HOMEMADE REMEDIES FOR TUBERCULOSIS (TB) :- तपेदिक को राजयक्ष्मा या टी.बी. भी कहा जाता है| यह एक बड़ी भयानक बीमारी है| आम जनता इसका नाम लेने से भी डरती है| जिस परिवार में यह रोग हो जाता है, उसकी हालत बड़ी दयनीय हो जाती है| किसी समय यह रोग राजा-महाराजाओं को होता था क्योंकि वे विलासितापूर्ण जीवन बिताया करते थे|
यह विलासिता की सबसे बड़ी दुश्मन है| लेकिन आजकल यह रोग आम जनता में भी फैल रहा है| पौष्टिक भोजन की कमी, प्रदूषित वातावरण तथा अत्यधिक वीर्य नष्ट करने से इस रोग के कीटाणु शरीर को दीमक की तरह चाट जाते हैं| इसलिए इसके विभिन्न पहलुओं पर विचार करना जरूरी है|
यह रोग सांस की वायु, खान-पान तथा गहरे मेल-जोल से भी एक से दूसरे व्यक्ति को लग जाता है| दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं की यह एक संक्रामक व्याधि है| इसके जीवाणु चारों ओर वायु में मंडराते रहते हैं और एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाते हैं| यह रोग धातुओं की कमी से होता है| जब शरीर की स्वाभाविक क्रियाओं में कोई खामी उत्पन्न हो जाती है तो यह रोग लग जाता है|
तपेदिक (टी.बी.) का कारण :- मनुष्य की पाचन क्रिया के मन्द हो जाने पर भोजन का रस ठीक प्रकार से नहीं बन पाता या जो रस बनता है, वह थोड़ी मात्रा में होता है| फिर वह कफ के रूप में बदलकर रसवाहिनी नाड़ियों में रूककर फेफड़ों की क्रियाशीलता रोक देता है, जिस कारण व्यक्ति को तपेदिक या क्षय रोग की शिकायत हो जाती है| अधिक मैथुन करने से वीर्य नष्ट हो जाता है| अत: खाली स्थान में वायु क्रुद्ध होकर वीर्य को सुखा देती है और क्षय रोग में बदल देती है|
इस रोग में पहले श्वास फूलता है, खांसी होती है और धीरे-धीरे अग्नि मंद पड़ जाती है| रोगी की आंखों से नींद गायब हो जाती है| यह रोग वंश परम्परागत भी होता है| जहां धूल अधिक होती है तथा वायु और प्रकाश की कमी होती है, वहां यह रोग बहुत जल्दी आक्रमण करता है| इसके अलावा अधिक मात्रा में शराब तथा मादक पदार्थों का सेवन करने से शरीर दुर्बल होकर तपेदिक का शिकार हो जाता है|
तपेदिक (टी.बी.) की पहचान :- इस रोग में रोगी की पसलियों तथा कंधे में दर्द होता है| हाथ पैरों में जलन एवं शरीर में धीमा बुखार-सा बना रहता है| भोजन करने की इच्छा नहीं होती| खांसी हर समय आती रहती है| खांसी के साथ खून भी आता है| श्वास तथा गले की आवाज फट जाती है| कुछ रोगियों को पतले दस्त, सिर में भारीपन और शरीर टूटने की भी शिकायत होती है| इससे शरीर दिन-प्रतिदिन कमजोर होता चला जाता है| शारीरिक दुर्बलता, असहिष्णुता, बेचैनी, मानसिक अस्थिरता, पाचन-संस्थान के विकार, वजन घटते जाना, नाड़ी का आधिक तेज चलना, रात में अधिक पसीना आना तथा सदैव बुखार रहना इसके सामन्य लक्षण हैं|
तपेदिक (टी.बी.) के घरेलु नुस्खे इस प्रकार है:- बकरी का दूध और शहद:- बकरी का दूध तथा शहद नियमित रूप से लेने से क्षय रोग कम होता है| फिर धीरे-धीरे चला जाता है|
केला :- दो पके केलों के बीच में जरा-सा खाने वाला चूना रखकर चार माह तक नित्य सेवन करें|
अनारदाना, पीपल, पीपरामूल, धनिया, कालीमिर्च, बंसलोचन, दालचीनी और तेजपात :- अनारदाना, पीपल, पीपरामूल, धनिया, कालीमिर्च, बंसलोचन, दालचीनी तथा तेजपात – सबको 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| 4 ग्राम चूर्ण दिन में भोजन के बाद शहद के साथ कुछ महीनों तक सेवन करें|
गुलकंद :- भोजन के बाद गुलकंद खाएं|
