अमरनाथ यात्रा का इतिहास

इससे इंसानी गतिविधियां महज कुछ महीने रहती हैं। बाक़ी समय यहां का मौसम इंसान के रहने लायक नहीं होता। गर्मी शुरू होने पर यहां बर्फ पिघलती है और अप्रैल से यात्रा की तैयारी शुरू की जाती है।पवित्र गुफा की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए चंदनवाड़ी से अमरनाथ और बालटाल के बीच ठहरने या विश्राम करने का कोई अच्छा ठिकाना नहीं है।

30 किलोमीटर से अधिक लंबे रास्‍ते में अकसर तेज़ हवा के साथ कभी हल़की तो कभी भारी बारिश होती रहती है और श्रद्धालुओं के पास भीगने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं होता। बचने के लिए कहीं कोई शेड नहीं है, सो बड़ी संख्‍या में लोग बीमार भी हो जाते हैं। यही वजह है कि कमज़ोर कद-काठी के यात्री शेषनाग की हड्डी ठिठुराने वाली ठंड सहन नहीं कर पाते और उनकी मौत तक हो जाती है, इसलिए मेडिकली अनफिट लोगों को अमरनाथ यात्रा पर नहीं जाने की सलाह दी जाती है।

दरअसल, आतंकवाद और धमकियों के बावजूद शेष भारत से लोगों, का जम्‍मू कश्‍मीर आना-जाना कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। वजह रहे वैष्‍णोदेवी, अमरनाथ, शिवखोड़ी, खीर भवानी और बुड्ढा अमरनाथ जैसे धार्मिक स्‍थल। पहले वैष्‍णोदेवी की चढ़ाई लो‍कप्रिय हुई, फिर अमरनाथ यात्रा। देश भर से अमरनाथ गुफा जाने वालो की संख्या लगातार बढ़ ही रही है।

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