ढोल :
ढोलक कई प्रकार के होते हैं। अक्सर इन्हें मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है। ढोल भारत के बहुत पुराने ताल वाद्य यंत्रों में से है। ये हाथ या छड़ी से बजाए जाने वाले छोटे नगाड़े हैं, जो मुख्य रूप से लोक संगीत या भक्ति संगीत को ताल देने के काम आते हैं।
ढोलक आम, बीजा, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी से बनाई जाती है। लकड़ी को पोला करके दोनों मुखों पर बकरे की खाल को मजबूत सूत की रस्सियों से कसा जाता है। रस्सी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं। चमड़े अथवा सूत की रस्सी द्वारा इसको खींचकर कसा जाता है। ढोलक और ढोलकी को अधिकतर हाथ से बजाया जाता है जबकि ढोल को अलग-अलग तरह की छड़ियों से।
प्राचीनकाल में ढोल का प्रयोग महत्वपूर्ण था। यह पूजा और नृत्य गान के अलवा खूंखार जानवरों को भगाने के काम भी आता था। इसके अलावा इसका उपयोग चेतावनी के रूप में भी किया जाता था।