एक बार बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था। राजा टोडरमल, राजा मानसिंह, तानसेन, राजा बीरबल और बाकी नवरत्नों सहित अन्य सभासद बैठे हुए थे।
अचानक अकबर को न जाने क्या सूझा कि उन्होंने एक अटपटा सवाल बीरबल की ओर दाग दिया। बोले, `बीरबल, तुम अपने आपको बहुत चतुर समझते हो तो बताओ कि हथेली पर बाल क्यों नहीं होते ?`
बीरबल समझ गए कि बादशाह आज फिर उनसे ठिठोली करने के मूड में हैं पर उन्होंने बड़े ही शांतचित्त होकर पूछा, `महाराज, किसकी हथेली में ?`
अकबर ने जवाब दिया, `मेरी हथेली में …`
बीरबल ने जवाब दिया, `महाराज, क्योंकि आप दान बहुत देते हैं इसीलिए आपकी हथेली पर बाल नहीं हैं।`
अकबर ने फिर पूछा, `अच्छा, चलो मैं दान देता हूँ इसलिए मेरी हथेली पर बाल नहीं हैं, पर तुम्हारी हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं ?`
बीरबल ने फिर तपाक से जवाब दिया, `महाराज, आप दान देते हैं और मैं दान लेता हूँ इसलिए मेरी हथेली पर बाल नहीं हैं।`
बीरबल की बात सुनकर अकबर चक्कर में आ गया पर उसने हार नहीं मानी। उसने फिर पूछा, `चलो यह बात तो समझ में आ गई कि मेरी और तुम्हारी हथेली पर बाल क्यों नहीं हैं पर ये तो बताओ कि यहाँ जो इतने दरबारी बैठे हैं उन सबकी हथेलियों पर बाल क्यों नहीं हैं ?`
बीरबल हाथ जोड़कर बोले, `अन्नदाता, सीधी सी बात है। जब आप दान देते हैं और मैं दान लेता हूँ तो इन दरबारियों से देखा नहीं जाता। इसलिए मारे जलन के हथेलियाँ मलते रहते हैं, इसीलिए इनकी हथेलियों पर भी बाल नहीं हैं।`
अब अकबर समझ चुका था कि बीरबल को बातों में हराना मुमकिन नहीं है। वह बहुत प्रसन्न हुआ और अपने गले से सोने की माला उतारकर उन्हें इनाम में दे दी।