कदम दो चार चलता हूँ, मुकद्दर रूठ जाता है,
हर इक उम्मीद से रिश्ता हमारा टूट जाता है,
जमाने को सम्भालूँ गर तो तुमसे दूर होता हूँ,
तेरा दामन सम्भालूँ तो, जमाना छूट जाता है..।।
कदम दो चार चलता हूँ, मुकद्दर रूठ जाता है,
हर इक उम्मीद से रिश्ता हमारा टूट जाता है,
जमाने को सम्भालूँ गर तो तुमसे दूर होता हूँ,
तेरा दामन सम्भालूँ तो, जमाना छूट जाता है..।।