Why do Hindus worship the cow: जिन जिन महाशक्तियों को धरती की धारणा शक्ति बताया गया है, उनमें गौ प्रमुख हैं। शास्त्रों में कहा गया है- या लक्ष्मी: सर्वभूतानां सर्वदेवष्ववस्थिता।
धेनरूपेण सा देवी मम पापं व्यपोहतु।।
नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य: सौरभेयीभ्य एव च।
नमो ब्रहमसुताभ्यp पवित्राभ्यो नमो नम:।।
अर्थात् “जो सब प्रकार की भूति, लक्ष्मी है, जो सभी देवताओं में विद्यमान है, वह गौ रूपिणी देवी हमारे पापों को दूर करे। जो सभी प्रकार से पवित्र है, उन लक्ष्मी रूपिणी सुरभि कामधेनु की संतान तथा ब्रमपुत्री गौओं को मेरा बार बार नमस्कार है”। वेदों में पृथ्वी को भी गौ रूपा माना गया है। गायों के गोबर से शुद्ध खाद एवं उससे उत्पन्न वृषभों की सहायता से श्रेष्ठ एवं सात्विक कृषि तथा यज्ञीय हविष्य के योग्य श्रेष्ठ सोलह प्रकार के अन्नों की उत्पत्ति होती है। इससे प्राणिमात्र एवं देवगण तृप्त होते हैं।
गाय हिन्दु्ओं के लिए सबसे पवित्र पशु है। इस धरती पर पहले गायों की कुछ ही प्रजातियां होती थीं। उससे भी प्रारंभिक काल में एक ही प्रजाति थी। आज से लगभग 9,500 वर्ष पूर्व गुरु वशिष्ठ ने गाय के कुल का विस्तार किया और उन्होंने गाय की नई प्रजातियों को भी बनाया, तब गाय की 8 या 10 नस्लें ही थीं जिनका नाम कामधेनु, कपिला, देवनी, नंदनी, भौमा आदि था। कामधेनु के लिए गुरु वशिष्ठ से विश्वामित्र सहित कई अन्य राजाओं ने कई बार युद्ध किया, लेकिन उन्होंने कामधेनु गाय को किसी को भी नहीं दिया। गाय के इस झगड़े में गुरु वशिष्ठ के 100 पुत्र मारे गए थे।
दरअसल, भारत एक कृषि-प्रधान देश है। कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्रोत है। ऐसी अवस्था में किसान को ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है। गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है। प्राचीन भारत में गाय समृद्धि का प्रतीक मानी जाती थी। युद्ध के दौरान स्वर्ण, आभूषणों के साथ गायों को भी लूट लिया जाता था। जिस राज्य में जितनी गाएं होती थीं उसको उतना ही संपन्न माना जाता है। किंतु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनों की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है। इसके दुष्परिणाम भी झेलने पड़ रहे हैं।
एक समय वह भी था, जब भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था। इसका कारण केवल गाय थी। भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन थे। खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत समान माना जाता था। इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है। किंतु हरित क्रांति के नाम पर सन् 1960 से 1985 तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया। अब खेत उर्वरा नहीं रहे।
अब खेतों से कैंसर जैसी बीमारियों की उत्पत्ति होती है। रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरा शक्ति को घटाकर इसे बांझ बना दिया। गाय के गोबर में गौमूत्र, नीम, धतूरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है। वर्षों से हमारे भारतीय किसान यही करते आए हैं। आधुनिक विकास के नाम पर अमेरिकी और यूरोपीय लोगों ने हमारी सभ्यता, संस्कृति के साथ ही हमारी धरती को भी नष्ट कर दिया। आम भारतीय तो समझदार होता है लेकिन जिसने विदेशों में पढ़ाई की है उसके भारतीय होने की कोई गारंटी नहीं। खैर…
गायों की प्रमुख नस्लें : भारत में आजकल गाय की प्रमुख 28 नस्लें पाई जाती हैं। गायों की यूं तो कई नस्लें होती हैं, लेकिन भारत में मुख्यत: साहीवाल (पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश, बिहार), गिर (दक्षिण काठियावाड़), थारपारकर (जोधपुर, जैसलमेर, कच्छ), करन फ्राइ (राजस्थान) आदि हैं। विदेशी नस्ल में जर्सी गाय सर्वाधिक लोकप्रिय है। यह गाय दूध भी अधिक देती है। गाय कई रंगों जैसे सफेद, काला, लाल, बादामी तथा चितकबरी होती है। भारतीय गाय छोटी होती है, जबकि विदेशी गाय का शरीर थोड़ा भारी होता है।
