कहीं ऐसा तो नहीं आपका घर ही आपकी सफलता में बाधा बन रहा हो

कहीं ऐसा तो नहीं आपका घर ही आपकी सफलता में बाधा बन रहा हो     

जैसा की हमने आपको अपने पिछले लेख में बताया था की इंडिया हल्लाबोल के पाठकों की डिमांड पर हमने दुनिया की तन्त्र की राजधानी माने जाने वाली पीठ “कामख्या मंदिर” (गुवाहटी, असम) के भैरव पीठ के उत्तराधिकारी श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज से बात कर उनसे तन्त्र के सही स्वरूप को जानने के लिए निवेदन किया था। जिस पर इंडिया हल्ला बोल के पाठकों के लिए उन्होंने पहली बार मीडिया में अपने लेख देने के लिए अपनी सहमति दी है। उसी क्रम में हम आज उनका ये लेख आपके लिए लेकर आये हैं “तंत्र विद्या का वास्तविक स्वरूप”

श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज से मिलने के लिए आप 0120-4154777 पर कॉल करके अपनी मीटिंग फिक्स कर सकते हैं। 

श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज के अनुसार 

मेरे कुछ ऐसे अनुभव आप लोगों के साथ…..जो अपने आप में कहानियाँ बन गए। 

ऐसी ही एक कहानी आपसे साझा कर रहा हूँ। शायद इससे किसी सज्जन को उसकी मुश्किल का हल मिल जाए।

यह बात दो वर्ष पूर्व की बात है जब मैं हिमाचल की वादियों में साधना रत था, मेरे एक परिचित का फ़ोन आया कि एक परिवार आपसे मिलना चाहता है, जो की एक अजीब और बड़ी विचित्र समस्या में है। चूँकि मेरी कुछ जरुरी साधनायें चल रहीं थी, तो  मैंने उन्हें एक सप्ताह बाद मिलने का समय दिया।

एक सप्ताह बाद वो पति-पत्नी मेरे परिचित के साथ मिलने आए और उन्होंने अपनी कहानी कुछ युं बताई,

कि हमारा एक सम्पन्न और व्यापारिक परिवार है। परिवार में किसी तरह की कोई कमी नहीं है।

लेकिन दो साल पहले हमें एक बड़े मकान  की जरुरत थी तो हमने खोज की तो एक मकान जो बहुत खुली जगह में था और बहुत ही सस्ते दामों पर मिला गया। वो मकान जिस मालिक ने बनाया था वो उस माकन में कभी नहीं रहा, यानी मकान एक दम फ्रेश था। खुली जगह आश्चर्यजनक रूप से सस्ता और फ्रेश मकान देख हमने उसे लेने में  देर नहीं की और अच्छा सा महूर्त करा कर हम उस मकान में रहने लगे। लेकिन दुर्भाग्य की शुरुआत यहीं से हुई, घर में क्लेश रहने लगा, व्यापार में जबरदस्त घाटा और उल्टा पैसों को लेकर हम पर कई-कई मुकद्दमे शुरू हो गए।

बेटा बाइक से कहीं जा रहा था तो उसे ऐसा लगा की उसकी बाइक का हैंडल पकड़ किसी ने सड़क किनारे खड्डे की तरफ मोड़ दिया हो बेटे को जबरदस्त चोटें आईं। तब तक हम इसे भाग्य का लिखा मानते रहे। पर इसके बाद जब घर में बार-बार जलने की बदबू आने लगी, ड्राइंग रूम में रोज़ रात को 12 बजे से लेकर 3 बजे तक बहुत सारे लोगों के बातें करने की आवाजे आने लगीं तो हमें ये लगा की यह भाग्य का खेल नहीं कुछ और है। तब हम आपके पास आऐ हैं।

यह उस परिवार ने अपने बारे में बताया।

जब वो पति-पत्नी ये बता रहे थे तो हमने उनके आस पास कुछ विचित्र परछाइयों को महसूस किया। तब हमने उन्हें कुछ दिनों बाद उनके घर आने का आश्वासन दिया।

