प्रत्येक व्यक्ति के मन में यह प्रश्न अवश्य उठता है कि परमेश्वर कौन है? वह कैसा है? इसका क्या प्रमाण है कि परमेश्वर है? उसका आरम्भ कब हुआ? क्या हम परमेश्वर को जान सकते हैं? जब हम अपने चारों ओर प्रकृति को निहारते हैं तो उसकी सुन्दरता पर चकित हो जाते हैं। खिल-खिलाते फूल, खूबसूरत पेड़ पौधे, सूरज चाँद-सितारों से भरे आकाश का गौरव, और पहाड़ों व समुद्र का विशाल आकार, यह सभी हमें यह सोचने पर बाध्य कर देते हैं कि इन सब का रचने वाला कौन है? सृष्टि के नियमों को किसने नियुक्त किया है? इन सब प्रश्नों का एक मात्र उत्तर यही है कि इस सृष्टि का एक महान सृष्टिकर्ता है, जो अपनी सामर्थ्य के द्वारा इसे सम्भालताहै।
पवित्र बाइबल में लिखा है, “मूर्ख ने अपने मन में कहा है, कि परमेश्वर है ही नहीं …।“ किसी भी व्यक्ति को जिसमें लेशमात्र भी बुद्धि है यह मानने में ज़रा सा भी संदेह नहीं करेगा कि एक जीवित परमेश्वर है। सारी सृष्टि परमेश्वर के अस्तित्व की घोषणा कर रही है। पवित्र बाइबल में लिखा है, “आकाश परमेश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है और आकाश मंडल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। दिन-दिन से बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है। ना तो कोई बोली है और न भाषा जहाँ उनका शब्द सुनाई नहीं देता है। उनका स्वर सारी पृथ्वी पर गूँज गया है, और उनके वचन जगत की छोर तक पहुँच गए हैं। उनमें उसने सूर्य के लिए एक मण्डप खड़ा किया है, जो दुल्हे के समान अपने महल से निकलता है। वह शूरवीर की नाई अपनी दौड़ दौड़ने को हर्षित होता है। वह आकाश की एक छोर से निकलता है, और वह उसकी दूसरी छोर तक चक्कर मारता है; और उसकी गर्मी सबको पहुँचती है।“ परमेश्वर का अस्तित्व है और केवल मूर्ख व्यक्ति ही इस बात को अस्वीकार कर सकता है।
यदि कोई उड़ते हुए विमान को देख कर कहे कि वह विमान बिना चालक के उड़ रहा है क्योंकि उसे चालक दिखाई नहीं दे रहा है, तो यह उसकी मूर्खता होगी। इसी प्रकार आकाश और