क्रांतिकारी बाल गंगाधर तिलक के नाम का सहारा महात्मा गाँधी को भी लेना पड़ा

क्रांतिकारी बाल गंगाधर ने ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी थी. तिलक का व्यक्तित्व गागर में सागर की तरह था. भारतीय राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और पत्रकार होने के साथ-साथ वे ऐसे स्वतन्त्रता सेनानी थे जिन्होंने मां भारती की सेवा में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया. बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के  रत्नागिरी जिले के एक गांव चिखली में हुआ था.

तिलक उस पहली भारतीय पीढ़ी में थे जिन्हें आधुनिक कॉलेज शिक्षा पाने का मौका मिला. पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने खुद अध्यापन कार्य किया और कुछ समय तक स्कूल, कॉलेजों में गणित पढ़ाया. बताया जाता है कि वे गणित में इतने होशियार थे कि वे अपनी कक्षा से तीन कक्षा आगे के सवाल चुटकियों में हल कर देते थे. वे अंग्रेजी शिक्षा के घोर आलोचक थे और मानते थे कि भारतीय सभ्यता के प्रति यह भाषा अनादर सिखाती है.

तिलक ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होकर अपने राजनीतिक सफर की शुरआत की लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे. कांग्रेस के भीतर तिलक को जोरदार विरोध का सामना करना पड़ा. ऐसे में उन्हें बंगाल के बिपिन चंद्र पाल और पंजाब के लाला लाजपत राय जैसे देशभक्त नेताओं का साथ मिला और 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी. उनकी इस तिकड़ी को ”लाल बाल पाल” के नाम से जाना गया. 

तिलक को ब्रिटिश भारतीय अशान्ति का पिता कहकर पुकारते थे. तिलक कई बार आजादी की लड़ाई में ब्रिटिश सरकार के सामने रोड़ा बनकर खड़े हुए. अपने समाचार पत्र मराठा दर्पण और केसरी में उन्होंने खुलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लिखा और जिसके चलते उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. 1908 में तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल चाकी और खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया. यहीं रहकर उन्होंने ‘गीता रहस्य’ पुस्तक की रचना की.

जेल के दौरान अंग्रेजों ने उन्हें कड़ी यातनाएं दीं जिससे उनका स्वास्थ्य खराब हो गया. इसी बीच उन्हें पत्नी का देहांत की खबर मिली लेकिन देश प्रेम के आगे उन्होंने इस दु:ख की घड़ी में शोक नहीं मनाया. जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट और मुहम्मद अली जिन्ना के साथ ‘अखिल भारतीय होम रूल लीग’ की स्थापना की. 

वैसे तो लोकमान्य तिलक खुद भी कम उम्र में शादी करे जाने के पक्ष में नहीं थे लेकिन उन्हें हिंदू रीतियों और मान्यताओं के साथ छेड़छाड बिल्कुल पसंद नहीं थी. उन्होंने एज ऑफ़ कंसेन्ट विधेयक 1891 का विरोध किया, जिसमें विवाह करने की न्यूनतम आयु को 10 से बढ़ाकर 12 वर्ष कर दिया था. यही वजह है कि इन्हें ‘हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता’ भी कहा जाता है.

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