महबूबा मुफ्ती का जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है. वहीं भाजपा ने स्पष्ट किया कि बिल्लावर के विधायक निर्मल सिंह ही उपमुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी रहेंगे.भाजपा ने शुक्रवार को कहा कि जम्मू-कश्मीर सरकार के गठन में गठबंधन के एजेंडे में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा और डॉ सिंह ही उपमुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी रहेंगे.डॉ सिंह दिवंगत मुख्यमंत्री मफ्ती मोहम्मद सईद की अगुआई वाली पीडीपी-भाजपा गंठबंधन सरकार के 10 माह के कार्यकाल के दौरान भी उपमुख्यमंत्री थे.
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सत शर्मा ने पार्टी के विधायक दल की बैठक के बाद कहा, बैठक में सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया कि भाजपा पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बनायेगी और डॉ निर्मल सिंह ही उपमुख्यमंत्री पद के दावेदार रहेंगे. यह बैठक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव राम माधव की अध्यक्षता में हुई.उन्होंने बताया कि राज्यपाल एन एन वोहरा से राजभवन में मिलने से पहले शाम में पीडीपी-भाजपा की संयुक्त बैठक होगी, जिसमें विभिन्न मसलों पर बातचीत होगी.
शर्मा ने कहा, हम अगले दो दिन में राज्यपाल से मिलेंगे लेकिन उससे पहले दोनों पार्टियों की संयुक्त बैठक होगी. भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने हालांकि दोनों पार्टियों के बीच किसी विवाद और सरकार गठन में हुई देर पर कोई भी टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया.पूर्व मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के निधन के बाद से जम्मू कश्मीर में आठ जनवरी से राज्यपाल शासन लागू है.
वहीं महबूबा मुफ्ती का जम्मू कश्मीर की 13वीं और पहली महिला मुख्यमंत्री बनना लगभग तय है. मुफ्ती को गुरुवार शाम हुई पार्टी की एक बैठक में पीडीपी विधायक दल का नेता चुन लिया गया तथा उन्हें मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया गया. राज्य में अभी राज्यपाल का शासन लागू है. वर्ष 1947 में भारतीय संघ में शामिल होने के बाद यह पांचवां मौका है जब राज्य में राज्यपाल शासन लगा है.
इससे पहले 15 अक्टूबर 1947 से लेकर 30 मार्च 1965 तक राज्य में प्रधानमंत्री का पद हुआ करता था जिसे बाद में विधानसभा ने बदलकर मुख्यमंत्री कर दिया. जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय ने हालांकि कहा था कि विधानसभा के पास सदर-ए-रियासत एवं वजीर-ए-आलम का पदनाम बदलने का अधिकार नहीं है.
नेशनल कांफ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला सर्वाधिक तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं जबकि उनके पिता शेख मोहम्मद अब्दुल्ला और मुफ्ती मोहम्मद सईद दो-दो बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं. गुलाम मोहम्मद सादिक, सैय्यद मीर कासिम, गुलाम मोहम्मद शाह और गुलाम नबी आजाद 30 मार्च 1965 से लेकर 7 जनवरी 2016 के बीच एक-एक बार मुख्यमंत्री रहे हैं.
भारतीय संघ में शामिल होने के तुरंत बाद कांग्रेस के मेहर चंद महाजन 15 अक्टूबर 1947 को राज्य के पहले प्रधानमंत्री बने थे और वह 5 मार्च 1948 तक पदासीन रहे थे. नेशनल कांफ्रेंस के शेख मोहम्मद अब्दुल्ला ने पांच मार्च 1948 को प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया और नौ अगस्त 1953 को पद से हटाकर जेल भेजे जाने तक पद पर बने रहे. इनके बाद बख्शी गुलाम मोहम्मद राज्य के प्रधानमंत्री बने और 10 साल से अवधि तक पद पर काबिज रहे.
