सत्ताईसवां रहस्य
भारत के डॉक्टर 2003 और 2005 में भी प्रहलाद जानी की अच्छी तरह जांच-परख कर चुके हैं, पर अंत में दांतों तले अंगुली दबाने के सिवाय कोई विज्ञानसम्मत व्याख्या नहीं दे पाए। इन जांचों के अगुआ रहे अहमदाबाद के न्यूरोलॉजिस्ट (तंत्रिका रोग विशेषज्ञ) डॉ. सुधीर शाह ने कहा- ‘उनका कोई शारीरिक ट्रांसफॉर्मेशन (कायाकल्प) हुआ है। वे जाने-अनजाने में बाहर से शक्ति प्राप्त करते हैं। उन्हें कैलोरी (यानी भोजन) की जरूरत ही नहीं पड़ती। हमने तो कई दिनों तक उनका अवलोकन किया, एक-एक सेकंड का वीडियो लिया। उन्होंने न तो कुछ खाया, न पिया, न पेशाब किया और न शौचालय गए।’
आत्मा या प्राण का कहीं और होना : वैसे कहा जाता है कि हमारी आत्मा का वास दोनों भोहों के बीच भृकुटी में रहता है। लेकिन हमने पुराणों और अन्य ग्रंथों में पढ़ा है कि कुछ लोगों, पशुओं या पक्षियों का प्राण या जीव अन्य कहीं होता था, जैसे किसी राक्षस की जान तोते में थी। अब जब तक तोते को नहीं मारो तो राक्षस को मारना असंभव था। उसी तरह रावण की जान नाभि में थी। क्या ऐसा भी संभव हो सकता है?
ऐसी मान्यता है कि रावण ने अमरत्व प्राप्ति के उद्देश्य से भगवान ब्रह्मा की घोर तपस्या कर वरदान मांगा, लेकिन ब्रह्मा ने उसके इस वरदान को न मानते हुए कहा कि तुम्हारा जीवन नाभि में स्थित रहेगा। रावण की अजर-अमर रहने की इच्छा रह ही गई। यही कारण था कि जब भगवान राम से रावण का युद्ध चल रहा था तो रावण और उसकी सेना राम पर भारी पड़ने लगे थे। ऐसे में विभीषण ने राम को यह राज बताया कि रावण का जीवन उसकी नाभि में है। नाभि में ही अमृत है। तब राम ने रावण की नाभि में तीर मारा और रावण मारा गया। हालांकि रावण की जान तो नाभि में थी लेकिन हमने पढ़ा है कि कई दैत्यों, दानवों, राक्षसों आदि की जान उनके खुद के शरीर से बाहर कहीं ओर सुरक्षित रखी होती थी। राक्षस की जान तोते में थी। तोते की गर्दन मोड़ो तो राक्षस की गर्दन मुड़ जाती थी।