HOMEMADE REMEDIES FOR WEATHER INFLUENZA (FLU) :- स्वाइन इंफ्लुएंजा को स्वाइन फ्लू के नाम से भी जाना जाता है जो कि इंफ्लुएंजा वायरस से होता है और यह वायरस सूअरों के श्वसन तंत्र से निकलता है। इस वायरस में परिवर्तित होने की क्षमता होती हैं जिससे यह आसानी से लोगों में फैल जाता है। मनुष्यों में खांसी, थकान, नजला, उल्टी आना, बुखार, दस्त, शरीर में दर्द आदि इसके लक्षण हैं।
आयुर्वेद में इसे वात कफज ज्वर के नाम से जाना जाता है जो कि वात (हवा) और कफज (पानी) के बिगड़ने से होता है। यह श्वसन तंत्र से शरीर में प्रवेश कर हवा के रास्ते को बंद कर कफ, नजला, शरीर में दर्द जैसे लक्षण पैदा करता है।इस ज्वर को फ्लू भी कहा जाता है|
यह एक संक्रामक रोग है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हो जाता है| इससे रोगी को काफी कष्ट होता है| यह रोग तीसरे, चौथे या सातवें दिन उतर जाता है| परन्तु बुखार उतर जाने और रोग कम हो जाने के बाद कमजोरी बहुत अधिक हो जाती है| इसके अलावा हृदय की धड़कन बढ़ जाती है| मानसिक दुर्बलता तथा अशान्ति का दौर लगभग दो सप्ताह तक बना रहता है|
वात श्लैष्मिक ज्वर (फ्लू) का कारण :- यह ज्वर थूक, कफ, नाक, श्लेष्मा, मल आदि के प्रभाव से चढ़ता है| यह रोग सर्दी-गरमी के कारण बहुत जल्दी फैलता है| अधिक थकावट, परिश्रम करने के बाद ठंडा पानी पीने, दूषित भोजन करने, दूषित वातावरण में निवास करने आदि से यह ज्वर उत्पन्न होता है|
वात श्लैष्मिक ज्वर (फ्लू) की पहचान :- इस रोग में रोगी बहुत जल्दी कमजोर हो जाता है| शरीर में तीव्रता से दर्द होता है| आंख, सिर, माथे आदि में भयंकर दर्द होने लगता है| देखते-देखते बुखार 102o f से 104o f तक पहुँच जाता है| इसमें बार-बार प्यास लगती है| पेशाब कम आता है| जीभ मैली हो जाती है|
आंखों में लाली, नाक से पानी बहना, खांसी, बदबूदार श्वास आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं| कभी-कभी गले में सूजन हो जाती है| शरीर में दर्द रहने के कारण रोगी को किसी करवट चैन नहीं पड़ता| नींद बड़ी कठिनाई से आती है, जबकि रोगी की आंखें नींद के लिए झुकती रहती हैं|
वात श्लैष्मिक ज्वर (फ्लू) के घरेलु नुस्खे इस प्रकार हैं :-तुलसी, लौंग, कालीमिर्च, बनफशा, देशी घी और अदरक :- चार पत्तियां तुलसी, चार दाने कालीमिर्च, दो लौंग, थोड़ा-सा बनफशा और एक गांठ अदरक – सबका काढ़ा बनाकर दिन में चार बार पिएं| पैर के तलवों, माथे तथा छाती पर देशी घी मलें|
सोंठ, देवदारु, रास्ना, नागरमोथा, कटेरी, मिश्री और चिरायता :- सोंठ, देवदारु, रास्ना, नागरमोथा, कटेरी तथा चिरायता – सबका समभाग लेकर काढ़ा बना लें| उसमें जरा-सी मिश्री डालकर गरम-गरम सेवन करें|
कालीमिर्च, कटेरी, सोंठ और गिलोय :- कालीमिर्च, कटेरी, सोंठ और गिलोय – सभी 5-5 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करें|
