होनी ही चाहिए जिसके कारण हर वस्तु अस्तित्व में आई। आखिरकार, कोई वस्तु “कारण-रहित” भी होनी चाहिए ताकि अन्य सब वस्तुओं के अस्तित्व में आने का कारण बने। वह “कारण-रहित” वस्तु ही परमेश्वर है ।
चौथी दलील नैतिक दलील के रूप से जानी जाती है। इतिहास में अब तक प्रत्येक संस्कृति के पास किसी न किसी प्रकार की व्यवस्था होती आई है। प्रत्येक के पास सही और गलत का बोध है। हत्या, झूठ, चोरी और अनैतिकता को लगभग विश्वव्यापी रूप में अस्वीकार किया जाता है। सही और गलत का बोध यदि पवित्र परमेश्वर के पास से नहीं तो फिर कहाँ से आया?
इन सबके बाद भी, बाइबल हमें बतलाती है कि लोग परमेश्वर के स्पष्ट तथा अस्वीकार न किए जाने वाले ज्ञान को अस्वीकार कर देंगे और इसके बावजूद एक झूठ पर विश्वास करेंगे। रोमियों 1:25 घोषणा करती है कि, “उन्होंने परमेश्वर की सच्चाई को बदलकर झूठ बना डाला, और सृष्टि की उपासना और सेवा की, न कि उस सृजनहार की – जो सदा धन्य है। आमीन।” बाइबल यह भी घोषणा करती है कि परमेश्वर पर विश्वास न करने के लिए लोगों के पास किसी तरह का कोई बहाना नहीं है: “क्योंकि उसके अनदेखे गुण – अर्थात् उसकी सनातन सामर्थ्य, और परमेश्वरत्व – जगत की सृष्टि के समय से उसके कामों के द्वारा देखने में आते हैं, यहाँ तक कि वे निरूत्तर हैं” (रोमियों 1:20)।
लोग परमेश्वर के अस्तित्व के दावे को इसलिए अस्वीकार कर देते हैं क्योंकि उसमें “वैज्ञानिकता नहीं” है या “क्योंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है।” सच्चा कारण यह है कि एक बार लोग स्वीकार कर लेते हैं कि परमेश्वर है, तो उन्हें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि वह परमेश्वर के प्रति ज़िम्मेदार हैं और उन्हें परमेश्वर से क्षमा की