इस तरह अमरनाथ की कठिन यात्रा पर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए उनके अपने देश में शिविर बनाने का सपना साकार नहीं हो सका।वैसे अस्थाई शेड की ज़रूरत बालटाल ही नहीं, डोमेल, संगम टॉप, अमरनाथ, पंचतरिणी, पिस्सू टॉप, चंदनवाड़ी और नुनवन में भी है, क्योंकि कपड़े के जो टेंट बनाते हैं, उसमें श्रद्धालु भीग जाते हैं। राज्य में ऐसा पहली बार नहीं हुआ था कि किसी संस्थान को वन विभाग की भूमि दी गई हो।
राजौरी में बाबा बडशाह गुलाम यूनिवर्सिटी के लिए पांच हजार कनाल भूमि दी गई। इसी तरह कई मजहबी तंजीम को वन विभाग की ज़मीन दी जा चुकी है। इतना ही नहीं वन भूमि की ज़मीन के लिए आंसू बहाने वाले कई कश्मीरी नेताओं ने अपना घर बन विभाग की ज़मीन पर क़ब्ज़ा करके बनवाया है।
दरअसल, यह कश्मीरियों के आतिथ्य का असर रहा है कि सदियों से लोग ख़ूबसूरत पहाड़ों और झीलों का आनंद लेने धरती के इस स्वर्ग पर आते रहे हैं। बेहतरीन मेजबानी के लिए मशहूर कश्मीरी आवाम जागरूक और संवेदनशील मानी जाती रही है। उसी अवाम की तहज़ीब और डेमोग्राफी केवल 40 हेक्टर ज़मीन श्राइन बोर्ड को देने से से ख़तरे में पड़ गई थी।
भारत में हर धर्म के लोग रहते हैं, हिंदू हो, मुसलमान हो, सिख हों या ईसाई हों, केंद्र या राज्य सरकारें सभी महत्वपूर्ण धर्मथलों पर बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी और गुजरात से बंगाल तक कहीं भी ज़मीन आवंटित करने का अधिकार होना चाहिए ताकि जो लोग कहीं जाते हैं, उन्हें बेहतर सुविधाएं दी जा सकें।