HOMEMADE REMEDIES FOR CHOLERA :- हैजा एक ऐसी बीमारी है जिसका सही समय पर इलाज नहीं किया गया तो ये जानलेवा भी हो सकती है। हैजा जैसी बीमारी से बचने के लिए इसकी जानकारी होना बहुत जरुरी है।इस बीमारी के शरुवाती लक्षण उल्टी और दस्त होना है। हैजा होने का मुख्य कारण खान-पान की अशुद्धता होती है। दूषित आहार या दूषित पानी पीने से हैजा के बैक्टेरिया हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।
शरीर में पहुँचने के बाद ये बैक्टेरिया तेजी से आंतो पर हमला कर देते है जिससे उल्टी और पतले दस्त लगना शुरू हो जाते है। हैजा का इंफेक्शन होने के 3 से 6 घंटो में बार बार दस्त और उल्टियाँ होती है। कोई इलाज नहीं करने पर फिर ये बीमारी घातक रूप ले लेती है।हैजा का नाम सुनते ही लोग भयभीत हो जाते हैं|
यह प्राय: महामारी के रूप में फैलता है| यह रोग गरमी के मौसम के अंत में या वर्षा ऋतु की शुरू में पनपता है| यदि इसका इलाज समय से युद्ध स्तर पर न किया जाए तो यह घातक सिद्ध हो सकता है| विसूचिका को मक्खियां तथा कुछ सूक्ष्म जीवाणु फैलाते हैं| इस रोग के फैलने पर लगभग 80 प्रतिशत रोगी उचित इलाज न होने के कारण मौत की गोद में चले जाते हैं|
हैजे का इलाज करने के साथ-साथ इसको फैलने से रोकना भी चाहिए| रोगी के दस्तों तथा उलटी को तुरन्त रोकने के लिए उचित औषधि दें| कुछ विद्वानों का कहना है की दस्तों तथा उल्टियों को धीरे-धीरे रोकना चाहिए| हैजे के रोगी का शान्तचित्त होकर इलाज कराना हितकर है|
विसूचिका (हैजा) का कारण :- हैजा एक संक्रामक बीमारी है| इसके जीवाणु भोजन और जल में मिलकर शरीर में चले जाते हैं| ये जीवाणु शरीर में प्रवेश करने के दूसरे या तीसरे दिन रोग फैलाते हैं| जो लोग गांवों में तालाबों, पोखरों, नालों और नदियों के किनारे रहते हैं, वे दूषित पानी पीकर इस रोग को ग्रहण कर लेते हैं|
हैजे के रोगाणु दूध, खुली मिठाईयां, मूत्र, थूक, वमन, मल आदि के द्वारा भी फैलते हैं| इस प्रकार दूषित तथा गंदे वातावरण में रहने, हजम न होने वाली वस्तुएं खाने, अत्यधिक परिश्रम करने के तुरन्त बाद पानी पी लेने, बासी भोजन करने, अशुद्ध जल पीने आदि के कारण यह रोग फैलता है|
विसूचिका (हैजा) की पहचान :- हैजे में रोगी को कै-दस्त शुरू हो जाते हैं| दस्त चावल के मांड़ के समान सफेद होते हैं| प्यास अधिक लगती है| पेशाब रुक जाता है| रोगी को बहुत कमजोरी हो जाती है| साथ-पैरों में दर्द और अकड़न होती है| शरीर में पानी की काफी कमी हो जाती है| इसी कारण अनेक रोगियों के प्राण निकल जाते हैं|
विसूचिका (हैजा) के घरेलु नुस्खे इस प्रकार हैं :- सोंठ, कालीमिर्च, अजवायन, तुलसी, नमक, शक्कर, नीबू और पुदीना:-प्रत्येक घर में सोंठ, कालीमिर्च, अजवायन तथा पुदीना आसानी से मिल जाता है| अत: इन सबको पीसकर चूर्ण बना लें| फिर औटाए हुए पानी के साथ 3-3 ग्राम की मात्रा में चूर्ण थोड़ी-थोड़ी देर बाद दें| पानी में चार-पांच पत्तियां तुलसी की डाल दें| इस पानी को खौलकर ठंडा करके रख लें| इसमें जरा-सा नमक, जरा-सी शक्कर और नीबू डालकर बार-बार पिलाएं| रोगी के पेट में पानी कम न होने दें|
