सुभाष चन्द्र बॉस की मौत 1945 में विमान दुर्घटना में हुई थी

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सुभाष चंद्र बोस की 18 अगस्त 1945 को ताइपे में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. नेताजी के रहस्यमय तरीके से गायब होने को लेकर विवाद के बीच एक कैबिनेट नोट में 50 साल बाद यह जानकारी सार्वजनिक की गई है.हालांकि, विमान दुर्घटना के पांच दिन बाद ब्रिटिश राज के एक शीर्ष अधिकारी ने नेताजी के खिलाफ युद्ध अपराधी के तौर पर मुकदमा चलाने के नफा-नुकसान का आकलन किया था और सुझाया था कि सबसे आसान तरीका यह होगा कि वह जहां हैं उन्हें वहीं छोड़ दिया जाए और उनकी रिहाई की मांग नहीं की जाए.

यह संकेत देता है कि वह तब जिंदा रहे हो सकते हैं. ये बातें उन दस्तावेजों से सामने आई हैं जो 100 गोपनीय फाइलों का हिस्सा हैं. ये फाइलें 16 हजार 600 पन्ने में हैं और इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को दिल्ली में नेताजी की 119 वीं जयंती पर सार्वजनिक किया.घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मांग की कि बोस को ‘राष्ट्र नेता’ का खिताब दिया जाना चाहिए और कहा कि देश को उनके रहस्यमय तरीके से गायब होने की सच्चाई के बारे में जानने का हक है.

बनर्जी ने दार्जिलिंग में एक कार्यक्रम में कहा, ‘‘देश को नेताजी को क्या हुआ इसके बारे में जानने का अधिकार है. 75 साल पहले नेताजी ने देश छोड़ा लेकिन हम अब भी उनके लापता होने के बारे में तथ्य को नहीं जानते. लोगों को सच्चाई जानने का अधिकार है.’’दिल्ली में कांग्रेस ने बोस से संबंधित सभी फाइलों को सार्वजनिक करने की जोरदार वकालत की लेकिन कहा कि जिस तरीके से प्रधानमंत्री ने यह काम किया है वह उनकी मंशा के बारे में संदेह पैदा करता है.

पार्टी के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा, ‘‘कांग्रेस ने पहले ही कहा है कि वह चाहेगी कि सभी फाइलें सार्वजनिक हों, क्योंकि विवाद पैदा करने और शरारतपूर्ण राजनीतिक अभियान के जरिए देश की जनता को गुमराह करने के प्रयास किए जा रहे हैं.’’जिन दस्तावेजों को सार्वजनिक किया गया है उनमें छह फरवरी 1995 का एक कैबिनेट नोट है, जिसपर तत्कालीन गृह सचिव के पद्मनाभैया का हस्ताक्षर हैं.

उसमें कहा गया है, ‘‘इस बात के लिए तनिक भी संदेह की गुंजाइश नहीं है कि उनकी 18 अगस्त 1945 को ताईहोकू में विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. भारत सरकार ने पहले ही इस रख को स्वीकार कर लिया है. इसका खंडन करने के लिए कोई सबूत नहीं है.’’नोट में आगे कहा गया है, ‘‘अगर कुछ व्यक्ति, संगठन अलग राय रखते हैं तो ऐसा लगता है कि वे किसी तर्कसंगत सोच की बजाय भावनात्मक तौर पर अधिक प्रेरित हैं.’’   नोट में कहा गया है, ‘‘ऐसे लोगों का यह मानना कि नेताजी जीवित हैं और किसी के भी संपर्क में नहीं हैं, और जरूरत पड़ने पर सामने आएंगे, इसने अब तक अपनी प्रासंगिकता खो दी है.’’

यह कैबिनेट नोट सरकार के लिए तैयार किया गया था ताकि वह जापान से नेताजी की अस्थियां भारत ला सके. नेताजी की अस्थियों को तोक्यो में बोस अकादमी में रखा गया था.’’ताइपे में ताइहोकू एयरोड्रम पर विमान दुर्घटना के पांच दिन बाद लिखे गए दस्तावेज में क्लीमेंट एटली सरकार के भारत कार्यालय के गृह सदस्य सर आर एफ मूडी ने गृह सचिव और पंजाब के आखिरी गवर्नर सर इवान जेनकिन्स को लिखा जिसमें कैसे बोस को युद्ध अपराधी माना जाए इसके नफा-नुकसान और भारत में इसके संभावित प्रभाव का आकलन किया गया है.

