बिगड़े काम भी बनेंगे, सफलता भी मिलेगी। बस! ये मौका ना जाने दे हाथ से
जैसा की हमने आपको अपने पिछले लेख में बताया था की इंडिया हल्लाबोल के पाठकों की डिमांड पर हमने दुनिया की तन्त्र की राजधानी माने जाने वाली पीठ “कामख्या मंदिर” (गुवाहटी, असम) के भैरव पीठ के उत्तराधिकारी श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज से बात कर उनसे तन्त्र के सही स्वरूप को जानने के लिए निवेदन किया था। जिस पर इंडिया हल्ला बोल के पाठकों के लिए उन्होंने पहली बार मीडिया में अपने लेख देने के लिए अपनी सहमति दी है। उसी क्रम में हम आज उनका ये लेख आपके लिए लेकर आये हैं “बिगड़े काम भी बनेंगे, सफलता भी मिलेगी। बस! ये मौका ना जाने दे हाथ से”
श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज से मिलने के लिए आप 09418388884 पर कॉल करके अपनी मीटिंग फिक्स कर सकते हैं।
श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज के अनुसार
होली पर्व से 8 दिन पूर्व होलाष्टक प्रारंभ हो जाते हैं। जिस क्षेत्र में होलिका दहन के लिए डंडा स्थापित हो जाता है, उस क्षेत्र में होलिका दहन तक कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस दौरान मांगलिक कार्य, गृह प्रवेश आदि शुभ नहीं माना जाता। होलिका दहन के बाद जो रात्रि आती है, उसे दारुण रात्रि कहा गया है। इसकी तुलना महारात्रि अर्थात महाशिवरात्रि, महानिशा दीपावली, कृष्ण जन्माष्टमी से की जाती है।
तंत्र साधकों के लिए यह 8 दिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इन 8 दिनों में विशेष तरह के तंत्र अनुष्ठान किए जाते हैं, तंत्र के काम्य प्रयोग शीघ्र फलित होते हैं। बहुत से तंत्र साधक अपनी तंत्र क्षमताओं को बढ़ाने के लिए इन दिनों में साधनाएं करते हैं।
इन दिनों में तंत्रोक्त अभिचार कर्म से मुक्ति या उनकी काट करने के लिए विशेष रुप से अनुष्ठान या प्रयोग किए जाते हैं।
अगर किसी परिवार या किसी व्यक्ति को ऐसा महसूस होता है कि उनके ऊपर कोई अभिचार कर्म हुआ है तो वह इन 8 दिनों में किसी योग्य तंत्राचार्य से परामर्श लेकर तंत्र बाधा मुक्ति अनुष्ठान करवाएं। उन्हें अवश्य लाभ प्राप्त होगा।
इन दिनों में किया गया तंत्रोक्त कोई भी कार्य बहुत शीघ्र फलित होता है और बहुत ही लाभप्रद होता है। तंत्र शास्त्र के अनुसार इन दिनों में तंत्र साधना पूर्ण रूप से फलित होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार तंत्र के आदि गुरु भगवान शिव माने जाते है और वे वास्तव में देवों के देव महादेव है। तंत्र शास्त्र का आधार यही है की व्यक्ति का ब्रह्म से साक्षात्कार हो जाये और उसका कुण्डलिनी जागरण हो तथा तृतीय नेत्र (Third Eye) एवं सहस्रार जागृत हो।
भगवान शिव ने प्रथम बार अपना तीसरा नेत्र फाल्गुन पूर्णिमा होली के दिन ही खोला था और कामदेव को भस्म किया था। इसलिए यह दिवस तृतीय नेत्र जागरण दिवस है और तांत्रिक इस दिन विशेष साधना संपन्न करते है जिससे उन्हें भगवान शिव के तीसरे नेत्र से निकली हुई ज्वाला का आनंद मिल सके और वे उस अग्नि ऊर्जा को ग्रहण कर अपने भीतर छाये हुए राग, द्वेष, काम, क्रोध, मोह-माया के बीज को पूर्ण रूप से समाप्त कर सकें।
