Rituals & Significance Of Chhath Puja । क्या है छठ पूजा का महत्व जानें

Chhath-Puja

Rituals & Significance Of Chhath Puja : भगवान सूर्य नारायण को हमारे धर्म ग्रंथों में प्रत्यक्ष देवता माना गया है। संसार के हर प्राणी के जीवन स्त्रोत सूर्य हैं. सूर्य के बिना हम इस धरती पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते।  सूर्य की साधना से ही आध्यात्मिक ऊर्जा की तलाश पूरी होती है। भगवान सूर्य के प्रति आस्था प्रकट करने के लिए ही सूर्य षष्ठी व्रत रखा जाता है। ये व्रत छठ माता की पूजा के नाम से भी जाना जाता है।

सूर्यदेव को शाम को जल और दूध का अर्घ्य समर्पित किया जाता है। कार्तिक शुक्ल षष्ठी को संपन्न होने वाला सूर्य-षष्ठी व्रत, छठ उत्तर-भारत सहित देश के दूसरे कई हिस्सों में मनाया जाता है. वास्तव में, सूर्य को समर्पित ये व्रत सूर्य-साधना का ही स्वरूप है. छठ के अवसर पर भगवान सूर्य के प्रति श्रद्धालुओं की श्रद्धा और खुशी देखते ही बनती है। सच तो ये है कि पूर्व-वैदिक काल में ही सूर्य पूजा के प्रमाण मिलते हैं. वैदिक युग में जिन देवताओं को सर्वाधिक महत्व मिला, उनमें सूर्य, अग्नि और इंद्र मुख्य हैं। सूर्य के बिना अग्नि और इन्द्र का भी महत्व कम हो जाता है।

कब होती हैं छठ पूजा ? :- छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती हैं | यह चार दिवसीय त्यौहार होता हैं जो कि चौथ से सप्तमी तक मनाया जाता हैं | इसे कार्तिक छठ पूजा कहा जाता हैं | इसके आलावा चैत्र माह में भी यह पर्व मनाया जाता हैं जिसे चैती छठ पूजा कहा जाता हैं |इसे खासतौर पर उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवम नेपाल में मनाया जाता हैं | यह दिन उत्सव की तरह हर्ष के साथ मनाया जाता हैं |

छठ पूजा कथा इतिहास :- इसका बहुत अधिक महत्व होता हैं | इस दिन छठी माता की पूजा की जाती हैं और छठी माता बच्चो की रक्षा करती हैं | इसे संतान प्राप्ति की इच्छा से किया जाता हैं |

इसके पीछे के पौराणिक कथा हैं :- बहुत समय पहले एक राजा रानी हुआ करते थे | उनकी कोई सन्तान नहीं थी | राजा इससे बहुत दुखी थे | महर्षि कश्यप उनके राज्य में आये | राजा ने उनकी सेवा की महर्षि ने आशीर्वाद दिया जिसके प्रभाव से रानी गर्भवती हो गई लेकिन उनकी संतान मृत पैदा हुई जिसके कारण राजा रानी अत्यंत दुखी थे जिस कारण दोनों ने आत्महत्या का निर्णय लिया |

जैसे ही वे दोनों नदी में कूदने को हुए उन्हें छठी माता ने दर्शन दिये और कहा कि आप मेरी पूजा करे जिससे आपको अवश्य संतान प्राप्ति होगी | दोनों राजा रानी ने विधि के साथ छठी की पूजा की और उन्हें स्वस्थ संतान की प्राप्ति हुई |तब ही से कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को यह पूजा की जाती हैं |

छठ पूजा व्रत विधि :- यह पर्व चार दिन का होता हैं | बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता हैं |इसे उत्तर भारत में सबसे बड़ा त्यौहार मानते हैं | इसमे गंगा स्नान का महत्व सबसे अधिक होता हैं |

यह व्रत स्त्री एवम पुरुष दोनों करते हैं | यह चार दिवसीय त्यौहार हैं जिसका माहत्यम कुछ इस प्रकार हैं :

1 नहाय खाय :- यह पहला दिन होता हैं | यह कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से शुरू होता हैं | इस दिन सूर्य उदय के पूर्व पवित्र नदियों का स्नान किया जाता हैं इसके बाद ही भोजन लिया जाता हैं जिसमे कद्दू खाने का महत्व पुराणों में निकलता हैं |

2 लोहंडा और खरना :- यह दूसरा दिन होता हैं जो कार्तिक शुक्ल की पंचमी कहलाती हैं | इस दिन, दिन भर निराहार रहते हैं | रात्रि में खिरनी खाई जाती हैं और प्रशाद के रूप में सभी को दी जाती हैं | इस दिन आस पड़ौसी एवम रिश्तेदारों को न्यौता दिया जाता हैं |

3 संध्या अर्घ्य :- यह तीसरा दिन होता हैं जिसे कार्तिक शुक्ल की षष्ठी कहते हैं | इस दिन संध्या में सूर्य पूजा कर ढलते सूर्य को जल चढ़ाया जाता हैं जिसके लिए किसी नदी अथवा तालाब के किनारे जाकर टोकरी एवम सुपड़े में  देने की सामग्री ली जाती हैं एवम समूह में भगवान सूर्य देव को अर्ध्य दिया जाता हैं | इस समय दान का भी महत्व होता हैं | इस दिन घरों में प्रसाद बनाया जाता हैं जिसमे लड्डू का अहम् स्थान होता हैं |

4 उषा अर्घ्य :- यह अंतिम चौथा दिन होता हैं | यह सप्तमी का दिन होता हैं | इस दिन उगते सूर्य को अर्ध्य दिया जाता हैं एवम प्रसाद वितरित किया जाता हैं | पूरी विधि स्वच्छता के साथ पूरी की जाती हैं |

यह चार दिवसीय व्रत बहुत कठिन साधना से किया जाता हैं | इसे हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत कहा जाता हैं जो चार दिन तक किया जाता हैं | इसके कई नियम होते हैं :

छठ व्रत के नियम :- इसे घर की महिलायें एवम पुरुष दोनों करते हैं |

इसमें स्वच्छ एवम नए कपड़े पहने जाते हैं जिसमे सिलाई ना हो जैसे महिलायें साड़ी एवम पुरुष धोती पहन सकते हैं |

इन चार दिनों में व्रत करने वाला धरती पर सोता हैं जिसके लिए कम्बल अथवा चटाई का प्रयोग कर सकता हैं |

इन दिनों घर में प्याज लहसन एवम माँस का प्रयोग निषेध माना जाता हैं |

इस त्यौहार पर नदी एवम तालाब  के तट पर मैला लगता हैं | इसमें छठ पूजा के गीत गाये जाते हैं | जहाँ प्रसाद वितरित किया जाता हैं | इस त्यौहार में सूर्य देव को पूजा जाता हैं | इसके आलावा सूर्य पूजा का महत्व इतना अधिक किसी पूजा में नहीं मिलता |

इसके पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी हैं , कहते हैं छठी के समय पर धरती पर सूर्य की हानिकारक विकिरण आती हैं | इससे मनुष्य जाति को कोई प्रभाव न पड़े इसलिए नियमो में बाँधकर इस व्रत को संपन्न किया जाता हैं | इससे मनुष्य स्वस्थ रहता हैं |

 

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