मैं औऱ मेरी तनहाई!

मैं औऱ मेरी तनहाई! मैं औऱ मेरी तनहाई,
अक्सर ये बाते करते हैं;

ज्यादा पीऊं या कम,
व्हिस्की पीऊं या रम;

या फिर तौबा कर लूं,
कुछ तो अच्छा कर लूं;

हर सुबह तौबा हो जाती है,
शाम होते होते फिर याद आती है;

क्या रखा है जीने में,
असल मजा है पीने में;

फिर ढक्कन खुल जाता है,
फिर नामुराद जिंदगी का मजा आता है;

रात गहराती है,
मस्ती आती है;

कुछ पीता हूं,
कुछ छलकाता हूं; 

कई बार पीते पीते,
लुढ़क जाता हूं;

फिर वही सुबह,
फिर वही सोच;

क्या रखा है पीने में,
ये जीना भी है कोई जीने में;

सुबह कुछ औऱ,
शाम को कुछ औऱ;

मैं औऱ मेरी तनहाई,
अक्सर ये बाते करते हैं।

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