गोविंद सिंह कुंजवाल कल करेंगे बागी विधायकों के भविष्य का फैसला

harish-rawat

उत्तराखंड में विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल द्वारा नौ विधायकों को दलबदल कानून के तहत दिये गये कारण बताओ नोटिस पर जवाब देने का शुक्रवार को अंतिम दिन है और इस पर कड़ा फैसला आने की उम्मीद है.गौरतलब है कि 18 मार्च को उत्तराखंड विधानसभा में वित्त विधेयक पारित करने की गहमागहमी के बीच कांग्रेस के नौ विधायकों द्वारा मत विभाजन की मांग करने के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 27 विधायकों के साथ सभी विधायक राज्यपाल से मिले थे, जिसके बाद राज्यपाल से विधायकों ने वित्त विधेयक गिर जाने का हवाला देते हुए उत्तराखंड सरकार को भंग करने की मांग की थी.

इसके बाद राज्यपाल ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत को पत्र लिख कर 28 मार्च तक विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा था. सूत्रों के अनुसार 19 तारीख को कांग्रेस की संसदीय कार्यमंत्री एवं मुख्य सचेतक इंदिरा हृदयेश ने विधानसभा अध्यक्ष को नौ बागी विधायकों के विधानसभा में पार्टी के खिलाफ किये गये आचरण को लेकर दल बदल कानून के तहत उनकी सदस्यता समाप्त करने के लिए पत्र लिखा था, जिसका संज्ञान लते हुए कुंजवाल ने सभी नौ विधायकों को कारण बताओ नोटिस पर 26 मार्च तक जवाब देने के लिए कहा था.

भारत में सरकारों को स्थिर रखने के लिए 1985 में राजीव गांधी सरकार ने संविधान में संशोधन कर 73वें प्रावधान के तहत 52वें संशोधन में व्यवस्था की थी कि किसी भी पार्टी की कुल संख्या के एक तिहाई विधायक अलग होकर या तो नया दल बना सकते हैं अथवा दूसरी पार्टी में विलय कर सकते है परन्तु उनकी संख्या इससे कम होने पर सदन में उनके पार्टी विराधी आचरण पर उनकी सदस्यता समाप्त हो जाएगी.

वर्ष 2003 में अटल सरकार ने 92वां संशोधन करके दल बदल के लिए सदस्यों की संख्या दो तिहाई करने, सरकारों को स्थिर करने तथा सांसदों-विधायकों की खरीद फरोख्त कर सरकार बनाने अथवा गिराने को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए थे. किसी पार्टी से अलग होकर स्वतंत्र दल बनाने अथवा दल से अलग होकर दूसरी पार्टी में विलय के लिए दो तिहाई सदस्यों की संख्या अनिवार्य कर दी गयी है लेकिन अध्यक्ष को दल बदल कानून के दायरे से बाहर रखा गया है. वे किसी भी दल अथवा पार्टी से अलग होकर किसी भी पार्टी के खिलाफ वोट दे सकते हैं. इससे उनकी सदस्यता समाप्त नहीं हो सकती है.

विशेषज्ञों तथा विश्लेषकों का मानना है कि सदन में जिस प्रकार 18 मार्च को विधायकों का आचरण था, उसके बाद राज्यपाल के सामने नौ बागी विधायकों का विरोधी दल भाजपा के साथ अपनी ही चुनी हुई सरकार गिराने की मांग करना दल बदल की श्रेणी में आता है लेकिन इसमें सबसे बड़ा पेंच स्वयं सरकार ने फंसा दिया है. जिस वित्त विधेयक का बागी विधेयक गिर जाने का हवाला देकर सरकार का सदन में बहुमत खोने की बात कह रहे हैं, उसी पर सरकार तथा अध्यक्ष का कहना है कि वित्त विधेयक ध्वनि मत से पारित हो गया था. उसके बाद जो भी हुआ हुआ, वह सदन की कार्यवाही का हिस्सा नहीं था. 

बागी विधायकों के मुखिया हरक सिंह रावत कह चुके है कि जब वित्त विधेयक को अध्यक्ष पारित मान चुके है और सरकार भी यही मान रही हैं तो सदन स्थगित होने के बाद सदन में जो कुछ भी हुआ, वह दल बदल कानून के तहत नहीं आता है. अत: अध्यक्ष को उनकी सदस्यता समाप्त करने का कोई अधिकार नहीं है.सूत्रों के अनुसार दल बदल विरोधी कानून के तहत शिकायत एक निर्धारित प्रपत्र में भरकर दी जाती है जिसे विधानसभा सचिव और मुख्य सचिव के माध्यम से प्रेषित किया जाना जरूरी है.

इसके लिए पर्याप्त आधार बताना जरूरी है जिसकी प्रमाणिकता के लिए आवश्यक दस्तावेज और सबूत पेश करना जरूरी है ताकि स्पीकर उससे सन्तुष्ट हो सके.हरक सिंह और भाजपा के नेता प्रतिपक्ष का कहना है कि उन्होंने अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव दिया हुआ हैं. ऐसे में अध्यक्ष बदले की भावना से काम कर रहे हैं.उनका यह भी कहना है कि सदन में सरकार के विश्वास प्रस्ताव पर मतदान उनको दल बदल कानून के तहत दिये गये नोटिस से पहले होना चाहिए.

सूत्रों के अनुसार विपक्ष और बागी विधायकों की आपत्ति के बाद राज्यपाल ने सरकार के माध्यम से अध्यक्ष को पत्र लिखकर बागी और भाजपा के विधायकों की शिकायतों तथा आशंकाओं को इंगित करते हुए निर्देशित किया है कि सदन की कार्यवाही और कांग्रेस सरकार के दल बदल नोटिस पर निष्पक्षता तथा संविधान का पालन सुनिश्चित किया जाए.राज्यपाल के पत्र के बाद अध्यक्ष ने उसमें दिये गये निर्देशों को मानने से इन्कार कर दिया जिसके बाद बाद टकराव की आशंकाएं पैदा हो गयी है. सूत्रों के अनुसार कल बागी विधायकों पर दल बदल कानून के तहत कार्रवाई के आसार बन गये है.

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