उन्हें हजरतबल से पैगंबर मुहम्मद के अवशेष की चोरी होने के बाद राज्य में उठे भारी विरोध प्रदर्शन के कारण जाना पड़ा.गुलाम मोहम्मद सादिक के नेतृत्व में नेशनल कांफ्रेंस के अधिकतर विधायकों के कांग्रेस में शामिल हो जाने के बाद 12 अक्टूबर 1963 को ख्वाजा शम्सुद्दीन प्रधानमंत्री बने और 29 फरवरी 1964 तक पदासीन रहे. सादिक 29 फरवरी 1964 से लेकर 30 मार्च 1965 तक प्रधानमंत्री रहे. इसके बाद विधानसभा ने पद का नाम बदल दिया था.
सादिक 30 मार्च 1965 को राज्य के पहले मुख्यमंत्री बने और 12 दिसंबर 1971 तक पद पर बने रहे. उनकी मृत्यु के बाद सैय्यद मीर कासिम मुख्यमंत्री बने और 25 फरवरी 1975 तक पदासीन रहे. इंदिरा-शेख समझौते के बाद शेख अब्दुल्ला को कांग्रेस के समर्थन में मुख्यमंत्री बनाये जाने के लिए उन्हें पद से हटना पड़ा.
शेख 26 मार्च 1977 तक मुख्यमंत्री बने रहे. कांग्रेस के समर्थन वापस ले लेने के कारण राज्य में नौ जुलाई 1977 तक राज्यपाल शासन रहा. शेख ने हालांकि आम चुनाव के बाद भारी बहुमत से वापसी की. नौ जुलाई 1977 को पुन: मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद वह मृत्युपर्यंत आठ सितंबर 1982 तक पद पर बने रहे.
बाद में उनके बेटे डॉ फारूक अब्दुल्ला ने आठ सितंबर 1982 को पदभार ग्रहण किया और दो जुलाई 1984 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. बहनोई गुलाम मोहम्मद शाह द्वारा पार्टी तोड़कर कांग्रेस के साथ गठबंधन सरकार बनाने के कारण उन्हें जाना पड़ा. कांग्रेस के समर्थन वापस लेने के कारण शाह का कार्यकाल छह मार्च 1986 को समाप्त हुआ और राज्य में पुन: राज्यपाल शासन लागू हो गया, जो सात नवंबर 1986 तक जारी रहा.
डॉ अब्दुल्ला सात नवंबर 1986 को दोबारा मुख्यमंत्री बने. राज्य में आतंकवाद के उभार के बाद जगमोहन को राज्यपाल बनाये जाने पर उन्होंने 19 जनवरी 1990 को इस्तीफा दे दिया. इसके बाद फिर से राज्यपाल शासन लागू हुआ, जो छह अक्टूबर 1996 तक जारी रहा. इसके बाद हुए चुनाव में डॉ अब्दुल्ला भारी बहुमत से जीतकर आये और नौ अक्टूबर 1996 से 18 अक्टूबर 2002 तक तीसरी बार मुख्यमंत्री रहे.
आम चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में 18 अक्टूबर 2002 से दो नवंबर 2002 के बीच राज्य में पुन: राज्यपाल शासन लगा रहा. बाद में पीडीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर दो नवंबर 2002 को सरकार का गठन किया.पीडीपी के मुफ्ती मोहम्मद सईद तीन साल के लिए मुख्यमंत्री बने और उसके बाद उन्होंने कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद को दो नवंबर 2005 को सत्ता हस्तांतरित कर दी.
पीडीपी ने हालांकि अमरनाथ भूमि विवाद के कारण राज्य में शुरू हुए विरोध प्रदर्शनों के कारण समर्थन वापस ले लिया जिसके बाद 11 जुलाई 2008 से नौ जनवरी 2009 तक राज्य में पुन: राज्यपाल शासन रहा.इसके बाद हुए चुनाव में फिर से किसी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला. नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने मिलकर पांच जनवरी 2009 को सरकार बनायी और उमर अब्दुल्ला मुख्यमंत्री बने.
उन्होंने छह साल का कार्यकाल पूरा किया. इसके बाद हुए चुनाव में पुन: त्रिशंकु परिणाम सामने आया. पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. इस बार पुन: आठ जनवरी 2015 को राज्यपाल शासन शुरू हुआ और एक मार्च 2015 तक जारी रहा.