बेल और पानी :- बेल की सूखी गिरी 100 ग्राम की मात्रा में लेकर आधा किलो पानी में पकाएं| जब पानी 25 ग्राम रह जाए तो उसमें मिश्री डालकर खाएं| इसका कुछ दिनों तक लगातार सेवन करें|
बकरी का दूध और लहसुन :- बकरी के दूध में लहसुन की दो कलियां नित्य औटाकर पिएं|
अंडा, मक्खन और शहद :- प्रतिदिन दो अण्डे, 10 ग्राम मक्खन, शहद तथा पौष्टिक फल खाने से रोग के कीटाणु नष्ट होने लगते हैं| धीरे-धीरे तपेदिक चली जाती है|
लहसुन, बादाम और शहद :- दो कलियां लहसुन तथा चार बादाम – दोनों की चटनी बनाकर 10 ग्राम शुद्ध शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करें|
पीपल और दूध :- पीपल के पत्तों को जलाकर चूर्ण बना लें| प्रतिदिन रात को सोते समय 10 ग्राम चूर्ण फांककर 250 ग्राम दूध पी लें|
पीपल, दूध और बकरी का दूध :- पीपल के पेड़ की गुलड़ियों को सुखा-पीसकर चूर्ण बना लें| इसमें से 10 ग्राम चूर्ण दूध के साथ नित्य सेवन करें| दिनभर में एक किलो बकरी का दूध थोड़ा-थोड़ा करके पिएं| कुछ दिनों में क्षय रोग छूमंतर हो जाएगा|
सेब :- प्रतिदिन एक सेब का मुरब्बा दोपहर को भोजन के बाद खाएं|
अंगूर :- प्रतिदिन 100 ग्राम अंगूर का रस गुनगुना करके सेवन करें|
मुनक्का, पीपल और खांड़ :- चार दाने मुनक्का (बीज निकालकर), 2 ग्राम पीपल तथा 10 ग्राम खांड़-तीनों की चटनी पीसकर सुबह-शाम खाने से दमा, खांसी, श्वास तथा राजयक्ष्मा नष्ट हो जाता है|
केला :- केले के पेड़ के तने की सब्जी बनाकर प्रतिदिन खाएं|
केला और तना :- केले के सफेद तने का रस 20 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन दो बार पीने से तपेदिक उल्टे पैर भाग जाती है|
नारियल और शहद :- 25 ग्राम कच्चा नारियल पीसकर शहद के साथ खाएं| यह यक्ष्मा के कीटाणुओं को मारता है|
लौकी, सफेद गूदा और मिश्री :- कच्ची लौकी का सफेद गूदा 100 ग्राम लेकर उसमें पिसी हुई मिश्री मिलाकर सेवन करें|
गाय का दूध, घी, पीपल और दूध :- गाय के दूध में 10 ग्राम घी तथा दो पीपल डालकर दूध को औटाकर नित्य कुछ माह तक पिएं|
मक्खन, कालीमिर्च और इलायची :- मक्खन में चार कालीमिर्च तथा एक लाल इलायची का चूर्ण मिलाकर नित्य खाएं|
प्याज :- यक्ष्मा के कीटाणुओं को नष्ट करने के लिए कच्चे प्याज का रस चार चम्मच की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें|
लौंग और देशी घी :- चार लौंगों का चूर्ण देशी घी में मिलाकर नित्य कुछ माह तक लें|
पपीता, मौसमी और अंगूर :- पपीते का रस 50 ग्राम, मौसमी का रस 20 ग्राम तथा अंगूर का रस 20 ग्राम-तीनों को गरम करके पिएं|
आंवला, मिश्री और शहद :- प्रतिदिन चार आंवले के रस में थोड़ी-सी मिश्री या शहद मिलाकर पिएं|
तपेदिक (टी.बी.) में क्या खाएं क्या नहीं :- इस रोग में हल्के, ताजे तथा सरलता से पचने वाले पदार्थ खाएं| यदि मांसाहारी हैं तो बकरे की कलेजी या फोतों का रस बनाकर सेवन करें| अण्डा भी लाभदायक है| कच्चा अंडा दूध में उबालकर ले सकते हैं| बकरी का दूध, घी, मक्खन, रोटी, दाल आदि इस रोग के मुख्य पदार्थ हैं| सब्जियों में लहसुन का छौंक जरूर कराएं| फलों में सेब, मौसमी, अनार, अंगूर, पपीता, अमरूद और केला लाभकारी होता है|
इसके अलावा बासी तथा अलाभकारी पदार्थ न खाएं| सड़े-गले और बासी फल, बहुत गरम पदार्थ, भांग, गांजा, शराब, धूम्रपान आदि त्याग देना चाहिए| बर्फ तथा गरिष्ठ मिठाईयां न खाएं| सब्जियों में बैंगन, करेला, घुइयां, मेथी, भिण्डी आदि का सेवन न करें| तिल, सरसों का तेल तथा पान-सुपारी भी टी.बी. के रोगी के लिए हानिकारक है|