खूब बिकी किशोरी वो तो नोएडा वाली आरूषि थी !

सिर्फ मरा हाथी ही सवा लाख का नहीं होता। यहां तो मासूम किशोरी आरूषि मरने के बाद मीडिया के लिए करोड़ों की साबित हुई है। धंधा बन चुकी और टीआरपी की गुलाम मीडिया ने जैसे चाहा, आरूषि को वैसे बेचा। किसी ने ‘पापा का पाप’ कहकर बेचा तो किसी ने ‘पापा तूने क्यों मारा’ कहकर। किसी ने उसे ‘मासूम’ करार दिया तो किसी ने ‘आज की आधुनिक लड़की’, जिसे माता-पिता भी नहीं समझ सके। तरह तरह से, पचासों एंगल से उसे बेचा।

बेवजह देश की सबसे बड़ी मिस्ट्री करार दिया। बेचने के कई तरीके खोजे। और जिस भाषा में, जिस दिमाग से बेचना चाहा, बेचा। इलेक्ट्रानिक ही नहीं, प्रिंट ने भी बेचा। पूरा-पूरा पेज बेचा। स्पेशल निकालकर बेचा। हर अखबार ने कम से कम तीन-तीन सौ बार आरूषि पर रिपोर्टें छापी। केस की हर हरकत पर अपने नजरिये से कुछ भी लिखा। मर्डर मिस्ट्री पर बांगडू से बांगडू रिपोटर्र ने अपनी-अपनी थ्योरी दी, जिसे वह रिपोर्टर अकाट सत्य मानकर जी रहा है और दावा कर रहा है कि पुलिस या सीबीआई उस पर काम कर दे तो केस मिनटों में खुल जाए। छोटे से छोटा अखबार भी बड़ी से बड़ी थ्योरियां दे रहा है, लगातार अपनी मनमर्जी से क्योंकि आरूषि बिक रही है और मीडिया ने उसे ऐसा बना दिया है।

हाल ही के दिनों में आरूषि का जिन्न फिर जिन्दा हुआ है। पहले कुछ दिनों तक उसकी स्लाइड हैदराबाद में झूठी साबित होने की खबर बिकी, अब उसका मोबाइल मिलने से हड़कंप मचा है। फिर सारी पुरानी क्लिपें बिकने लगीं। फिर घंटों वाचक स्टूडियों में बकने लगे हैं। आरूषि आरूषि आरूषि। जिस रात मोबाइल मिलने की सूचना आई, कई चैनलों ने अपनी ओवी वैन खुर्जा भेज दी। रात भर मीडिया मैन घूमते रहे। प्रिंट को भी चैन नहीं। रातों रात लिख डाला। फिर पुरानी फाइलें काम आईं। आरूषि फिर अखबारों के पहले पन्ने पर छपी और चैनलों पर घंटों दिखी।

सीबीआई ने छोड़ा तो मोबाइल वाली कुसुम को एक चैनल ने सुबह ही बिठा लिया। देखिए तमाशा। सवाल पर सवाल। सवाल पांच मिनट में खत्म। वही सवाल फिर से। कुसुम उनका जवाब पांच-पांच बार दे चुकी है। फिर से वही सवाल। आखिर समय खीचना है। आरूषि बिक रही है और उसे बेचना है। कुसुम एक ही तरह के सवालों का जवाब बार-बार देकर खीझ रही है। लेकिन गरीब है। कुछ विरोध नहीं कर पा रही है। जो नहीं कहना चाहती, चैनल वाले उगलवाना चाहते हैं। कश्मकश है।
अजीब है ये दुनिया, जहां सिर्फ छाने की हसरत लिए टीआरपी का बोलबाला है। गुलाम, जहां सोचने समझने की शक्ति का रास्ता सिर्फ विज्ञापन से होकर गुजराता है। जहां समाज और सरोकार मर गए। मार दिए हैं। फिर भी दंभ है चौथे स्तंभ का। समाज को आईना दिखाने का। सोचता हूं अगर सच में आरूषि का भूत आकर उसे बेचने के तरीकों पर सवाल करे या मानहानि का दावा करे तो मीडिया सलाखों के पीछे हो। बेचने की चाहत में कुसुम और रामभूले ने भी देश को, चैनलों के स्टूडियों के माध्यम से संबोधित कर डाला। आरूषि के प्रति आम लोगों में क्या है, क्या नहीं, कहा नहीं जा सकता। लेकिन मीडिया के लिए आरूषि इतिहास बन गई। मीडिया ने इतना बेचा की उसका हर रिपोर्टर और संस्थान का मालिक उसे हमेशा याद रखेगा। और यह पंक्तियां दोहराएगा…खूब बिकी किशोरी वह तो नोएडा वाली आरूषि थी।

अफसोस हर्ष के साथ।

 

इंडिया हल्ला बोल

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