HOMEMADE REMEDIES FOR INCREASED LIVER :- हमारा जिगर शर्करा, वसा एवं आयरन के चयापचय में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अंग पित्तरस को उत्पन्न करके शरीर में चरबी को घटाता है। जिगर प्रोटीन तथा रक्त के थक्कों के उत्पादन में भी मदद करता है। जिगर की बीमारी के लक्षणों में थकान, कमजोरी, वजन का घटाना, मतली, उल्टी तथा पीलिया शामिल हैं। अगर जिगर के 75% से अधिक ऊतक क्षतिग्रस्त हो जाएं तो इससे जिगर की कार्यशीलता प्रभावित होती हैं।
जिगर बड़ी आसानी से अपनी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को पुनर्जीवित कर सकता है। अगर जिगर की 75% से अधिक कोशिकाओं का नाश हो जाएं तो फिर वह शरीर की जरूरतों को पूरा करने में असक्षम हो जाता है। कुछ घरेलू उपायों तथा दवाइयों द्वारा जिगर की बीमारियों का इलाज किया जा सकता है। परंतु, लिवर फेल हो जाने की स्थिति में लिवर ट्रान्सप्लांट का सहारा लेना पड़ सकता है।
शरीर के सभी महत्त्वपूर्ण कार्यों में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जिगर की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है| भोजन के पाचन के बाद आहार रस सबसे पहले जिगर में पहुंचता है| वहां उसमें अनेक जैव तथा रासायनिक परिवर्तन होते हैं| उसमें जरूरी निर्माण तथा विघटन भी होते हैं| इसे धतुपाक या चयापचय कहते हैं| परन्तु जिगर के कार्यों में बाधा डालने वाले अनेक शत्रु हैं| जैसे – जीवाणु, वायरस, कृमि आदि बाहर से आकर इसमें संक्रमण तथा सूजन फैलाते हैं| इसलिए जिगर को ठीक रखना बहुत जरूरी है|
जिगर बढ़ने का कारण :- जिगर बढ़ने का रोग प्राय: छोटे बच्चों को होता है| इसके मुख्य कारणों में माता के दूध की खराबी, गाय-भैंस का बासी तथा भारी दूध, अधिक मात्रा में दूध पिलाना, छोटी उम्र में बच्चों को चावल एवं भरपेट भोजन देना, मीठे पदार्थों का अधिक प्रयोग, बर्फ, आइसक्रीम, चॅाकलेट आदि के सेवन हैं| इन्हें खाने से बच्चे का जिगर घातक रोगों का शिकार हो जाता है|
जिगर बढ़ने की पहचान :-बच्चे को अपच होकर धीरे-धीरे जिगर बढ़ने लगता है| बालक के पेट की वृद्धि हो जाती है| खाया-पिया उसके शरीर को नहीं लगता| वह दिन-प्रतिदिन सूखने लगता है| उसके शरीर में खून की मात्रा कम होने लगती है| इस कारण वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है|
जिगर बढ़ने के घरेलु नुस्खे इस प्रकार हैं :-आंवला, शहद, सेब और मुरब्बा :- बालक को एक चम्मच आंवले का रस शहद मिलाकर नित्य चटाना चाहिए| साथ ही माता को भी आंवले या सेब का मुरब्बा खाना चाहिए|
बंसलोचन, दूध और शहद :- एक रत्ती असली बंसलोचन बालक को नित्य दिन में दो बार दूध या शहद के साथ दें|
चूने का पानी और पानी :- चूने के पानी की दो-तीन बूंदें ताजे पानी में मिलाकर बालक को नित्य पिलाना चाहिए|
भांगरा और दूध :- पांच बूंद भांगरे के पत्तों का रस दूध में मिलाकर दें|
शहद :- दो रत्ती पिप्पली का चूर्ण शहद के साथ दिन में दो-बार चटाएं|
बैंगन और चने की रोटी :- बैंगन का भरता बनाकर चने की रोटी से खिलाएं|
अजवायन, चीता, यवक्षार, पीपरामूल, दंती, पीपल और पानी :- अजवायन, चीता, यवक्षार, पीपरामूल, दंती की जड़ और छोटी पीपल – सब 5-5 ग्राम की मात्रा में लेकर कूट-पीसकर चूर्ण बना लें| इसमें से आधा चम्मच चूर्ण दही के तोड़ (पानी) के साथ खिलाएं|
मैनसिल :- मैनसिल को तेल में मिलाकर शरीर पर मालिश करें|
अंडा :- अंडे की जर्दी बच्चे की गुदा में चढ़ाने से भी काफी लाभ होता है|
नीम और पानी :- नीम के पत्तों का रस पानी में मिलाकर पिलाएं|
कलमी शोरा, जवाखार और पानी :- 2 ग्राम कलमी शोरा और 2 ग्राम जवाखार को पानी में मिलाकर कुछ दिनों तक सेवन कराएं|
सोडाबाई कार्ब और सज्जीखार :- सोडाबाई कार्ब तथा सज्जीखार 2 माशा की मात्रा में दिन में तीन बार दें|
जामुन :- आधा चम्मच जामुन का सिरका पानी में घोलकर बच्चे को दें|
पीपल, पानी और चिरायता :- पीपल और चिरायता – दोनों का चूर्ण एक-एक चुटकी की मात्रा में बच्चे को पानी के साथ दें|
अंजीर :- एक अंजीर सिरके में मथकर बच्चे को देना चाहिए|
मकोय और शहद :- मकोय के पत्तों का रस 10-10 बूंद सुबह-शाम शहद में मिलाकर दें|
दही :- अपमार्ग का क्षार तीन रत्ती की मात्रा में दही के साथ दें|