who was maharshi Vyasa । जानिये महाभारत के प्रणेता महर्षि व्यास के बारें में

Veda-Vyasa

who was maharshi Vyasa : व्यास अथवा वेदव्यास हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान नारायण के ही कलावतार थे। व्यास जी के पिता का नाम पराशर ऋषि तथा माता का नाम सत्यवती था। जन्म लेते ही इन्होंने अपने पिता-माता से जंगल में जाकर तपस्या करने की इच्छा प्रकट की। प्रारम्भ में इनकी माता सत्यवती ने इन्हें रोकने का प्रयास किया, किन्तु अन्त में इनके माता के स्मरण करते ही लौट आने का वचन देने पर उन्होंने इनको वन जाने की आज्ञा दे दी। प्रत्येक द्वापर युग में विष्णु व्यास के रूप में अवतरित होकर वेदों के विभाग प्रस्तुत करते हैं।

इस प्रकार अट्ठाईस बार वेदों का विभाजन किया गया। पहले द्वापर में स्वयं ब्रह्मा वेदव्यास हुए, दूसरे में प्रजापति, तीसरे द्वापर में शुक्राचार्य , चौथे में बृहस्पति वेदव्यास हुए। इसी प्रकार सूर्य, मृत्यु, इन्द्र, धनजंय, कृष्ण द्वैपायन अश्वत्थामा आदि अट्ठाईस वेदव्यास हुए। समय-समय पर वेदों का विभाजन किस प्रकार से हुआ, इसके लिए यह एक उदाहरण प्रस्तुत है। धन्य हैं वे महाभारत के प्रणेता महर्षि व्यास, जिन्होंने कहा है : ‘कलियुग में दान ही एकमात्र धर्म है।’ तप और कठिन योगों की साधना इस युग में नहीं होती। इस युग में दान देने तथा दूसरों की सहायता करने की विशेष जरूरत है।

दान शब्द का क्या अर्थ? सब दानों से श्रेष्ठ है धर्म-दान, फिर है विद्यादान, फिर प्राणदान और सबसे अन्तिम है अन्न-जल-दान।
जो आध्यात्मिक ज्ञान का दान करते हैं वे आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। जो लौकिक विद्यादान करते हैं वे मनुष्य की आंखें खोलते हैं, उन्हें अध्यात्म ज्ञान का पथ दिखा देते हैं। अन्य दान, यहां तक कि प्राणदान भी इनके निकट गौण है। अतएव, तुम्हें समझ लेना चाहिए कि अन्यान्य सब कर्म आध्यात्मिक ज्ञानदान से निम्नतर है।

जो मनुष्य को आध्यात्मिक ज्ञान देता है वही वस्तुत: मानव का सबसे बड़ा उपकारक है और इसीलिए हम सदैव पाते हैं कि जिन्होंने मनुष्य को उसकी आध्यात्मिक साधना में सहायता दी, वे ही मनुष्यों में सर्वाधिक प्रभावशाली माने गए; क्योंकि आध्यात्मिकता ही हमारे जीवन के समस्त क्रियाकलापों की सच्ची आधारशिला है। आध्यात्मिकता स्वस्थ एवं शक्तिशाली व्यक्ति में अन्य सब दृष्टियों से भी शक्तिमान बनने की क्षमता रहती है। जब तक मनुष्य में आध्यात्मिक शक्ति नहीं है, तब तक उसकी भौतिक आवश्यकताएं भी भली प्रकार पूरी नहीं हो सकतीं।

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