अमरनाथ यात्रा का इतिहास

श्रद्धालुओं को हतोत्साहित करने के लिए कभी लिंग के पिघलने तो कभी कृत्रि‍म लिंग लगाने का विवाद खड़ा किया गया, परंतु श्रद्धा कम नहीं हुई।लोगों की बढ़ती भीड़ को देखकर सन् 2000 में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की भी स्‍थापना की गई। श्रद्धालुओं की इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए केंद्र के आग्रह पर ग़ुलाम नबी आज़ाद सरकार ने 26 मई 2008 को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को बालटाल के पास डोमेल में वन विभाग की 800 कनाल यानी 40 हेक्‍टेयर ज़मीन आवंटित की थी, ताकि यात्रियों की सुविधा के लिए अस्थाई शिविर यानी टेंपररी शेड बनाए जा सकें।

प्रस्‍तावित शेल्‍टर में नहाने, खाने और रात में ठहरने की सु‍विधा होती। बदले में 2.5 करोड़ रुपए का मुआवजा भी तय किया गया था। हालांकि पहले मामला जम्‍मू–कश्‍मीर हाईकोर्ट में गया, जहां अदालत ने साफ़ कहा कि यात्रियों की सुविधा के लिए प्रीफैब्रिकेटिड हट बनाए जाएं और अन्य सुविधाएं दी जाएं।मौजूदा मुख्यमंत्री मेहबूबा मुफ़्ती, उनकी पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और घाटी के अलगाववादी नेताओं ने ज़मीन हस्तांतरण का भारी विरोध किया था।

इनकी शह पर श्रीनगर में हिंसा हुई, जहां पुलिस की गोली से कई उपद्रवी मारे गए। तब राज्य में कांग्रेस-पीडीपी गठजोड़ की सरकार थी। मेहबूबा ने धमकी दी कि ज़मीन आवंटन रद्द नहीं हुआ तो समर्थन वापस ले लेंगी। लिहाज़ा, पहली जुलाई 2008 को ज़मीन का आवंटन रद्द कर दिया गया और श्राइन बोर्ड के मुख्‍य कार्यकारी व राज्‍यपाल के प्रधान सविच अरुणकुमार को भी बर्खास्‍त कर दिया गया।

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