पाकिस्तान ने अमेरिका से कहा था कि वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कश्मीर का मुद्दा नहीं उठाएगा। उसने यह भी स्वीकार किया था कि भारत के साथ कई दशक पुराने इस मुद्दे को सुलझाने में इससे कोई मदद नहीं मिलेगी। यह तब की बात है जब जनरल परवेज मुशर्रफ सत्ता में थे। हाल में सार्वजनिक हुई एक अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट से यह बात सामने आई है।27 मई 2000 को जब राजनीतिक मामलों के अमेरिकी उप विदेश मंत्री थॉमस पिकरिंग की पाकिस्तान के विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार से अकेले में बातचीत हुई उसके बाद पाकिस्तान स्थित अमेरिकी दूतावास ने यह गुप्त रिपोर्ट भेजी थी।
इसमें कहा गया था, उन्होंने (विदेश मंत्री अब्दुल सत्तार) ने कहा है, ‘पाकिस्तान जानबूझकर संयुक्त राष्ट्र के 1940 के प्रस्तावों पर चुप रहेगा क्योंकि उन पर जोर देना लाभदायक नहीं होगा।’इस संदेश को बहुत अधिक संपादित करके सूचना की स्वतंत्रता कानून के तहत विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर डाला गया है। इसमें तत्कालीन वाजपेयी सरकार द्वारा कश्मीर मुद्दे को सुलझाने के लिए किए जा रहे प्रयासों का उल्लेख किया गया है।
इसमें कहा गया है कि दो घंटे तक चली उस बातचीत में पिकरिंग को सत्तार से यह कहते सुना गया कि कश्मीर में हिंसा कम करने का दायित्व पाकिस्तान पर है। इससे सत्तार भी सहमत थे। बातचीत में कश्मीरियों को शामिल करने के मुद्दे पर सत्तार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया जताई थी। सत्तार लद्दाख और जम्मू में बौद्धों और हिंदुओं को शामिल करने को लेकर उलझन में थे। उन्होंने कहा था कि वह व्यक्तिगत तौर पर इससे सहमत हैं कि सरकार हुर्रियत नेताओं को पाकिस्तान के बगैर भारत से बातचीत के लिए कहे।