अमरनाथ यात्रा का इतिहास

यही वजह है कि दिनोंदिन इसे लेकर उत्साह बढ़ता ही जा रहा है।दरअसल, स्थानीय सरकार की लगातार उपेक्षा के बावजूद श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। अब तो अमरनाथ यात्रा धार्मिक यात्रा से बढ़कर राष्‍ट्रीयता का प्रतीक बन गई है। जम्‍मू बेस कैंप से जब श्रद्धालुओं का जत्‍था निलता है तो ‘जय भालेनाथ’ ‘बम-बम भोले’ और ‘हर-हर महादेव’ के साथ साथ ‘वंदे मातरम्’ ‘जयहिंद’ और ‘भारत माता की जय’ के भी सुर निकलते हैं।

यही वजह है कि इस यात्रा पर आतंकवादियों की धमकियों और हमलों का भी कोई असर नहीं पड़ा। जम्मू से लेकर श्रीनगर, पहलगाम-बालटाल ही नहीं, पूरी यात्रा के दौरान जगह-जगह गैरसरकारी संस्थाओं की ओर से लंगर की व्यवस्था की जाती है। लोग खाते-पीते धूनी रमाए भोलेनाथ के दर्शन के लिए आगे बढ़ते रहते हैं।

हिमालय की गोदी में स्थित अमरनाथ हिंदुओं का सबसे ज़्यादा आस्था वाला पवित्र तीर्थस्थल है। अमरनाथ की ख़ासियत पवित्र गुफा में बर्फ़ से नैसर्गिक शिवलिंग का बनना है। प्राकृतिक हिम से बनने के कारण ही इसे स्वयंभू ‘हिमानी शिवलिंग’ या ‘बर्फ़ानी बाबा’ भी कहा जाता है।आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक होने वाले पवित्र हिमलिंग दर्शन के लिए लाखों श्रद्धालु अमरनाथ यात्रा पर जाते हैं।

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