चीफ जस्टिस के खिलाफ कांग्रेस समेत 7 दल लाना चाहते हैं महाभियोग प्रस्ताव

सुप्रीम कोर्ट के 45वें चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस समेत 7 दल महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहते हैं। इन दलों के नेताओं ने 64 सांसदों के दस्तखत वाला नोटिस राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू को सौंपा। इसमें उन्होंने आरोप लगाया कि चीफ जस्टिस ने पद का दुरुपयोग किया है।

अगर यह नोटिस मंजूर होता है और विपक्ष प्रस्ताव लाने में कामयाब हो जाता है तो देश के इतिहास में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ विधायिका की तरफ से यह ऐसा पहला कदम होगा। विपक्षी दलों ने महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस में चीफ जस्टिस के खिलाफ 5 आरोप लगाए।

उधर, सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर खुलकर हो रही बयानबाजी को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने सभापति वेंकैया नायडू से 40 मिनट तक हुई मुलाकात के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस की।उन्होंने कहा- हमने देश के चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया है।

राज्यसभा के सभापति 50 सांसदों के समर्थन पर भी फैसला कर सकते हैं। हमने 71 सांसदों के हस्ताक्षर वाला नोटिस दिया है। इनमें से 7 सांसदों का कार्यकाल खत्म हो चुका है। लिहाजा, संख्या 64 सांसदों की है।जब प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा गया कि क्या मनमोहन सिंह के इस पर दस्तखत नहीं हैं तो कपिल सिब्बल ने कहा- उन्हें जानबूझकर इसमें शामिल नहीं किया गया क्योंकि वे पूर्व प्रधानमंत्री हैं।

कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि अगर राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव नामंजूर कर दिया जाता है तो पार्टी सभापति वेंकैया नायडू के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जा सकती है।प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने कहा-देश जरूर जानना चाहेगा कि हमने क्यों ये कदम उठाया? हम भी नहीं चाहते थे कि ये दिन देखना पड़े।

न्यायपालिका से सर्वोच्च स्तर की ईमानदारी की अपेक्षा होती है।सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच अंदरूनी कलह है। चार सीनियर जजों ने 12 जनवरी को प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसमें उन्होंने सार्वजनिक तौर पर चीफ जस्टिस के तौर-तरीकों के बारे में बात की थी।सुप्रीम कोर्ट के जज खुद यह कह रहे हैं कि न्यायपालिका की आजादी खतरे में हैं।

ऐसे में क्या देश को कुछ नहीं करना चाहिए और खाली हाथ बैठे रहना चाहिए?सिब्बल ने राज्यसभा के सभापति को सौंपे सांसदों के नोटिस का हवाला देते हुए वो पांच आरोप बताए, जिनके आधार पर चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस लाया गया है।पहले आरोप के बारे में सिब्बल ने कहा हमने प्रसाद एजुकेशन ट्रस्ट मामले में उड़ीसा हाईकोर्ट के एक रिटायर्ड जज और एक दलाल के बीच बातचीत के टेप भी राज्यसभा के सभापति को सौंपे हैं।

ये टेप सीबीआई को मिले थे। इस मामले में चीफ जस्टिस की भूमिका की जांच की जरूरत है।एक मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज के खिलाफ सीबीआई के पास सबूत थे, लेकिन चीफ जस्टिस ने सीबीआई को केस दर्ज करने की मंजूरी नहीं दी।जस्टिस चेलमेश्वर जब 9 नवंबर 2017 को एक याचिका की सुनवाई करने को राजी हुए, तब अचानक उनके पास सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री से बैक डेट का एक नोट भेजा गया और कहा गया कि आप इस याचिका पर सुनवाई नहीं करें।

जब चीफ जस्टिस वकालत कर रहे थे तब उन्होंने झूठा हलफनामा दायर कर जमीन हासिल की थी। एडीएम ने हलफनामे को झूठा करार दिया था। 1985 में जमीन आवंटन रद्द हुआ, लेकिन 2012 में उन्होंने जमीन तब सरेंडर की जब वे सुप्रीम कोर्ट में जज बनाए गए।चीफ जस्टिस ने संवेदनशील मुकदमों को मनमाने तरीके से कुछ विशेष बेंचों में भेजा। ऐसा कर उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग किया।

