West Bengal Durga Puja : आज महालया के साथ मां दुर्गा का आगमन और नवरात्री की शुरुआत हो चुकी है।दशहरे की उमंग अभी से दिखाई देने लगी है। नवरात्र और दशहरे की बात हो और बंगाल की दुर्गा-पूजा की चर्चा न हो तो अधूरा ही लगता है।बंगाल में दशहरे का मतलब रावण दहन नहीं बल्कि दुर्गा पूजा होता है, जिसमें मां दुर्गा को महिषासुर का वध करते हुए दिखाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार नौवीं सदी में बंगाल में जन्मे बालक व दीपक नामक स्मृतिकारों ने शक्ति उपासना की इस परिपाटी की शुरूआत की।इसके बाद दस भुजाधारी मां शक्ति की उपासना को रघुनंदन भट्टाचार्य नाम के विद्वान ने पूरा किया।बंगाल में प्रथम सार्वजनिक दुर्गा पूजा कुल्लक भट्ट नामक धर्मगुरू के निर्देशन में ताहिरपुर के एक जमींदार नारायण ने की।
लेकिन यह समारोह पूर्णतया पारिवारिक था।बंगाल के पाल और सेन वंशजों ने दुर्गा-पूजा को काफी बढ़ावा दिया।प्लासी के युद्ध (1757) में विजय पश्चात लार्ड क्लाइव ने ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु अपने हिमायती राजा नव कृष्णदेव की सलाह पर कोलकाता के शोभा बाजार की विशाल पुरातन बाड़ी में भव्य स्तर पर दुर्गा-पूजा की।
इसमें कृष्णानगर के महान चित्रकारों और मूर्तिकारों द्वारा निर्मित भव्य मूर्तियां बनवाई गईं।राजा नवकृष्ण देव द्वारा की गई दुर्गा-पूजा की भव्यता से लोग काफी प्रभावित हुए व अन्य राजाओं, सामंतों व जमींदारों ने भी इसी शैली में पूजा आरम्भ की।
सन् 1790 में प्रथम बार राजाओं और जमींदारों के अलावा सामान्य जन रूप में बारह ब्राह्मणों ने नदिया जनपद के गुप्ती पाढ़ा नामक स्थान पर सामूहिक रूप से दुर्गा-पूजा का आयोजन किया, तब से यह धीरे-धीरे सामान्य जनजीवन में भी लोकप्रिय होता गया।