नीम:- नीम की आठ-दस पत्तियों को पीसकर पानी में घोलकर रोगी को पिलाएं| नीम हैजे के रोगाणुओं को नष्ट कर देता है|
लौंग और पानी:- लौंग का पानी देने से रोगी का वमन शीघ्र रुक जाता है और पेशाब आने लगता है|
राई:- रोगी के शरीर पर राई का लेप करने से उल्टी और दस्त में लाभ होता है| इससे रोगी के शरीर का कम्पन भी रुक जाता है|
करेला और सेंधा नमक:- चार चम्मच करेले का रस लेकर उसमें जरा-सा सेंधा नमक मिलाकर रोगी को थोड़ी-थोड़ी देर बाद बार-बार पिलाएं|
लहसुन:- जहां रोगी लेटा हो, वहां काफी सफाई रखें| लहसुन की चार-पांच कलियां रोगी के सिरहाने और पांयंते रख दें| इससे हैजे के कीटाणु नष्ट हो जाएंगे|
प्याज, नीबू, नमक, तुलसी, पानी और कालीमिर्च:- चार चम्मच प्याज का रस, एक नीबू का रस, थोड़ी-सी कालीमिर्च तथा एक चुटकी नमक-सभी को तुलसी की पत्तियों के पानी में मिलाकर थोड़ी-थोड़ी देर बाद रोगी को पिलाते रहें|
गरम पानी, नीबू, पुदीना और धनिया:- गरम पानी में नीबू व धनिया (हरा) या पुदीने का रस मिलाकर पिलाएं| जब तक उल्टी होती रहे, तब तक यह पानी बार-बार पिलाते रहें|
जायफल और गुड़:- जायफल के चूर्ण में जरा-सा गुड़ मिलाकर खिलाने से रोगी को काफी आराम मिलता है|
सौंफ और इलायची:- रोगी को अर्क सौंफ तथा अर्क इलायची मिलाकर दें|
गुलाबबजल और नीबू:- गुलाबबजल में नीबू निचोड़कर पिलाने से रोगी को लाभ होता है|
तुलसी और कालीमिर्च:- रोगी को तुलसी के चार-पांच पत्ते तथा चार दाने कालीमिर्च की चटनी बनाकर खिलाएं|
नारियल:- नारियल का पानी चार-पांच बार पिलाने से हैजे की उल्टी रुक जाती|
आम और पानी:- कै-दस्त के समय आम के कोंपलों की चटनी बनाकर आधा लीटर पानी में उबालें| जब पानी आधा रह जाए तो छानकर सहता-सहता पिलाएं|
पानी और कपूर:- पानी में कपूर का अर्क मिलाकर रोगी को बार-बार पिलाएं|
शहद और फिटकिरी:- एक चम्मच शहद में एक रत्ती फिटकिरी का चूर्ण मिलाकर देने से भी रोगी को काफी लाभ होता है|
गूलर और पानी:- गूलर के पत्तों को पीसकर चार चम्मच रस निकाल लें| इस रस को पानी में घोलकर रोगी को बार-बार पिलाएं|
विसूचिका (हैजा) में क्या खाएं क्या नहीं:- रोगी को नीबू-पानी, उबला हुआ पानी और तुलसी की पत्तियों का पानी ठंडा करके अथवा सौंफ का पानी दें| गरमी के दिनों में बर्फ चूसने के लिए दें| यदि उल्टी और दस्त बंद हो जाएं किन्तु पेशाब न आए तो कलमी शोरा कपड़े में डालकर रोगी के पेड़ू पर रखें| भोजन में कोई भी ठोस चीज खाने के लिए नहीं देनी चाहिए|
फलों का रस, नीबू की शिकंजी, फलों का शरबत, दही की पतली लस्सी या अनन्नास का जूस घूंट-घूंट करके दिया जा सकता है| दो-तीन दिन बाद मूंग की दाल की पतली-पतली खिचड़ी खाने के लिए दें| साथ में पुदीने की चटनी अवश्य खिलाएं| रोग दूर हो जाने पर भी कुछ दिनों तक खिचड़ी, तरोई की सब्जी और चपाती देते रहें|