दिलचस्प बात यह है कि कांग्रेस और विपक्षी दलों के इस नोटिस में जज लोया के मामले का जिक्र नहीं है। सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई कर रहे जज लोया की मौत के मामले की एसआईटी से जांच कराने की मांग करती याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर हुई थीं।इन याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ही खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जज लोया की मौत प्राकृतिक थी। जांच की मांग राजनीति से प्रेरित है।कांग्रेस ने इस फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि वे 16 दलों के साथ मिलकर इस मामले में जांच के लिए राष्ट्रपति से गुहार लगाएंगे।न्यूज एजेंसी के मुताबिक, महाभियोग प्रस्ताव लाना चाह रहे विपक्षी दलों में कांग्रेस के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और मुस्लिम लीग शामिल हैं। 

हालांकि, महाभियोग प्रस्ताव के पक्षधर विपक्षी दलों में पहले तृणमूल कांग्रेस और द्रमुक भी शामिल थीं। लेकिन बाद में इन दोनों दलों ने कांग्रेस से किनारा कर लिया।सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने शुक्रवार को एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि महाभियोग के बारे में सार्वजनिक रूप से दिए जा रहे बयानों से शीर्ष अदालत व्यथित है।

सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक रूप से हो रही चर्चा को काफी दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया।सुप्रीम कोर्ट ने एटॉर्नी जनरल केके वेणुगाेपाल से इस बारे में अदालत की मदद करने को कहा। कोर्ट ने पूछा कि क्या महाभियोग पर बयानबाजी को रोका जा सकता है? कोर्ट ने कहा कि एटॉर्नी जनरल की सलाह के बाद ही मीडिया पर बंदिशें लगाने के बारे में सोचा जाएगा।

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के सामने एक याचिकाकर्ता ने यह मुद्दा उठाया कि जजों के महाभियोग के बारे में नेता खुलकर बयानबाजी कर रहे हैं।हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा के कम से कम 50 और लोकसभा के कम से कम 100 सांसदों का समर्थन जरूरी होता है। संसद सत्र चालू नहीं होने की स्थिति में भी यह प्रस्ताव लाया जा सकता है। 

अगर राज्यसभा के सभापति को यह प्रस्ताव सौंप दिया जाता है तो फिर वे उसके गुणदोष पर विचार करते हैं।अगर सभापति को यह लगता है कि प्रस्ताव लाने जैसा है तो वे एक कमेटी बनाते हैं, जो इस पर अागे विचार करती है। अन्यथा वे इसे खारिज भी कर सकते हैं।अगर कमेटी बनाई जाती है तो इसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक जज और एक वरिष्ठ कानूनविद् शामिल होते हैं। 

अगर कमेटी जांच के बाद आरोपों को सही पाती है तो जिस सदन में प्रस्ताव लाया गया है, वहां कमेटी की रिपोर्ट पर चर्चा होती है। चर्चा के बाद वोटिंग होती है।चर्चा और वोटिंग के दौरान जज को सदन में खुद मौजूद रहना होता है या किसी वकील के जरिए अपना पक्ष रखना होता है।महाभियोग प्रस्ताव पारित करने के लिए सदन के कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के वोटों की जरूरत होती है। 

दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित होने पर उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। अगर वे जज को हटाने का फैसला लेते हैं तो उन्हें एक आदेश जारी करना पड़ता है।सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया था, लेकिन लोकसभा में इस प्रस्ताव को पास कराने का जरूरी समर्थन नहीं मिला। 

सिक्किम हाईकोर्ट के जस्टिस पीडी दिनाकरण के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की कोशिशें हुईं। संसद में प्रस्ताव पर बात आगे बढ़ती, इससे पहले ही उन्होंने इस्तीफा दे दिया।कलकत्ता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया। प्रस्ताव पास भी हुआ। लोकसभा में उनके खिलाफ प्रस्ताव आता, इससे पहले उन्होंने ही जज के पद से इस्तीफा दे दिया।

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