परमेश्वर का अस्तित्व प्रमाणित या अस्वीकृत नहीं किया जा सकता है। बाइबल भी यह कहती है कि हमें विश्वास के द्वारा इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिये कि परमेश्वर का अस्तित्व है, “और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिये, कि वह है, और अपने खोजनेवालों को प्रतिफल देता है” (इब्रानियों 11:6)। यदि परमेश्वर की ऐसी इच्छा थी, तो वह बस यूँही प्रकट हो जाता और सारे संसार को प्रमाणित कर देता कि उसका अस्तित्व है। परन्तु यदि वह ऐसा करता, तो फिर विश्वास की कोई आवश्यकता न रहती। “यीशु ने उस से कहा, ‘तू ने मुझे देखा है, इसलिए विश्वास किया है; धन्य हैं वे जिन्होंने बिना देखे विश्वास किया'” (यूहन्ना 20:29)।
इसका यह अर्थ नहीं है कि, परमेश्वर के अस्तित्व का कोई प्रमाण ही नहीं है । बाइबल घोषणा करती है कि, “आकाश ईश्वर की महिमा का वर्णन कर रहा है; और आकाशमण्डल उसकी हस्तकला को प्रगट कर रहा है। दिन से दिन बातें करता है, और रात को रात ज्ञान सिखाती है। न तो कोई बोली है और न कोई भाषा जहाँ उसका शब्द सुनाई नहीं देता है। उसका स्वर सारी पृथ्वी पर गूँज गया है, और उसके वचन जगत की छोर तक पहुँच गए हैं” (भजन संहिता 19:1-4)। तारों की ओर देखकर, इस ब्रह्माण्ड की विशालता को समझते हुए, प्रकृति के आश्चर्यों पर ध्यान देते हुए, सूर्यास्त की सुन्दरता को देखते हुए – यह सारी वस्तुएँ एक सृष्टिकर्ता परमेश्वर की ओर संकेत करती हैं। यदि यह काफी नहीं है, तो हमारे स्वयं के हृदयों में भी परमेश्वर के लिए एक प्रमाण है। सभोपदेशक 3:11 हमें कहता है कि, “… उसने मनुष्यों के मन में अनादि-अनन्त काल का ज्ञान उत्पन्न किया है।” हमारे अपने अन्दर की गहराई में ऐसी कोई पहचान है कि इस जीवन से परे भी कुछ है और इस संसार से परे भी कोई है। हम इस ज्ञान को बौद्धिक रूप से झुठला सकते हैं, परन्तु हम में और हमारे चारों ओर परमेश्वर की उपस्थिति फिर भी स्पष्ट रूप से बनी हुई है। इन सबके बाद भी, बाइबल हमें चेतावनी