Who is Lord Dattatreya? :- भगवान दत्तात्रेय,महर्षि अत्रि और उनकी सहधर्मिणी अनुसूया के पुत्र थे।इनके पिता महर्षि अत्रि सप्तऋषियों में से एक है,और माता अनुसूया को सतीत्व के प्रतिमान के रूप में उदधृत किया जाता है।
एक बार की बात है माँ अनुसूया त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश जैसे पुत्र की प्राप्ति के लिए कड़े तप में लीन हो गईं, जिससे तीनों देवों की अर्धांगिनियां सरस्वती, लक्ष्मी और पार्वती को जलन होने लगी।
तीनों ने अपनी पतियों से कहा कि वे भू लोक जाएं और वहां जाकर देवी अनुसुया की परीक्षा लें।ब्रह्मा, विष्णु और महेश संन्यासियों के वेश में अपनी जीवनसंगिनियों के कहने पर देवी अनुसुया की तप की परीक्षा लेने के लिए पृथ्वी लोक चले गए।
अनुसुया के पास जाकर संन्यासी के वेश में गए त्रिदेव ने उन्हें भिक्षा देने को कहा, लेकिन उनकी एक शर्त भी थी।अनुसुया के पतित्व की परीक्षा लेने के लिए त्रिदेव ने उनसे कहा कि वह भिक्षा मांगने आए हैं लेकिन उन्हें भिक्षा उनके सामान्य रूप में नहीं बल्कि अनुसुया की नग्न अवस्था में चाहिए।
अर्थात देवी अनुसुया उन्हें तभी भिक्षा दे पाएंगी, जब वह त्रिदेव के समक्ष नग्न अवस्था में उपस्थित हों।त्रिदेव की ये बात सुनकर अनुसुया पहले तो हड़बड़ा गईं लेकिन फिर थोड़ा संभलकर उन्होंने मंत्र का जाप कर अभिमंत्रित जल उन तीनों संन्यासियों पर डाला।
पानी की छींटे पड़ते ही ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ही शिशु रूप में बदल गए। शिशु रूप लेने के बाद अनुसुया ने उन्हें भिक्षा के रूप में स्तनपान करवाया।अनुसुया के पति अत्रि जब घर वापस आए तब अनुसुया ने उन्हें तीन बालकों का राज बताया।
अत्रि तो पहले ही अपनी दिव्य दृष्टि से पूरे घटनाक्रम को देख चुके थे।अत्रि ने तीनों बालकों को गले से लगा लिया और अपनी शक्ति से तीनों बालकों को एक ही शिशु में बदल दिया, जिसके तीन सिर और छ: हाथ थे।ब्रह्मा, विष्णु, महेश के स्वर्ग वापस ना लौट पाने की वजह से उनकी पत्नियां चिंतित हो गईं और स्वयं देवी अनुसुया के पास आईं।
सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वे उन्हें उनके पति सौंप दें। अनुसुया और उनके पति ने तीनों देवियों की बात मान ली और त्रिदेव अपने वास्तविक रूप में आ गए।अनुसुया और अत्रि से प्रसन्न और प्रभावित होने के बाद त्रिदेव ने उन्हें वरदान के तौर पर दत्तात्रेय रूपी पुत्र प्रदान किया, जो इन तीनों देवों का अवतार था।
दत्तात्रेय का शरीर तो एक था लेकिन उनके तीन सिर और छ: भुजाएं थीं। विशेष रूप से दत्तात्रेय को विष्णु का अवतार माना जाता है।भगवान दत्तात्रेय से एक बार राजा यदु ने उनके गुरु का नाम पूछा,भगवान दत्तात्रेय ने कहा : “आत्मा ही मेरा गुरु है,तथापि मैंने चौबीस व्यक्तियों से गुरु मानकर शिक्षा ग्रहण की है।”
उन्होंने कहा मेरे चौबीस गुरुओं के नाम है :-
१) पृथ्वी
२) जल
३) वायु
४) अग्नि
५) आकाश
६) सूर्य
७) चन्द्रमा
८) समुद्र
९) अजगर
१०) कपोत
११) पतंगा
१२) मछली
१३) हिरण
१४) हाथी
१५) मधुमक्खी
१६) शहद निकालने वाला
१७) कुरर पक्षी
१८) कुमारी कन्या
१९) सर्प
२०) बालक
२१) पिंगला वैश्या
२२) बाण बनाने वाला
२३) मकड़ी
२४) भृंगी कीट
भगवान दत्तात्रेय :- “आदौ ब्रह्मा मध्ये विष्णुरन्ते देवः सदाशिवः
मूर्तित्रयस्वरूपाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।
ब्रह्मज्ञानमयी मुद्रा वस्त्रे चाकाशभूतले
प्रज्ञानघनबोधाय दत्तात्रेयाय नमोस्तु ते।।”
भावार्थ :- “जो आदि में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अन्त में सदाशिव है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है। ब्रह्मज्ञान जिनकी मुद्रा है, आकाश और भूतल जिनके वस्त्र है तथा जो साकार प्रज्ञानघन स्वरूप है, उन भगवान दत्तात्रेय को बारम्बार नमस्कार है।” (जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य)
स्वामी शरभेश्वरा नंद भैरव