मूडी ने एक पत्र और 23 अगस्त 1945 के नोट में कहा है, ‘‘कई तरीके से सबसे आसान रास्ता यह होगा कि उन्हें वहीं रहने दिया जाए जहां वह हैं और उनकी रिहाई की मांग नहीं की जाए. कुछ परिस्थितियों में निश्चित तौर पर हो सकता है कि रूसियों ने उनका स्वागत किया हो.’’    उन्होंने कहा, ‘‘यह रास्ता कुछ तात्कालिक राजनैतिक मुश्किलें पैदा करेगा, लेकिन सुरक्षा अधिकारी सोचते हैं कि कुछ निश्चित परिस्थितियों में रूस में उनकी मौजूदगी इतनी खतरनाक होगी जिसे नकारा नहीं जा सकता.’’ 

जो दस्तावेज आज जारी किए गए उसमें सरकार और विभिन्न आधिकारिक एजेंसियों के बीच कई पत्राचार भी शामिल हैं. दिवंगत सांसद समर गुहा ने दावा किया था कि बोस ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति मोहम्मद अयूब खान द्वारा सोवियत प्रधानमंत्री एलेक्सी कोसीगिन की मौजूदगी में 10 जनवरी 1966 को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद रेडियो मॉस्को पर भाषण दिया था.

गुहा और कई सांसदों ने यह मामला संसद में भी उठाया था जिसमें भारतीय और पश्चिमी प्रेस की खबरों को उद्धृत किया गया था.  इन दस्तावेजों को राष्ट्रीय अभिलेखागार में एक अलग वेबसाइट पर डिजिटल डिस्प्ले के लिए रखा गया है. अभिलेखागार की बोस पर 25 गोपनीय फाइलों की डिजिटल प्रतियां प्रतिमाह सार्वजनिक करने की भी योजना है. जिन दस्तावेजों को आज सार्वजनिक किया गया उसमें 36 फाइलें प्रधानमंत्री कार्यालय, 18 फाइलें गृह मंत्रालय और 46 फाइलें विदेश मंत्रालय से संबंधित हैं.

ये फाइलें 1956 से 2013 के बीच की अवधि की हैं. इन दस्तावेज में नेताजी की मौत या उनके लापता होने, इसकी जांच के लिए गठित तीन आयोगों की रिपोर्ट, आजाद हिंद फौज से संबंधित दस्तावेज, आईएनए खजाना, सांसदों और परिवार के सदस्यों के पत्र और विभिन्न अदालती मामलों से संबंधित कागजात शामिल हैं. उनमें से अनेक में स्वतंत्रता सेनानी के आखिरी दिनों के बारे में स्पष्टता की मांग की गई है.

अपने पत्र में मूडी ने कहा कि विभिन्न विकल्प—इसमें भारत या बर्मा (अब म्यांमार) या मलाया (मलेशिया) में युद्ध छेड़ने के लिए बोस के खिलाफ मुकदमा चलाने से लेकर उन्हें ब्रिटिश कब्जे वाले कुछ अन्य क्षेत्रों यथा सेशल्स द्वीप में नजरबंद रखने पर भी विचार किया गया था.

हालांकि, उन्होंने विश्लेषण किया कि इसका भारत और विदेश में भारतीयों पर काफी चरम प्रभाव होगा और उनके मुकदमे की स्थिति में काफी अशांत स्थिति पैदा होने की चेतावनी दी और अंतत: सुझाव दिया कि बोस को नजर से दूर रखना कुछ हद तक ठीक रहेगा और उनकी रिहाई के लिए आंदोलन कम हो सकता है.

उनका पत्र जेनकिन्स द्वारा मूडी को लिखे गए पत्र के जवाब में था. उसमें कहा गया था कि महामहिम राजा चाहेंगे कि बोस, आजाद हिंद फौज के उनके सैनिकों और देशभर में उनके असैन्य समर्थकों से कैसे निपटा जाए इसका वह विश्लेषण करें और उन्हें सलाह दें.उधर, आम आदमी पार्टी ने नेताजी से संबंधित फाइलों के मनमाने तरीके से सार्वजनिक करने की बजाय मांग की कि सरकार को फाइलों के सार्वजनिक करने की प्रक्रिया को सांस्थानिक रूप देना चाहिए ताकि देश सच्चाई जाने और इसपर कोई राजनीति नहीं हो.

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