राफेल डील में राहुल गांधी के आरोपों को दैसो कंपनी के सीईओ एरिक ट्रेपिए ने बेबुनियाद बताया है। उन्होंने दिए इंटरव्यू में ऐसा कहा। ट्रेपिए ने कहा कि रिलायंस को दैसो ने खुद चुना था। कांग्रेस के साथ हमारा लंबा अनुभव है। राहुल गांधी के बयान से दुख हुआ। साल 1953 में भारत के साथ पहली डील हुई थी।
हम किसी पार्टी के लिए काम नहीं कर रहे। बल्कि, इंडियन एयरफोर्स और भारत सरकार को सामरिक महत्व के उत्पाद सप्लाई कर रहे हैं।ट्रेपिए का कहना है कि रिलायंस के अलावा हमारे 30 दूसरे पार्टनर भी हैं। इंडियन एयरफोर्स राफेल डील का इसलिए समर्थन कर रहा है क्योंकि उन्हें लड़ाकू विमानों की जरूरत है।
ट्रेपिए ने कहा कि 36 राफेल विमानों की कीमत भी उतनी ही रखी गई जितनी 18 विमानों की थी। जबकि, कीमत दोगुनी होनी चाहिए थी। लेकिन, दो सरकारों के बीच बातचीत के बाद कीमत तय हुई थी।राहुल ने आरोप लगाया था कि राफेल सौदे के लिए दैसो और रिलायंस के ज्वाइंट वेंचर के बारे में ट्रेपिए ने झूठ बोला था।
राहुल गांधी ने कहा था कि मोदी सरकार ने पक्षपात कर अनिल अंबानी की कंपनी को राफेल डील दिलवाई। इसमें दैसो कंपनी की भी मिलीभगत थी। राहुल ने 2 नवंबर को प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर कहा था कि दैसो ने अनिल अंबानी की कंपनी में 284 करोड़ रुपए का निवेश किया। इस पर ट्रेपिए का कहना है कि रकम रिलायंस में नहीं बल्कि दैसो-रिलायंस के ज्वाइंट वेंचर में लगाई जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर केंद्र सरकार ने राफेल डील से जुड़े दस्तावेज सोमवार को याचिकाकर्ताओं को सौंप दिए। सरकार ने बताया कि राफेल विमान खरीदने का फैसला सालभर में 74 बैठकों के बाद किया गया। दस्तावेजों में कहा गया कि 126 राफेल खरीदने के लिए जनवरी 2012 में ही फ्रांस की दैसो एविएशन को चुन लिया गया था।
लेकिन, दैसो और एचएएल के बीच आपसी सहमति नहीं बन पाने से ये सौदा आगे नहीं बढ़ पाया। सरकार ने कहा कि एचएएल को राफेल बनाने के लिए दैसो से 2.7 गुना ज्यादा वक्त चाहिए था। आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि केंद्र ने राफेल डील में कीमतों से जुड़े दस्तावेज सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपे।