Understanding Sanatana Dharma । सनातन धर्म के अनुसार भिन्न-भिन्न प्राणियों के बारे में जानें

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Understanding Sanatana Dharma : सनातन धर्म यानि की हिन्दू धर्म सभी जानते हैं, कि वैज्ञानिकता से ओत-प्रोत है। बहुत से ग्रंथों और दर्शनों से भरा हुआ हमारा धर्म बहुत ही विशाल है। भिन्न भिन्न प्राणियों के शरीर जैसा की वैशेषिक दर्शन में लिखा है | दो प्रकार के होते हैं |

1. योनिज़ – जो माता पिता के संग से उत्पन्न होते हैं , जिसे मैथुनी सृष्टि कहते हैं

2. अयोनिज – जो बिना माता पिता के संयोग से उत्पन्न होते हैं और जिसे अमैथूनी सृष्टि कहते हैं |

समस्त प्राणी जो जगत में उत्पन्न होते हैं | उनकी उत्पत्ति चार प्रकार से होती है –

क – जरायुज – जिनके शरीर जरायु (झिल्ली ) से लिपटे रहते है और इस जरायु को फाड़कर उत्पन्न होते हैं , जैसे मनुष्य , पशु आदि ||

ख – अंडज – जो अण्डों से उतन्न होते हैं , जैसे पक्षी सांप , मछली आदि ||

ग – स्वेदज – जो पसीने सील आदि से उत्पन्न होते हैं ||

घ – उद्भिज्ज – जो पृथिवी को फाडकर उत्पन्न होते हैं जैसे वृक्ष आदि ||

इनमे से अंतिम दो की सदैव अमैथूनी सृष्टि हुआ करती है और प्रथम दो की मैथुनी और अमैथूनी दोनों प्रकार की सृष्टि हुआ करती है |पृथिवी पर सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों की उत्पत्ति अमैथूनी सृष्टि से हुयी थी ना की किसी एक व्यक्ति से अनेको की उत्पत्ति – क्यूँ की यदि ऐसा होता तो सभी मनुष्यों में इतनी विभिन्नताए ना होती और आज की भाषा में dna में इतनी विभिन्नता न होती – dna समान होता || Because the Y chromosome is transmitted from a father to all his sons.

इसलिए सृष्टि की शुरुआत में अनेक मनुष्यों की उत्पत्ति एक साथ हुयी  जब एक मनुष्य की उत्पत्ति अमैथुनी हो सकती है तो अनेक की क्यूँ नहीं ??यह है वेद का सिद्धांत  की सृष्टि की आदि में एक साथ अनेक मनुष्यों की सृष्टि हुयी – जिनसे आगे – मैथुनी सृष्टि हुयी ||

तथा मनुष्यों से पहले सभी पशु , पक्षी , वृक्ष , वनस्पति , आदि पैदा हुए क्यूँ की ये एक सिद्धांत है की जरुरत का सामान पहले है और जरूरत बाद में –जैसे – चलने से पहले धरती है | देखने से पहले सूरज , प्रकाश सुनने से पहले कान लिखने से पहले कलम , स्याही इसी प्रकार मनुष्य के जीवन का सम्बन्ध पशु , पक्षी , वनस्पति , पेड़ पौधों पर निर्भर है इसलिए मनुष्य को इनकी जरूरत है अतः ये जरूरत का सामान पहले उत्पन्न हुआ – बाद में मनुष्य ||

अमैथुनी सृष्टि को समझने के लिए उत्कृष्ट उदाहरण – सांचे का उदाहरण| जिस प्रकार खिलौने आदि बनाने वाला कारीगर पहले सांचा बनाता है , और फिर उसी सांचे से अनेक खिलौने ढाल लिया करता है | ठीक उसी प्रकार अमैथुनी सृष्टि सांचा बनाने की कार्य प्रणाली है , उसके बाद मैथुनी सृष्टि सांचे से खिलौने आदि ढालने का कार्यक्रम है ||

यह सर्वप्रथम सृष्टि त्रिविष्टप – अर्थात तिब्बत में हुयी – जो की पहले भारत में ही था – यह बात महर्षि दयानंद ने १८ वि सदी में ही बता दी थी – जिस तक आज के वैज्ञानिक अब जाकर पहुंचे है जो वैज्ञानिक पहले उत्तरी , दक्षिण ध्रुव पर जीवन की शुरुआत मान रहे थे – इस से पता चलता है की धीरे धीरे आधुनिक विज्ञानं वैदिक विज्ञानं के करीब आ रहा है|

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