33 कोटि देवता : हिन्दू धर्म अनुसार गाय में 33 कोटि के देवी-देवता निवास करते हैं। कोटि का अर्थ करोड़ नहीं, प्रकार होता है। इसका मतलब गाय में 33 प्रकार के देवता निवास करते हैं। ये देवता हैं- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और 2 अश्विन कुमार। ये मिलकर कुल 33 होते हैं। यही कारण है कि दिवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा के अवसर पर गायों की विशेष पूजा की जाती है और उनका मोर पंखों आदि से श्रृंगार किया जाता है। हिन्दुओं के हर धार्मिक कार्यों में सर्वप्रथम पूज्य गणेश व उनकी माता पार्वती को गाय के गोबर से बने पूजा स्थल में रखा जाता है।
सकारात्मक ऊर्जा का भंडार : वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि गाय में जितनी सकारात्मक ऊर्जा होती है उतनी किसी अन्य प्राणी में नहीं। किसी संत में ही उतनी ऊर्जा हो सकती है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय एकमात्र ऐसा प्राणी है, जो ऑक्सीजन ग्रहण करता है और ऑक्सीजन ही छोड़ता है, जबकि मनुष्य सहित सभी प्राणी ऑक्सीजन लेते और कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ते हैं। पेड़-पौधे इसका ठीक उल्टा करते हैं।घर के आसपास गाय के होने का मतलब है कि आप सभी तरह के संकटों से दूर रहकर सुख और समृद्धिपूर्वक जीवन जी रहे हैं। गाय के समीप जाने से ही संक्रामक रोग कफ, सर्दी, खांसी, जुकाम का नाश हो जाता है।
गाय की सूर्यकेतु नाड़ी : गाय की पीठ पर रीढ़ की हड्डी में स्थित सूर्यकेतु स्नायु हानिकारक विकिरण को रोककर वातावरण को स्वच्छ बनाते हैं। यह पर्यावरण के लिए लाभदायक है। दूसरी ओर, सूर्यकेतु नाड़ी सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है। गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में मिलता है। यह स्वर्ण दूध या मूत्र पीने से शरीर में जाता है और गोबर के माध्यम से खेतों में। कई रोगियों को स्वर्ण भस्म दिया जाता है।
पंचगव्य : पंचगव्य कई रोगों में लाभदायक है। पंचगव्य का निर्माण गाय के दूध, दही, घी, मूत्र, गोबर द्वारा किया जाता है। पंचगव्य द्वारा शरीर की रोग निरोधक क्षमता को बढ़ाकर रोगों को दूर किया जाता है। ऐसा कोई रोग नहीं है जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके।गाय का दूध व घी अमृत के समान है, वहीं दही हमारे पाचन तंत्र को सेहतमंद बनाए रखने में बहुत ही कारगर सिद्ध होता है, साथ ही दही के सैकड़ों फायदे हैं। दही में सुपाच्य प्रोटीन एवं लाभकारी जीवाणु होते हैं, जो क्षुधा को बढ़ाने में सहायता करते हैं। पंचगव्य का निर्माण देसी मुक्त वन विचरण करने वाली गायों से प्राप्त उत्पादों द्वारा ही करना चाहिए।
स्मरणीय है कि पंचगव्य से लगभग सभी रोगों (कैंसर) तक का इलाज हो जाता है। गुजरात के बलसाड़ नामक स्थान के निकट कैंसर अस्पताल में तीन हजार से अधिक कैंसर रोगियों का इलाज हो चुका है। पंचगव्य के कैंसरनाशक प्रभावों पर यूएस से पेटेंट भारत ने प्राप्त किए हैं। 6 पेटेंट अभी तक गौमूत्र के अनेक प्रभावों पर प्राप्त किए जा चुके हैं।
84 लाख योनियों के बाद : शास्त्रों और विद्वानों के अनुसार कुछ पशु-पक्षी ऐसे हैं, जो आत्मा की विकास यात्रा के अंतिम पड़ाव पर होते हैं। उनमें से गाय भी एक है। इसके बाद उस आत्मा को मनुष्य योनि में आना ही होता है। हम जितनी भी गाएं देखते हैं, ये 84 लाख योनियों के विकास क्रम में आकर अब अपने अंतिम पड़ाव में विश्राम कर रही हैं। गाय की योनि में होने का अर्थ है- विश्राम, शांति और प्रार्थना।
आप गौर से किसी गाय या बैल की आंखों में देखिए, तो आपको उसकी निर्दोषता अलग ही नजर आएगी। आपको उसमें देवी या देवता के होने का आभास होगा। यदि कोई व्यक्ति गाय का मांस खाता है तो यह निश्चित जान लें कि उसे रेंगने वालों कीड़ों की योनि में जन्म लेना ही होगा। यह शास्त्रोक्त तथ्य है। यदि कुछ या ज्यादा लोग ऐसा पाप करते हैं तो उन्हें फिर से 84 लाख योनियों के क्रम-विकास में यात्रा करना होगी जिसके चलते नई आत्माओं को मनुष्य योनि में आने का मौका मिलता रहता है। मानव योनि बड़ी मुश्किल से मिलती है। बहुत वेटिंग है।
