Why do we offer milk to Lord Shiva : शिवजी की पूजा एक श्रद्धा का विषय है। आप मे से कई लोग भगवान शिव जी के अनन्य भगत होंगे लेकिन क्या वे जानते है की शिवलिंग पर जल के साथ दूध और बेल पत्र को क्यू …?चड़ाया जाता है । पूजा करना,बंदगी करना,पाठ करना,नमाज अदा करना ये सभी अलग –अलग धर्म के अनुसार बनाए गए रास्ते है,लेकिन सभी की मंजिल एक है। उस शक्ति की कृपा पाना,मेहर पाना ,आशीर्वाद प्राप्त करना। जिस प्रकार अनेकों नदिया अपने रास्ते चलके आखिर समुन्द्र मे विलीन हो जाती है,उसी प्रकार सभी अलग –अलग धर्मो से की गई आराधना का मकसद एक होता है।
आज आपसे शिवलिंग पर चड़ाने वाले दूध,बेल पत्र के विषय मे पौराणिक और वैज्ञानिक विचार सांझा करेंगे। सबसे पहले आपको एक महत्वपूर्ण बात बताना जरूरी है, कि यहा लिंग का अर्थ शरीर के भाग [SEX] या किसी अंग से नही है,बल्कि उस शक्ति के प्रतीक से है जो सृष्टी और ब्रम्हांड कि उस शक्ति को आपस मे जोड़ती है । कई लोग लिंग का गलत अर्थ निकलते है । धार्मिक परंपराओं के पीछे कई सारे वैज्ञानिक रहस्य छिपे होते हैं, जिन्हे हम नहीं जान पाते क्योकि इसकी शिक्षा हमें कहीं नहीं दी जाती ।
भगवान शिव एक अकेले ऐसे देव हैं जिनकी शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। शिव भगवान दूसरों के कल्याण के लिए हलाहल विषैला दूध भी पी सकते हैं। शिव जी संहारकर्ता हैं,इसलिए जिन चीज़ों से हमारे प्राणों का नाश होता है, मतलब जो विष है, वो सब कुछ शिव जी को भोग लगता है। भगवान शिव को सावन,श्रावण के महीने में ढेरो टन दूध यह सोंच कर चढ़ाया जाता है कि वे हमसे प्रसन्न होंगे और हमें उन्नती का मार्ग दिखाएंगे।
पुराने जमाने में जब श्रावण मास में हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था, तब लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने में दूध विष के सामान है और वे दूध इसलिये त्याग देते हैं कि कहीं उन्हे बरसाती बीमारियां न घेर ले। आयुर्वेद के नजरिये से देखा जाए तो सावन में दूध या दूध से बने खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये क्योकि इसमें वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं। शरीर में वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ पैदा होती हैं।
श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है। तभी हमारे पुराणों में सावन के समय शिव को दूध अर्पित करने की प्रथा बनाई गई थी। सावन के महीने में गाय या भैंस घास के साथ कई कीडे़-मकौड़ों का भी सेवन कर लेते हैं। जो दूध को हानिकारक बना देते है, इसलिये सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बनाया गया है।
जो आज तक चलता आ रहा है वही आयुर्वेद के नजरिये से बेल पत्र की तासीर यानी गुण ठंडा होना बताया गया है,जब शिव जी ने सागर मंथन के समय विष पिया जिससे उनका कंठ नीला हो गया इसलिए शिवजी को नीलकंठ,महादेव भी कहते है।यही धार्मिक व वैज्ञानिक कारण है, शिवलिंग पर दूध और बेल पत्र श्रद्धा के साथ चड़ा कर “ऊं नमः शिवाय” का जाप मंत्र पड़ा जाता है। भक्तो की शुद्ध मन से की गई भक्ति और प्रेम भावना से शिव जी प्रसन्न होकर उनकी सभी मनोकामना पूर्ण करके दुखो संकटों से उनकी रक्षा करते है।