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परमेश्वर का वचन – बाइबल – What Does the Bible Say About Word Of God

बाइबल कोई दर्शन शास्त्र की पुस्तक नहीं फिर भी इसमें दर्शन है। बाइबल वैज्ञानिक शोध की पुस्तक नहीं फिर वैज्ञानिक तथ्यों तथा बाइबल में कोई विरोध नहीं है। बाइबल इतिहास की पुस्तक नहीं है, परन्तु इतिहास का लेखा इसमें एकदम सटीक पाया जाता है।

बाइबल परमेश्वर के द्वारा मनुष्यों को दी गई पुस्तक है, जो परमेश्वर का पुत्र अर्थात यीशु मसीह को जगत के एकमात्र उद्धारकर्ता के रूप में प्रकट करती है।

किसी ने बाइबल के विषय में कहा है : “समझदार होने के लिये इसे पढ़ो, सुरक्षित रहने के लिये इस पर विश्वास करो, और धर्मी बनने के लिये इसका अभ्यास करो।”

1. बाइबल परमेश्वर के प्रेरित वचन हैं

2 तीमु 3:16  “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, और सुधार, और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।”

“सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है।” “प्रेरणा से” का अभिप्राय यह है कि पवित्र आत्मा ने बाइबल के लेखकों अपने ईश्वरीय प्रभाव से प्रेरित करके लिखवाया। बाइबल में परमेश्वर के वचन का समावेश ही नहीं; परंतु यह स्वयं परमेश्वर का वचन है।

बाइबल के लेखकों ने किसी मनुष्य की प्रेरणा या इच्छा से नहीं लिखा, परंतु “भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जा कर परमेश्वर की ओर

से बोलते थे।” 2 पतरस 1:21 ।। दाऊद कहता है, “यहोवा का आत्मा मुझ में हो कर बोला , और उसी का वचन मेरे मुंह में आया।” 2 शमुएल 23:2 ।।

2. पवित्र आत्मा बाइबल का लेखक है। 2 पतरस 1:21

मनुष्य एक साधन या ज़रिया है जिसके द्वारा पवित्र आत्मा ने बाइबल लिखवायी। इसका परिणाम : अचूक त्रुटि रहित तथा पूर्णतः विश्वासयोग्य परमेश्वर के वचन। भजन संहिता 119:89; मत्ती 24:35 ।।

 3. बाइबल एक कठिन पुस्तक है

1 कुरि 2:14-16 “परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता।”

बाइबल एक कठिन पुस्तक है क्योंकि यह अनंत समय से समय की सीमा में और असीमित सर्वशक्तिमान परमेश्वर से सीमित मनुष्य के पास आई है। यदि बाइबल सहज मनुष्य की समझ आ जाती तो यह एक सहज पुस्तक होती।  परंतु इसलिए कि बाइबल परमेश्वर से है, यह आत्मिक है। इससे पहले कि आप इसकी शिक्षाओं को ग्रहण करें, अवश्य है कि आप आत्मा के द्वारा नया जन्म लें। देखें, यूहन्ना 3:6। जब बाइबल लें तो पहले प्रार्थना करें कि पवित्र आत्मा आप का शिक्षक हो और आपका मार्ग दर्शन करे ताकि आप उसके पवित्र वचनों को बेहतर रीति से समझ सकें वरना यह आपके लिए एक कठिन और बन्द किताब बन जायेगी। यूहन्ना 16:12-15।।

4. बाइबल एकत्व की पुस्तक है

2 पतरस 1:21 “क्योंकि कोई भी भविष्यवाणी मनुष्य की इच्छा से कभी नहीं हुई पर भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जा कर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।।”

बाइबल की एकता या एकरूपता आश्चर्यजनक है। यह 66 पुस्तकों का संकलन है, जो 35 से भी अधिक अलग- अलग लेखकों के द्वारा, तकरीबन 1600 वर्षों के लंबे समय में लिखी गई। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों से लेखकों का प्रतिनिधित्व है। इस के लेखकों में राजा, मछुवारे, राजकीय अधिकारी, किसान, शिक्षक, तथा वैद्य शामिल हैं। इनके विषयों में धर्म, इतिहास, व्यवस्था, विज्ञान, काव्य, कथा, जीवनी तथा भविष्यवाणियां सम्मिलित है। फिर भी ऐसे