गौमूत्र : गौमूत्र को सबसे उत्तम औषधियों की लिस्ट में शामिल किया गया है। वैज्ञानिक कहते हैं कि गौमूत्र में पारद और गंधक के तात्विक गुण होते हैं। यदि आप गो-मूत्र का सेवन कर रहे हैं तो प्लीहा और यकृत के रोग नष्ट कर रहे हैं।
* गौमूत्र कैंसर जैसे असाध्य रोगों को भी जड़ से दूर कर सकता है। गोमूत्र चिकित्सा वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय का लीवर 4 भागों में बंटा होता है। इसके अंतिम हिस्से में एक प्रकार का एसिड होता है, जो कैंसर जैसे रोग को जड़ से मिटाने की क्षमता रखता है। गौमूत्र का खाली पेट प्रतिदिन निश्चित मात्रा में सेवन करने से कैंसर जैसा रोग भी नष्ट हो जाता है।
* गाय के मूत्र में पोटेशियम, सोडियम, नाइट्रोजन, फॉस्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड होता है। दूध देते समय गाय के मूत्र में लैक्टोज की वृद्धि होती है, जो हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है।
* गौमूत्र में नाइट्रोजन, सल्फर, अमोनिया, कॉपर, लौह तत्व, यूरिक एसिड, यूरिया, फॉस्फेट, सोडियम, पोटेशियम, मैगनीज, कार्बोलिक एसिड, कैल्सियम, विटामिन ए, बी, डी, ई, एंजाइम, लैक्टोज, सल्फ्यूरिक अम्ल, हाइड्राक्साइड आदि मुख्य रूप से पाए जाते हैं। यूरिया मूत्रल, कीटाणुनाशक है। पोटेशियम क्षुधावर्धक, रक्तचाप नियामक है। सोडियम द्रव मात्रा एवं तंत्रिका शक्ति का नियमन करता है। मैग्नीशियम एवं कैल्सियम हृदयगति का नियमन करते हैं।
* गौमूत्र में प्रति-ऑक्सीकरण की क्षमता के कारण डीएनए को नष्ट होने से बचाया जा सकता है। गौमूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, आर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी संबंधित रोगों का उपचार भी संभव है।
* वैज्ञानिक कहते हैं कि गाय के गोबर में विटामिन बी-12 प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह रेडियोधर्मिता को भी सोख लेता है। आम मान्यता है कि गाय के गोबर के कंडे से धुआं करने पर कीटाणु, मच्छर आदि भाग जाते हैं तथा दुर्गंध का नाश हो जाता है।
* गाय के सींग गाय के रक्षा कवच होते हैं। गाय को इसके द्वारा सीधे तौर पर प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। यह एक प्रकार से गाय को ईश्वर द्वारा प्रदत्त एंटीना उपकरण है। गाय की मृत्यु के 45 साल बाद तक भी ये सुरक्षित बने रहते हैं। गाय की मृत्यु के बाद उसके सींग का उपयोग श्रेष्ठ गुणवत्ता की खाद बनाने के लिए प्राचीन समय से होता आ रहा है।
* गौमूत्र और गोबर, फसलों के लिए बहुत उपयोगी कीटनाशक सिद्ध हुए हैं। कीटनाशक के रूप में गोबर और गौमूत्र के इस्तेमाल के लिए अनुसंधान केंद्र खोले जा सकते हैं, क्योंकि इनमें रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों के बिना खेतिहर उत्पादन बढ़ाने की अपार क्षमता है। इसके बैक्टीरिया अन्य कई जटिल रोगों में भी फायदेमंद होते हैं। गौमूत्र अपने आस-पास के वातावरण को भी शुद्ध रखता है।
* कृषि में रासायनिक खाद्य और कीटनाशक पदार्थ की जगह गाय का गोबर इस्तेमाल करने से जहां भूमि की ऊर्वरता बनी रहती है, वहीं उत्पादन भी अधिक होता है। दूसरी ओर पैदा की जा रही सब्जी, फल या अनाज की फसल की गुणवत्ता भी बनी रहती है। जुताई करते समय गिरने वाले गोबर और गौमूत्र से भूमि में स्वतः खाद डलती जाती है।
* प्रकृति के 99% कीट प्रणाली के लिए लाभदायक हैं। गौमूत्र या खमीर हुए छाछ से बने कीटनाशक इन सहायक कीटों को प्रभावित नहीं करते। एक गाय का गोबर 7 एकड़ भूमि को खाद और मूत्र 100 एकड़ भूमि की फसल को कीटों से बचा सकता है। केवल 40 करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में 84 लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है।
* गाय के गोबर का चर्म रोगों में उपचारीय महत्व सर्वविदित है। प्राचीनकाल के मकानों की दीवारों और भूमि को गाय के गोबर से लीपा-पोता जाता था। यह गोबर जहां दीवारों को मजबूत बनाता था वहीं यह घरों पर परजीवियों, मच्छर और कीटाणुओं के हमले भी रोकता था। आज भी गांवों में गाय के गोबर का प्रयोग चूल्हे बनाने, आंगन लीपने एवं मंगल कार्यों में लिया जाता है।