क्या होता है आत्महत्या करने के बाद उस आत्मा के साथ
What happens to the soul after suicide? जैसा की हमने आपको अपने पिछले लेख में बताया था की इंडिया हल्लाबोल के पाठकों की डिमांड पर हमने दुनिया की तन्त्र की राजधानी माने जाने वाली पीठ “कामख्या मंदिर” (गुवाहटी, असम) के भैरव पीठ के उत्तराधिकारी श्री शरभेश्वरा नंद “भैरव” जी महाराज से बात कर उनसे तन्त्र के सही स्वरूप को जानने के लिए निवेदन किया था। जिस पर इंडिया हल्ला बोल के पाठकों के लिए उन्होंने पहली बार मीडिया में अपने लेख देने के लिए अपनी सहमति दी है। उसी क्रम में हम आज उनका ये लेख आपके लिए लेकर आये हैं “क्या होता है आत्महत्या करने के बाद उस आत्मा के साथ”
परमात्मा ने एक निश्चित आयु के साथ, हमारी जन्म और मृत्यु निर्धारित की है। सृष्टि के नियमों का उल्लंघन करते हुए अपने जीवन का त्याग करना, आत्महत्या करना, निश्चित तौर पर परमात्मा का तिरस्कार और अपमान करने के बराबर है। जो व्यक्ति आत्महत्या करता है वह मृत्यु उपरांत तुरंत ही प्रेत बन कर अनिश्चित काल के लिए उसी योनि में भटकता रहता है।
उसे क्या क्या कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है? इन सभी के बारे में हम आज आपको एक सत्य घटना के द्वारा अवगत करवाने जा रहे हैं।
कुछ समय पूर्व की बात है हमारे पास कुछ लोग मिलने आए और उनके साथ उनका 25 वर्षीय युवा पुत्र भी था, जो कि कुछ समय से बहुत ही अजीबोगरीब हरकतें कर रहा था।
माता-पिता ने बताया कि उनका पुत्र पहले पढ़ाई में बहुत अच्छा था परंतु अब वह बहुत ही खामोश हो गया है, अकेला बैठा रहता है, आंखों के नीचे काले घेरे बनने शुरू हो गए हैं, बस अजीब सी नजरों से हमें देखता रहता है। रात को चिल्लाता है, नींद में सोया सोया कुछ बड़बड़ाता रहता है और कभी-कभी पागलों की तरह झुमता रहता है यहां तक की इसने अंधेरे व गंदगी में रहना शुरु कर दिया है। दो बार तो यह अपने पिता से झगड़ा करने के उपरांत आत्महत्या करने के प्रयास भी कर चुका है, जबकि यह बिल्कुल भी ऐसा नहीं था।
हमने उस युवक के सिर पर हाथ रखा और उससे पूछा कि बेटा क्या समस्या है?
तो वह बस हमें बहुत ही गहरी ओर अशांत दृष्टि से देखता रहा, हमें ऐसा लगा कि जैसे उसके भीतर से कोई और हमें देख रहा हो।
फिर वह अचानक ही बहुत उग्र हो गया और दोनों हाथों से अपना गला दबाने लगा, यह बहुत ही असामान्य सी बात थी। हमने किसी तरह उसे शांत किया, लेकिन उसके आंखों में वह बेचैनी लगातार बनी रही, वह अपनी पलक भी नहीं झपक रहा था।
हमने अपनी चेतना के द्वारा उसके अंदर झांकने का प्रयास किया तो पाया कि उसके अंदर किसी युवा लड़की की प्रेतआत्मा है।
इसका मतलब यह है कि वह किसी प्रेत आत्मा के वश में है।
हमने उसके माता-पिता से कहा कि हम इसकी स्थिति को समझ गए हैं ओर इसके लिए आपको अनुष्ठान करवाना होगा। आगे की प्रक्रिया हम तभी शुरू कर पाएंगे। उन्होंने तुरंत ही हमें अनुष्ठान करने की स्वीकृति दे दी और कहा कि आप शीघ्र-अति-शीघ्र अनुष्ठान करें और कृपया हमारे पुत्र को स्वस्थ कर दें।
हमने उन्हें एक सप्ताह उपरांत का समय दिया और अनुष्ठान की प्रक्रिया प्रारंभ की।
सप्ताह तक वह युवक और भी ज्यादा बेचैन और अशांत रहा।
