कौए और श्राद्ध
प्राचीन मान्यधता के अनुसार पितर पक्ष में पूर्वजों की आत्माइऐं धरती पर आती हैं क्यों कि उस समय चन्द्रनमा, धरती के सबसे ज्याूदा नजदीक होता है और पितर लोक को चन्द्र मा से ऊपर माना गया है। इसलिए जब चन्द्र मा, धरती के सबसे नजदीक होता है और ग्रहों की इस स्थिति में पितर लोक के पूर्वज, धरती पर रहने वाले अपने वंशजों के भी सर्वाधिक करीब होते हैं तथा कौओं के माध्यकम से अपने वंशजों द्वारा अर्पित किए जाने वाले भोजन को ग्रहण करते हैं।
आश्च र्य की बात ये भी है कि यदि हम सामान्यत परिस्थितियों में कौओं को भोजन करने के लिए आमंत्रित करें, तो वे नहीं आते, लेकिन पितरपक्ष में अक्स र कौओं को पितरों के नाम पर अर्पित किए जाने वाले श्राद्ध के भोजन को ग्रहण करते हुए देखा जा सकता है।
इसलिए पितर पक्ष में किए जाने वाले श्राद्ध के दौरान काफी अच्छाा व स्वा्दिष्टक भोजन पकाया जाता है, क्योंाकि मान्येता ये है कि इस स्वा दिष्टि भोजन को व्याक्ति के पूर्वज ग्रहण करते हैं और संतुष्ट होने पर आशीर्वाद देते हैं, जिससे पूरे साल भर धन-धान्य् व समृद्धि की वृद्धि होती है, जबकि श्राद्ध न करने वाले अथवा अस्वाकदिष्टू, रूखा-सूखा, बासी भोजन देने वाले व्यहक्ति के पितर (पूर्वज) कुपित होकर श्राप देते हैं, जिससे घर में विभिन्नय प्रकार के नुकसान, अशान्ति, अकाल मृत्युप व मानसिक उन्माुद जैसी बिमारियां होती हैं।