कुछ दिनों बाद उनके घर जाना हुआ तो घर में प्रवेश करते ही हम सारी कहानी समझ गए।

हमने उस परिवार का इलाज करने की ठानी और हमने कहा आप अपने घर में 21 हजार गायत्री मंत्रो का जाप शुरू करा दो, जिसका हमने उनसे संकल्प ले लिया और एक अनुष्ठान जो स्वयं हमें करना था उसके लिए उसका भी हमने उनसे संकल्प करा लिया। उन्हें आश्वासन देकर की आज के बाद आपको राहत मिलेगी यह कह हम चले आए।   

चूँकि हमको काशी जाना था और उनका अनुष्ठान भी हमने काशी में ही किया।

जब हम उस परिवार के घर में पहुंचे थे तो हमें ऐसा आभास हुआ की जैसे हम शमशान भूमि में आ गए हों। वहां पर पहुँचते ही हमें कुछ प्रेत आत्माओं ने तो संपर्क किया ही, पर कुछ दिव्य आत्माओं ने भी हमसे संपर्क किया।

प्रेत आत्माएं तो वह, जो भटक रहीं थीं। उन्हें सद् गति प्राप्त नहीं हुई ऐसी आत्माएं श्मशान भूमि में ही रहती हैं। क्योंकि शमसान भूमि बहुत शांत होती है। तो कुछ दिव्य आत्माएं जिन्होंने साधनायें करनी होती हैं जो शरीर धारण करना नही चाहती या यूँ कहे की बिना शरीर के ऋषि मुनि भी शमशान जैसी शांत भूमि पर ही रहकर तपस्या में लीन रहते हैं। उन्ही आत्माओं ने हमे बताया कि यह स्थान कुछ दशक पहले शमशान भूमि था। अब यहाँ घर बनने से चहल पहल बढ़ गई है, इस से वो आत्माएं परेशान हैं।

तब हमने दो तरह का कार्य किया। उन दिव्य आत्माओं को हमने अपने साथ काशी में चलने को कहा व प्रेत आत्माओं को दण्डित करने व कीलने की जगह उन्हें प्रेत योनि से मुक्ती देने के लिए राज़ी कर लिया। चूँकि मुक्ती के लिए उनके पास पुण्य नहीं थे तो इसीलिए हमने 21 हजार गायत्री मंत्र उस परिवार से उन आत्माओं के लिए करवाये। उसका पुण्य उन प्रेत आत्माओं को दिया व कर्म काण्ड कर उनको प्रेत योनि से मुक्ति दिला दी। 21 हजार गायत्री मंत्रो का पुण्य लेकर वो आत्माएं ख़ुशी ख़ुशी अन्य शरीर धारण करने की और बड़ गईं ।

अब बची वो दिव्य आत्माएं, तो उनको हमने जब काशी में आमंत्रित किया तो वो ख़ुशी ख़ुशी शिव नगरी में आने के लिए राजी हो गयीं,  तब हमने महा श्मशान भूमि मणिकर्णीका घाट पर उनके लिए सुन्दर अनुष्ठान और यज्ञ का आयोजन किया व उन्हें वहीं पर स्थान दिया। उन्हें वहीँ पर रह कर तपस्या करने के लिए राज़ी कर लिया। इस तरह से वह परिवार सभी बाधाओं और मुश्किलो से मुक्त हुआ।

असल में वह परिवार हमसे ये चाहता था की यह घर बिक जाय और ये समस्या किसी और के गले में चली जाय। जो हमें उचित नहीं लगा और हमने इसके लिए मना कर दिया लेकिन उन्हें कहा की आप विश्वास रखे ये घर ही आपके लिए उचित फल देने वाला बन जायगा।

आज वह  परिवार अपना सुखी जीवन जी रहा है। एक सही फैसले से तीन तरह के जीवों को फायदा मिला।

पूजा और साधनायें किसी के नुक्सान के लिए नहीं बल्कि जीवन का हल देने के लिए होती हैं। इसलिए हम कहते हैं।

“तंत्र सब कुछ देता है…. पर गलत करने की इज्जाजत नहीं देता।

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