अनुष्ठान के अंतिम दिन हमने उसे बुलाया, तब तक अनुष्ठान में पवित्र ऊर्जा निर्माण हो चुका था,
वह जब हमारे पास आया तो बहुत ही व्याकुल हो गया और जोर जोर से रोना लगा। हमने विशेष प्रयोग कर उसके अंदर कब्जा जमाए हुए उस लड़की की आत्मा से संपर्क करने का प्रयास किया। परंतु वह प्रेत आत्मा सिर्फ झूलती रही और हमें कुछ भी बताने में अपनी असमर्थता व्यक्त करती रही।
तब हमने उस आत्मा की चेतना में अपनी चेतना का संपर्क स्थापित किया और उसके मनोभावों को अपनी चेतना में सोखना शुरू किया। अब हमारे पास उस आत्मा की पूर्ण जानकारी थी। उसके मनोभाव से जो जानकारी हमें प्राप्त हुई वह बहुत ही दुखद थी।
यह युवती बहुत ही अच्छे परिवार से संबंध रखती थी और किसी युवक के प्रेम में वशीभूत थी। कुछ वर्षों तक इस युवती का प्रेम प्रसंग उस युवक से चलता रहा परंतु बाद में उस युवक ने इसका त्याग कर दिया व किसी और से विवाह कर लिया।
इस युवती ने अपने आप को बहुत ही ठगा हुआ महसूस किया। इसका प्रेम वियोग इस हद तक बढ़ गया कि इसने अपना संपर्क अपने माता पिता, अपने मित्रों से और समाज से बिल्कुल हटा लिया। अपने आप को एक कमरे में बंद कर लिया और उसी अवस्था में बहुत दिनों तक रही। उस युवक से बार-बार संपर्क करने का प्रयास करती रही कि शायद वह दुबारा इस के जीवन में आ जाए परंतु ऐसा हुआ नहीं। अंततः अपने जीवन को श्रापित समझते हुए एक दिन इसने अपने घर में फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली, यह सोचकर कि अब इस पीड़ा और कष्ट से इसे मुक्ति प्राप्त हो जाएगी परंतु ऐसा हुआ नहीं। मृत्यु उपरांत इसके संकट और भी बढ़ गए।
इसका अंतिम संस्कार होने के बाद किसी अघोरी ने इस युवती की चेतना को अपने काबू में कर लिया और वह बहुत दिनों तक इस आत्मा का प्रयोग स्त्रियों को वशीकरण के लिए करता रहा, जहां पर यह शोषण का शिकार होती रही क्योंकि किसी स्त्री के वशीकरण के लिए किसी प्रेतात्मा की स्थापना “अघोरी” दूसरे के शरीर में कर देते हैं और फिर उस चेतना को शरीर प्राप्त करवा उसका शोषण करते हैं या उससे शारीरिक संबंध स्थापित करते हैं। युवती की आत्मा का अपना कोई वजूद नहीं रह गया था, यह बस अघोरी के हाथों की कठपुतली बन कर रह गई थी। फिर एक दिन अघोरी के पास कुछ लोग आए कि उन्हें किसी के ऊपर अभिचार कर्म प्रयोग करवाना है और एक युवक का चित्र दे गए कि इसे इतनी पीड़ा दो कि इसके माता पिता इस की पीड़ा में बर्बाद हो जाए।
अघोरी ने उस युवक के चित्र को देखकर विशेष अघोर क्रियाएं करते हुए उसका पुतला बनाया और उसके पुतले में इस युवती की आत्मा की स्थापना कर दी। फिर अघोर मंत्रों का जाप करते हुए तांबे की कीलों से इस युवती की चेतना को उस पुतले में कील दिया। (यह प्रेत आत्मा कीलन का अघोर विधान है) जिसके द्वारा किसी भी प्रेत आत्मा को किसी के शरीर के अंदर बांध या कील दिया जाता है। फिर यह चेतना कभी भी बाहर नहीं आ सकती है, जब तक कोई इसके उत्कीलन का विधान नहीं करता।
यह किसी के शरीर के अंदर है यह किसी को बता ना सके इसके लिए एक कील इसके कंठ में भी गाड़ दी गई। अब यह चेतना बहुत समय से इसी पीड़ा में उस युवक के शरीर के अंदर बनी रही और यह स्थिति हो गई कि यह सिर्फ छटपटा सकती थी परंतु यह किसी को नहीं बता सकती कि यह कौन है? यहां क्यों है? ना ही इस शरीर से बाहर आ सकती थी। यह स्थिति बहुत ही पीड़ादायक है।
