावजूद बच्चन की कविता नितान्त वैयक्तिक, आत्म-स्फूर्त और आत्मकेन्द्रित है।बच्चन ने इस हालावाद के द्वारा व्यक्ति जीवन की सारी नीरसताओं को स्वीकार करते हुए भी उससे मुँह मोड़ने के बजाय उसका उपयोग करने की, उसकी सारी बुराइयों और कमियों के बावज़ूद जो कुछ मधुर और आनन्दपूर्ण होने के कारण गाह्य है, उसे अपनाने की प्रेरणा दी।