होली का पर्व पूर्णिमा के दिन आता है और इस रात्रि से ही जिस काम महोस्तव का प्रारम्भ होता है उसका भी पूरे संसार में विशेष महत्त्व है क्योंकि काम शिव के तृतीय नेत्र से भस्म होकर पुरे संसार में अदृश्य रूप में व्याप्त हो गया। इस कारण उसे अपने भीतर स्थापित कर देने की क्रिया साधना इसी दिन से प्रारम्भ की जाती है। सौन्दर्य, आकर्षण, वशीकरण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि से संबन्धित विशेष साधनाएं इसी दिन संपन्न की जाती है। शत्रु बाधा निवारण के लिए, शत्रु को पूर्ण रूप से भस्म कर उसे राख बना देना अर्थात अपने जीवन की बाधाओं को पूर्ण रूप से नष्ट कर देने की तीव्र साधनाएं महाकाली, चामुण्डा, भैरवी, बगलामुखी धूमावती, प्रत्यंगिरा इत्यादि साधनाएं भी प्रारम्भ की जा सकती हैं तथा इन साधनाओं में विशेष सफलता शीघ्र प्राप्त होती है।
काम जीवन का शत्रु नहीं है क्योंकि संसार में जन्म लिया है तो मोह-माया, इच्छा, आकांक्षा यह सभी स्थितियां सदैव विद्यमान रहेंगी ही और इन सब का स्वरुप काम ही हैं। लेकिन यह काम इतना ही जाग्रत रहना चाहिए कि मनुष्य के भीतर स्थापित शिव, अपने सहस्रार को जाग्रत कर अपनी बुद्धि से इन्हें भस्म करने की क्षमता रखता हो।
होली का पर्व … दो महापर्वों के ठीक मध्य घटित होने वाला पर्व है! होली के पंद्रह दिन पूर्व ही संपन्न होता है, महाशिवरात्रि का पर्व और पंद्रह दिन बाद चैत्र नवरात्री का। शिव और शक्ति के ठीक मध्य का पर्व और एक प्रकार से कहा जाएं तो शिवत्व के शक्ति से संपर्क के अवसर पर ही यह पर्व आता है। जहां शिव और शक्ति का मिलन है वहीं ऊर्जा की लहरियां का विस्फोट है और तंत्र का प्रादुर्भाव है, क्योंकि तंत्र की उत्पत्ति ही शिव और शक्ति के मिलन से हुई। यह विशेषता तो किसी भी अन्य पर्व में सम्भव ही नहीं है और इसी से होली का पर्व का श्रेष्ठ पर्व, साधना का सिद्ध मुहूर्त, तांत्रिकों के सौभाग्य की घड़ी कहा गया है।
जो लोग तंत्र साधना प्रारंभ करना चाहते हैं या पहले से कर रहे हैं उन्हें होलाष्टक के दिनों में विशेष रूप से भैरव जी का, जो कि सभी तरह की तंत्र शक्तियों के स्वामी है उनका अनुष्ठान करना चाहिएI अगर मंत्र की तंत्रोक्त दीक्षा है तो मंत्र जाप रात्रि में अधिक से अधिक संख्या में करना चाहिएI इसके अतिरिक्त इस समय 10 महाविद्या का पूजन, तंत्रोक्त अनुष्ठान करना चाहिए। होलाष्टक के समय किया गया दसमहाविद्या पूजन अनुष्ठान सुख-संपनता, आरोग्यता, धन ऐश्वर्य, शत्रु बाधा और अभिचार कर्म मुक्ति प्रदान करने वाला होता है।
पिछले के कई वर्षों का हमारा यह अनुभव है कि हमने बहुत से लोगों को इन दिनों में तंत्रोक्त अनुष्ठान करवाए या उन्हें किसी योग्य तंत्राचार्य से अनुष्ठान करने के लिए कहाI उसके जो परिणाम आए वह बहुत ही चौंकाने वाले थे लगभग सभी अनुष्ठानों में पूर्णता सफलता प्राप्त हुई।
इन अनुष्ठानों में सफलता प्राप्ति का कारण एक यह भी है कि हम जिस किसी से भी तंत्रोक्त अनुष्ठान करवाते हैं या उसे करने की सलाह देते हैं वह किसी के अहित के लिए नहीं होता है।अच्छे भाव से, अच्छे संकल्प से, आत्म रक्षा के उद्देश्य से और आशीर्वाद प्राप्ति की कामना से किया गया तंत्रोक्त अनुष्ठान हमेशा शुभ फलदाई होता है।
इस साल यह होली पर्व मार्च में संपन्न हो रहा है। जो भी अपने जीवन को और अपने जीवन से भी आगे बढ़कर समाज व देश को संवारने की इच्छा रखते है, लाखों-लाख लोगों का हित करने, उन्हें प्रभावित करने की शैली अपनाना चाहते है, उनके लिए तो यही एक सही अवसर है। इस दिन कोई भी साधना संपन्न की जा सकती है। जिन साधनाओं में पुरे वर्ष भर सफलता न मिल पाई हो, उन्हें भी एक एक बार फिर इसी अवसर पर दोहरा लेना ही चाहिए।
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