शब्द का निर्वहन उसका अर्थ व्यक्त करने की क्षमता नहीं है। इसकी अपेक्षा सिरीमॉनी शब्द का प्रयोग संस्कृत ‘कर्म’ अथवा सामान्य रूप से धार्मिक क्रियाओं के लिए अधिक उपयुक्त है।’’ (हिंदी संस्कार, डॉ० राजबली पांडेय) ‘संस्कार’ का तात्पर्य निरी बाह्य धार्मिक क्रियाओं, अनुशासित अनुष्ठान, अर्थ आडंबर, कोरा कर्मकांड, राज्य द्वारा निर्दिष्ट चलन, औपचारिकताओं तथा अनुशासित व्यवहार से नहीं है, जैसा कि साधारणतः समझा जाता है और न उसका अभिप्राय उन विधि-विधानों तथा कर्मकांडों सें ही है, जिनसे हम विधि का स्वरूप, धार्मिक कृत्य अथवा अनुष्ठान के लिए आवश्यक या सामान्य क्रिया अथवा किसी चर्च के विशिष्ट चलनों (परंपरा) के अर्थ में लेते हैं। ‘संस्कार’ शब्द का अधिक उपयुक्त पर्याय अंग्रेजी का ‘सेक्रामेंट’ शब्द है, जिसका अर्थ है–धार्मिक विधि-विधान अथवा कृत्य, जो आंतरिक व आत्मिक सौंदर्य का बाह्य तथा दृश्य प्रतीक माना जाता है और जिसका व्यवहार प्राच्य, प्राक्-सुधार कालीन पाश्चात्य तथा रोमन कैथोलिक चर्च ‘बपतिस्मा’, संपुष्टि (कन्फर्मेशन), यूखारिस्त, व्रत (पीनांस, अभ्यंजन (एक्सट्रीम अंक्शन), आदेश तथा विवाह के सात कृत्य के लिए करते थे। सेक्रामेंट (Sacrament) शब्द का अर्थ किसी वचन अथवा प्रतिमा की पुष्टि, रहस्यपूर्ण महत्त्व की वस्तु, पवित्र प्रभाव भी है। (ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी) इस प्रकार ‘सेक्रामेंट’ शब्द अनेक अन्य धार्मिक क्षेत्रों में भी व्याप्त कर लेता है, जो संस्कृत साहित्य में शुद्धि, प्रायश्चित्त, व्रत आदि शब्दों के अंतर्गत आते हैं।
संस्कृत भाषा में ‘संस्कार’ शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत की सम् पूर्वक ‘कृञ्’ धातु से ‘घञ्’ प्रत्यय करके की गई है। (सम्+कृ+घञ्=संस्कार) और इसका प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। मीमांसक इसका आशय यज्ञांगभूत पुरोडाश आदि की विधिवत् शुद्धि से समझते हैं–प्रोक्षणादिजन्यसंस्कारों