History of Rudraksha । जानें रुद्राक्ष कैसे उत्पन्न हुआ

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History of Rudraksha: हिन्दू धर्मानुसार भगवान शिव को देव और दानव दोनों का देवता बताया गया है। भगवान शिव के शांत और प्रसन्न स्वभाव के कारण भोला तो प्रलयंकारी स्वभाव के कारण रुद कहा जाता है। भगवान शिव को जो चीजें बहेद प्रिय हैं उनमें शिवलिंग, बेलपत्र आदि के अतिरिक्त रुद्राक्ष (Rudraksha in Hindi) एक अहम वस्तु है।

क्या हैं रुद्राक्ष (Rudraksha Beads): मान्यता है कि भगवान शिव के नेत्रों से उत्पन्न हुआ इन रुद्राक्षों में समस्त दुखों को हर लेने की क्षमता होती है। पुराणों और ग्रंथो के अनुसार रुद्राक्ष के प्रकारों पर अलग-अलग मत है। वर्तमान में अधिकतर 14 मुखी (14 Mukhi Rudraksha) और गौरी शंकर रुद्राक्ष (Gauri Shankar Rudraksha) व गणेश रुद्राक्ष (Ganesh Rudraksha) ही मिल पाते हैं।रुद्राक्ष के मुख की पहचान उसे बीच से दो टुकड़ों में काट कर की जा सकती है। जितने मुख होते हैं उतनी ही फांके नजर आती हैं। हर रुद्राक्ष किसी न किसी ग्रह और देवता का प्रतिनिधित्व करता है

रुद्राक्ष के फायदे (Rudraksh Mahima): रुद्राक्ष धारण करने का सबसे बड़ा फायदा (Rudraksha Benefits in Hindi) यह माना जाता है कि इसे धारण करने का कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं है। रुद्राक्ष को पहनने के लिए कोई नियम नहीं है। यह कोई भी व्यक्ति किसी भी स्थिति में धारण कर सकता है ।आध्यात्मिक (Spiritual) दृष्टि से अनेक पेड़-पौधों का काफी महत्व है। उसी में एक वृक्ष है रुद्राक्ष। रुद्राक्ष (Rudraksh) के दर्शन और स्पर्श मात्र से ही पापों का विनाश हो जाता है। जानें रुद्राक्ष के उत्पन्न होने की कहानी-

भगवान शिव (Bhagwan Shri Shiv Ji) ने देवी पार्वती को रुद्राक्ष की महिमा को बताया था, जिसका उल्लेख शिवपुराण (Shri Shivpuran) में मिलता है। शिव के आंसुओं से उत्पन्न हुआ है रुद्राक्ष। यही कारण है कि शिव को अति प्रिय है रुद्राक्ष।दरअसल रुद्राक्ष दो शब्दों रुद्र और अक्ष से मिलकर बना है। रुद्राक्ष शब्द के पीछे छिपी गूढ़ता को जानें तो रुद्र का अर्थ है दु:खों का नाश करने वाले वहीं अक्ष का अर्थ है आंखे यानी रुद्राक्ष शिव के नेत्रों से निकला पीड़ा हरण करने वाला है।

कहते हैं एक बार भगवान शिव घोर तपस्या कर रहे थे। एक दिन उनका मन क्षुब्ध हो गया और उन्होंने लीला वश अपने नेत्रों को खोल दिया। जिसके बाद उनके नेत्रों से कुछ जल की बूंदें गिरी। आंसू की इन बूदों से रुद्राक्ष उत्पन्न हो गया। इसी रुद्राक्ष को उन्होंने विष्णु भक्तों और चारों वर्णों में वितरित कर दिया।

भगवान शिव ने रुद्राक्ष को गौड़ प्रदेश में उत्पन्न किया और मथुरा, अयोध्या, लंका और काशी सहित अन्य स्थानों पर इसके अंकुर उगाए। शिव जी की आज्ञा से रुद्राक्ष चार वर्णों में भुतल पर प्रकट हुआ। रुद्राक्ष के ये चार रूप चार वर्णों के लिए ही उत्पन्न हुए। रुद्राक्ष के चार वर्ण हैं श्वेत, रक्त, पीत और कृष्ण।शिव-पार्वती (Shri Shiv Parvati Ji) को प्रसन्न करने के लिए रुद्राक्ष धारण करना उत्तम है। रुद्राक्ष के अनेक आकार हैं। आंवले के फल के बराबर रुद्राक्ष को श्रेष्ठ बताया गया है। मध्यम श्रेणी का रुद्राक्ष बेर के बराबर होता है। चने के बराबर का रुद्राक्ष निम्न कोटि का माना जाता है।

शिवपुराण के मुताबिक बेर फल के बराबर का रुद्राक्ष सुख, सौभाग्य में वृद्धि करता है। आंवले के समान रुद्राक्ष समस्त कष्टों का विनाश करने वाला होता है। कहते हैं रुद्राक्ष, जितना छोटा होता है उतना अधिक फल प्रदान करता है। रुद्राक्ष की माला फलदायिनी होती है।रुद्राक्ष को धारण करना कल्याणकारी होता है। जहां रुद्राक्ष की पूजा होती है वहां से लक्ष्मी दूर नहीं होती है। वहां कोई अनिष्ट नहीं होता है और सम्पूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

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