उसने दबाया है?’ सौम्य ने कहा- ‘कुमार, जरा सभी को दबाती है। एक दिन सभी की जवानी चली जाती है!’ ‘सौम्य, क्या किसी दिन मेरा भी यही हाल होगा?’ ‘अवश्य, कुमार!’ कुमार कहने लगा- ‘धिक्कार है उस जन्म पर, जिसने मनुष्य का ऐसा रूप बना दिया है। धिक्कार है यहाँ जन्म लेने वाले को!’
कुमार का मन खिन्न हो गया। वह जल्दी ही लौट पड़ा। राजा को पता लगा, तो उन्होंने कुमार के लिए और अधिक मनोरंजन के सामान जुटा दिए। महल के चारों ओर पहरा बैठा दिया कि फिर कभी ऐसा कोई खराब दृश्य कुमार न देख पाएँ। दूसरी बार कुमार जब बगीचे की सैर को निकला, तो उसकी आँखों के आगे एक रोगी आ गया। उसकी साँस तेजी से चल रही थी। कंधे ढीले पड़ गए थे। बाँहें सूख गई थीं। पेट फूल गया था। चेहरा पीला पड़ गया था। दूसरे के सहारे वह बड़ी मुश्किल से चल पा रहा था। फिर कुमार ने सारथी से पूछा- ‘यह कौन है सौम्य?’
‘यह बीमार है कुमार! इसे ज्वर आता है।’ ‘यह बीमारी कैसी होती है, सौम्य?’ ‘बीमारी होती है धातु के प्रकोप से।’ ‘क्या मेरा शरीर भी ऐसा ही होगा सौम्य?’ ‘क्यों नहीं कुमार? शरीरं व्याधिमंदिरम्। शरीर है, तो रोग होगा ही!’ कुमार को फिर एक धक्का लगा। वह बोला- ‘यदि स्वास्थ्य सपना है, तो कौन भोग कर सकता है शरीर के सुख और आनंद का? लौटा ले चलो रथ सौम्य।’ कुमार फिर दुःखी होकर महल को लौट आया। पिता ने पहरा और कड़ा कर दिया।
फिर एक दिन कुमार बगीचे की सैर को निकला। अबकी बार एक अर्थी उसकी आँखों के सामने से गुजरी। चार आदमी उसे उठाकर लिए जा रहे थे। पीछे-पीछे बहुत से लोग थे। कोई रो रहा था, कोई छाती पीट रहा था, कोई अपने बाल नोच रहा था।
यह सब देखकर कुमार ने सौम्य से पूछा- ‘यह सजा-सजाया, बँधा-बँधाया, कौन आदमी लेटा जा रहा है बाँस के इस खटोले पर?’
सौम्य बोला- ‘यह आदमी लेटा नहीं है कुमार। यह मर गया है। यह मृत है, मुर्दा है। अपने सगे-संबंधियों से यह दूर चला गया। वहाँ से अब कभी नहीं लौटेगा। इसमें अब जान नहीं रह गई। घरवाले नहीं चाहते, फिर भी वे इसे सदा के लिए छोड़ने जा रहे हैं कुमार।’ ‘क्या किसी दिन मेरा भी यही हाल होगा, सौम्य?’ ‘हाँ, कुमार! जो पैदा होता है, वह एक दिन मरता ही है।’ ‘धिक्कार है जवानी को, जो जीवन को सोख लेती है। धिक्कार है स्वास्थ्य को, जो शरीर को नष्ट कर देता है। धिक्कार है जीवन को, जो इतनी जल्दी अपना अध्याय पूरा कर देता है। क्या बुढ़ापा, बीमारी और