आज भी मौजूद है पांडवों का ‘लाक्षागृह’

lakshagraha today

लाक्षागृह क्या है। लाक्षागृह एक भवन था जिसे लाक्षा (लाख) से बनाया गया था। आजकल इसकी चूड़ियां बनती हैं। लाख एक प्राकृतिक राल है, बाकी सब राल कृत्रिम हैं। वैज्ञानिक भाषा में लाख को लैसिफर लाक्का (Laccifer lacca) कहा जाता है। 

लक्ष एक प्रकार का कीट होता है। लाख कीट कुछ पेड़ों पर पनपता है, जो भारत, बर्मा, इंडोनेशिया तथा थाईलैंड में उपजते हैं। यह कॉक्सिडी (Coccidae) कुल का कीट है। यह उसी गण के अंतर्गत आता है जिस गण का कीट खटमल है। कुसुम, खैर, बेर, पलाश, अरहर, शीशम, पंजमन, पीपल, बबूल आदि सैकड़ों पेड़ों पर लाख पनपता है। लाख के वे ही उपयोग हैं, जो चपड़े के हैं। लाख के शोधन से और एक विशेष रीति से चपड़ा तैयार होता है। इससे और भी कई हजारों तरह के सामान बनाए जाते हैं। लाख तेजी से जलने वाला पदार्थ है।

जब भीष्म पितामह ने धृतराष्ट्र से युधिष्ठिर का राज्याभिषेक कर देने के लिए कहा, तब दुर्योधन ने पिता धृतराष्ट्र से कहा, ‘पिताजी! यदि एक बार युधिष्ठिर को राजसिंहासन प्राप्त हो गया तो यह राज्य सदा के लिए पांडवों के वंश का हो जाएगा और हम कौरवों को उनका सेवक बनकर रहना पड़ेगा।’

इस पर धृतराष्ट्र बोले, ‘वत्स दुर्योधन! युधिष्ठिर हमारे कुल की संतानों में सबसे बड़ा है इसलिए इस राज्य पर उसी का अधिकार है। फिर भीष्म तथा प्रजाजन भी उसी को राजा बनाना चाहते हैं। हम इस विषय में कुछ भी नहीं कर सकते। तुम उनके (पांडवों के) रुकने का प्रबंध करो।’

धृतराष्ट्र के वचनों को सुनकर दुर्योधन ने कहा, ‘ठीक है पिताजी! मैंने इसका प्रबंध कर लिया है। बस आप किसी तरह पांडवों को वारणावत भेज दें।’

दुर्योधन ने वारणावत में पांडवों के निवास के लिए पुरोचन नामक शिल्पी से एक भवन का निर्माण करवाया था, जो कि लाख, चर्बी, सूखी घास, मूंज जैसे अत्यंत ज्वलनशील पदार्थों से बना था। दुर्योधन ने पांडवों को उस भवन में जला डालने का षड्यंत्र रचा था। धृतराष्ट्र के कहने पर युधिष्ठिर अपनी माता तथा भाइयों के साथ वारणावत जाने के लिए निकल पड़े।

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