रानिल विक्रमसिंघे गुरुवार को श्रीलंका के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण करेंगे.आम चुनाव में कांटे की टक्कर के बाद पार्टी को मिली जीत के दम पर विक्रमसिंघे चौथी बार इस पद की शपथ लेने वाले हैं.विक्रमसिंघे के यूनाइटेड नेशनल पार्टी गठबंधन ने सोमवार को हुए संसदीय चुनाव में 106 सीटें जीतीं, जो 225 सदस्यीय सदन में बहुमत से सिर्फ सात ही कम हैं. यह संख्याबल सरकार बनाने के लिए पर्याप्त है.
पूर्व वित्त मंत्री रवि करूणानायके ने कहा, ‘‘इसके बाद हम मंत्रिमंडल का भी गठन करेंगे.’’वह राजपक्षे के यूनाइटेड पीपल्स फ्रीडम अलायंस से बहुमत के लिए समर्थन हासिल करने के बारे में आश्वस्त हैं. यूपीफए के पास 95 सीटें हैं. अल्पसंख्यक तमिल नेशनल अलायंस ने तमिल बहुल उत्तरी और पूर्वी प्रांतों में 16 सीटें हासिल कीं.जनवरी में लंबे समय से राष्ट्रपति पद पर आसीन महिंदा राजपक्षे को हटाए जाने के बाद 66 वर्षीय इस वरिष्ठ सुधारक को राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना ने अल्पमत की सरकार चलाने के लिए चुना था.
सिरीसेना के समर्थकों का एक समूह विक्रमसिंघे के नेतृत्व वाली और व्यापक आधार वाली राष्ट्रीय एकता सरकार से जुड़ सकता है.विक्रमसिंघे मई 1993 में पहली बार उस समय प्रधानमंत्री बने थे, जब एक आत्मघाती बम हमलावर ने राष्ट्रपति राणासिंघे प्रेमदासा की हत्या कर दी थी. दूसरी बार वह वर्ष 2002 में प्रधानमंत्री बने. उस समय उन्हें देश को मंदी से बाहर निकालने का श्रेय दिया गया था.एक जनसभा को संबोधित करते हुए बुधवार को विक्रमसिंघे ने कहा कि वह संसदीय चुनाव में मिले सुशासन के जनादेश का पालन करते रहेंगे और दो-तीन साल तक एक राष्ट्रीय सरकार के लिए सभी दलों के साथ मिलकर काम करेंगे.
जनवरी में हुए राष्ट्रपति चुनावों में पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे की हार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘17 अगस्त के संसदीय चुनाव आठ जनवरी की क्रांति की पुष्टि करते हैं. हम पीछे नहीं हट सकते.’’श्रीलंका के पहले कार्यकारी राष्ट्रपति के भतीजे विक्रमसिंघे ने कहा कि वह नई सरकार की राष्ट्रीय नीति पर एक आम सहमति बनाएंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘हमें अपनी योजना को संसद के समक्ष रखने का जनादेश मिला है ताकि हम एक आम सहमति पर पहुंच सकें और अपनी नीति के लिए एक राष्ट्रीय रूपरेखा तैयार कर सकें.’’उन्होंने कहा, ‘‘इस नए तरीके से काम करने के लिए सभी दलों का एकसाथ मिलकर काम करना जरूरी है फिर चाहे वे सरकार में मंत्री पदों पर हों या संसद में निरीक्षण समितियों में.’’
उन्होंने कहा कि विकेन्द्रित विकास के लिए सांसदों की अध्यक्षता में जिला विकास समन्वय बोर्ड भी होंगे. ऐसी संस्थाएं भी होंगी, जिनमें नेता नहीं बल्कि नागरिक समाज के लोग होंगे. इन ‘ग्राम राज्य’ समितियों में गांवों का समूह होगा. इसके अलावा परामर्श परिषदों में नागरिक समाज के लोग होंगे.