सामंजस्य से आपस में सहमत हैं मानो कई भाग मिल कर मानव शरीर का रूप लेते हैं।

विभिन्न पृष्ठभूमि से आए 35 लेखकों के लिए इतने विषयों पर 1500 वर्षों में लिखना और वह भी पूर्ण समन्वय में, असंभव प्रतीत होता है। इसके लिए एक ही कथन पर्याप्त है : “भक्त जन पवित्र आत्मा के द्वारा उभारे जा कर परमेश्वर की ओर से बोलते थे।”

5. बाइबल में विशेष सामर्थ्य है

इब्रा 4:12 ” क्योंकि परमेश्वर का वचन जीवित, प्रबल और किसी भी दोधारी तलवार से तेज़ है। वह प्राण और आत्मा, जोड़ों और गूदे, दोनों को आरपार बेधता और मन के विचारों तथा भावनाओं को परखता है।”

बाइबल में तलवार के समान विभाजित करने की शक्ति है। बाइबल या तो मनुष्य को पाप से अलग कर देगी , भजन संहिता 119:11 या पाप मनुष्य को बाइबल से अलग कर देगा, यशायाह 59:2।

बाइबल में दर्पण के समान प्रतिबिंबित की शक्ति है – याकूब 1:22-25।। बाइबल में हम अपने को ऐसे देखते हैं जैसे परमेश्वर हम पापियों को देखता है। रोमियो 3:23।

बाइबल में जल के समान शुद्ध कर देने की शक्ति है – इफि 5:26। दाऊद ने यह प्रार्थना की कि परमेश्वर मेरे अधर्म को पूरी तरह से धो दे और मुझे पापों से शुद्ध कर। भजन संहिता 51:2 ।।

बाइबल में बीज के समान उत्पन्न करने की शक्ति है – 1 पतरस 1:23।। हम परमेश्वर की संतान हैं, क्योंकि हमने परमेश्वर के अविनाशी बीज के द्वारा उसके परिवार में जन्म लिया है। यह नया जन्म है। यूहन्ना 3:1-7।।

बाइबल में भोजन के समान पोषण करने की शक्ति है – 1 पतरस 2:2।। बाइबल हमारे प्राणों का आत्मिक भोजन है। कोई भी मसीही बिना

परमेश्वर का वचन को पढ़े, प्रभु में बलिष्ठ नहीं हो सकता।

6. बाइबल विश्वासी को पवित्र शास्त्र का अध्ययन करने की आज्ञा देता है

2 तीमु 2:15 ” अपने आप को परमेश्वर का ग्रहण योग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर, जो लज्जित होने न पाए, और जो सत्य के वचन को ठीक रीति से काम में लाता हो।”

” अपने आप को परमेश्वर का ग्रहण योग्य और ऐसा काम करने वाला ठहराने का प्रयत्न कर” आज्ञा है। जब आप बाइबल का अध्ययन करेंगे, तो जानेंगे कि न सिर्फ इसमें परमेश्वर का वचन है बल्कि यह परमेश्वर का वचन है। आप ध्यान रखें कि परमेश्वर के वचन में परमेश्वर के शब्द हैं और साथ ही शैतान ,दुष्टात्माओं, स्वर्गदूतों, मनुष्यों के भी शब्द हैं, भले और बुरे दोनों। परमेश्वर सत्य है और झूठ नहीं बोलता। शैतान “झूठा है और झूठ का पिता है।” मनुष्य भौतिक है तथा इसलिए सीमित है और हमेशा सच नहीं बोल सकता।

जब आप बाइबल का अध्ययन करें, तो सबसे पहले अपने से यह प्रश्न पूछें : कौन बात कर रहा है : परमेश्वर, शैतान, स्वर्गदूत या मनुष्य? दूसरा प्रश्न यह कि किस से बात हो रही हैं : इस्राएल राज्य से, अन्य जातियों से, कलीसिया से या किसी मनुष्य से? तीसरा प्रश्न यह रखें कि मैं किस तरह इस पवित्र शास्त्र को व्यक्तिगत जीवन में लागू करके एक बेहतर मसीही बन सकता हूं?

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