अघोरी ऐसा इसलिए करते हैं कि प्रेत आत्मा अभीचार किए हुए व्यक्ति के अंदर बनी रहे और कोई भी इसका उपचार ना कर सके। धीरे-धीरे यह प्रेतात्मा उस व्यक्ति के प्राण ऊर्जा को समाप्त कर दे और वह मृत्यु को प्राप्त करें। यह क्रिया एक तरह से तड़पा तड़पा कर मृत्यु देने वाली है, जिसमें प्रेत आत्मा और जिसके ऊपर अभिचार कर्म किया है दोनों को ही बहुत कष्ट होता है।
बहुत कम ही ऐसे जानकार हैं जो अघोर पद्धति की इस क्रिया का समाधान कर सकते हैं।
तब हमने अघोर पद्धति से ही इस प्रेत आत्मा का उत्कीलन उस युवक के शरीर से किया। उस युवक और इस प्रेत आत्मा को एक दूसरे से मुक्त करवाया।
युवक को किसी पारिवारिक रंजिश के चलते इस अभिचार कर्म का भोगी बनना पड़ा और इस युवती को अपने जीवन का तिरस्कार करने का दंड इस रुप में भोगना पड़ा। मुक्त होने के उपरांत युवती की आत्मा ने हमसे स्पष्ट रूप में अपना संपर्क स्थापित किया और अपने सदगति के मार्ग के लिए प्रार्थना की, कि बस किसी तरह वह इस प्रेत योनि से मुक्त हो जाए और जो गलती उससे हुई है, उसका वह प्राश्चित कर सके।
हमने कुछ समय तक उस प्रेत आत्मा को अपने साथ रखा और उसकी चेतना में साधना के विधान का ज्ञान करवाया,
तदुपरांत हमने उस युवती की चेतना को कामाख्या शक्तिपीठ में स्थान प्रदान करवाया और मां कामाख्या की साधना में साधनारत रहने का आदेश दिया।
वह प्रेतात्मा मां कामाख्या शक्तिपीठ में माता की भक्ति में लीन है। वह अभी प्रेतयोनि से तो मुक्त नहीं हुई है परंतु अब उसकी अशांति और पीड़ा समाप्त हो चुकी है। हमें भरोसा है कि शीघ्र ही “मां” की कृपा उस पर होगी और उसे प्रेत योनि से मुक्ति प्राप्त होगी। अब धीरे-धीरे उसका स्वरूप निर्मल और दिव्य होता जा रहा है। इसका अर्थ है कि उसे पुण्य की प्राप्ति होनी शुरू हो गई है और प्रेत योनि से मुक्त होने का समय निकट आ रहा है।
शायद उसका अगला जन्म माँ कामाख्या की साधिका के रूप में होगा, ऐसा हमारा मानना है।
हमें जो यह मनुष्य जीवन की प्राप्ति हुई है यह कई जन्मों के पुण्य फलों का परिणाम है। परंतु बहुत से लोग ऐसे भी है जो हमेशा अपने आप को कोसते रहते हैं कि उन्हें यह जीवन क्यों मिला? मनुष्य जीवन में सुख दुख तो सदैव ही बने रहते हैं, इसी ताने-बाने का नाम जीवन है। परंतु दुख के समय में अपने आप को इतना निर्बल कर देना की अपने जीवन का ही तिरस्कार कर देना और यह सोचना कि शायद इस जीवन का त्याग करने के उपरांत बाद का जीवन अच्छा होगा मात्र मति भ्रम है।
आजकल मनुष्य में आत्मबल की बहुत कमी है। थोड़ी थोड़ी बात पर लगता है कि अगर वह किसी भी तरह से अपने शरीर से मुक्त हो जाए, आत्महत्या कर ले तो उसकी सभी कि सभी परेशानी समाप्त हो जाएगी और उसे सभी दुखों से मुक्ति मिल जाएगी।
प्रेम प्रसंगों के चलते, या कुछ पारिवारिक समस्याओं के कारण और अन्य जो भी कारण हो, जो लोग अपना जीवन समाप्त कर लेते हैं उन के परिणाम बहुत ही दुष्कर होते हैं और इसके बाद का जीवन इससे भी ज्यादा कठिन और भयावह बन जाता है।
जय मां कामाख्या…
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