चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ़ का पुल है। यहीं से पिस्सू घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सू घाटी में देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई, जिसमें राक्षसों की हार हुई। यात्रा में पिस्सू घाटी जोख़िम भरा स्थल है। यह समुद्रतल से 11120 फ़ीट ऊंचाई पर है।पिस्सू घाटी के बाद अगला पड़ाव 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में पड़ता है।
लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यात्रा बहुत कठिन होती है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और ख़तरनाक है। यात्री शेषनाग पहुंचने पर भयानक ठंड का सामना करता है। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इसमें झांकने पर भ्रम होता है कि आसमान झील में उतर आया है। झील करीब डेढ़ किलोमीटर व्यास में फैली है।
कहा जाता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है। 24 घंटे में शेषनाग एक बार झील के बाहर निकलते हैं, लेकिन दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होता है। तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर दूर है। बीच में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे पार करने पड़ते हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: 13500 फ़ीट व 14500 फ़ीट है।