शहद और पीपल :- शहद में एक चुटकी पीपल का चूर्ण मिलाकर चाटें|
नीम, सोंठ, गिलोय, कटेरी, पीपल और अड़ूसा :- नीम की छाल, सोंठ, गिलोय, कटेरी, पीपल और अड़ूसा-सब 5-5 ग्राम लेकर काढ़ा बनाकर सुबह-शाम सेवन करें|
तुलसी, कालीमिर्च और पटोल :- तुलसी, कालीमिर्च और पटोल (परवल) का काढ़ा फ्लू में रामबाण की तरह काम करता है|
चना :- गरम चनों को कपड़े में पोटली की तरह बांधकर सूंघने से फ्लू के रोगी को काफी आराम मिलता है|
हलती, अजवायन, लाल इलायची, काला नमक और पानी :- 10 ग्राम हलती का चूर्ण, 10 ग्राम अजवायन, दो लाल इलायची और एक चुटकी काला नमक लेकर एक कप पानी में काढ़ा बनाकर सेवन करें|
मुन्नका, शक्कर और पानी :- चार-पांच मुनक्कों को थोड़े से पानी में उबालकर पानी में मथ लें| फिर जरा-सी शक्कर डालकर पी जाएं|
सोंठ, कालीमिर्च और पानी :- एक चम्मच पिसी हुई सोंठ में चार दाने कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर ताजे पानी से सेवन करें|
अदरक, कालीमिर्च, लौंग, तुलसी और गुड़ :- 60 ग्राम अदरक, 10 ग्राम कालीमिर्च, 2 ग्राम लौंग, 5 ग्राम तुलसी के बीज और 20 ग्राम गुड़ – सबका काढ़ा बनाकर चार खुराक करें| दिनभर में चार बार इसका सेवन करें|
राई और शहद :- 5 ग्राम राई पीसकर शहद के साथ सेवन करें और थोड़ी राई पोटली में बांधकर बार-बार सूंघें|
मूली :- 10 ग्राम मूली के बीजों का चूर्ण लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें|
जाफल, जावित्री, सोंठ और पानी :- जाफल, जावित्री और सोंठ को पानी में पीसकर पोटली में बांधकर सूंघना चाहिए|
तुलसी, मुलहठी, चिरायता, सोंठ, कटेरी और कालीमिर्च :- तुलसी, मुलहठी, चिरायता, सोंठ, कटेरी की जड़, कालीमिर्च और अदरक-सबका समभाग लेकर काढ़ा बनाकर रात को सोने से पहले पिएं|
गुड़ और लड्डू :- गुड़ एवं काले तिल के लड्डू खाने से फ्लू में काफी लाभ होता है|
हींग और पानी :- हींग को पानी में घोलकर सूंघने से नाक तथा कंठ में जमा हुआ कफ और श्लेष्मा बाहर निकल जाता है|
गाय का दूध और हल्दी :- एक कम गाय के दूध में एक चम्मच पिसी हुई हल्दी घोलकर पी जाएं|
वात श्लैष्मिक ज्वर (फ्लू) में क्या खाएं क्या नहीं :- सबसे पहले रोगी को गरम कमरे में आरामदायक बिस्तर पर लिटाएं| उसे ठंडी हवा तथा ठंडे पदार्थों से बचाएं| पानी उबालकर तथा उसमें तुलसी या सोंठ डालकर ठंडा करके पीने को दें| नाश्ते में दूध, चाय कॉफी, मौसमी का रस, पपीते का रस आदि दें| गेहूं की चपाती और मूंग की दाल दोपहर को दें|
सख्त तथा देर से पचने वाले पदार्थों का सेवन न कराएं| छाती पर आलसी, तारपीन और सरसों का तेल मिलाकर मलें| गरम पानी में यकिलिप्टस तेल की आठ-दस बूंदें डालकर रोगी को सूंघने के लिए दें| यदि रोगी का मन न लगता हो तो उसे टहलाने के लिए ले जाएं| किन्तु इस बात का ध्यान रखें कि उसे थकावट न आने पाए|