दिल्ली में राकेश अस्थाना की नियुक्ति से एक्टिविस्ट लुटियंस गैंग आया दहशत में

10 साल तक के तमाम घटनाक्रमों पर नजर डाली जाए तो साफ-साफ पता चलता है कि लुटियन्स गैंग से प्रधानमंत्री कार्यालय सहित तमाम बड़ी जगहों पर बैठे लोग भय खाते रहे हैं।लुटियन्स गैंग सुप्रीम कोर्ट पर अपनी गहरी पकड़ और अपने एक्टिविज्म के चलते नरेंद्र मोदी सरकार से पहले प्रधानमंत्री कार्यालय, डायरेक्टर सीबीआई या डायरेक्टर ईडी जैसी बड़ी जगहों पर बैठे लोगों को कंट्रोल कर लेता था और परदे के पीछे से रिमोट कंट्रोल के जरिए तमाम नियुक्तियों समेत बड़े निर्णयों को प्रभावित करता था।

लेकिन केंद्र में मोदी सरकार आने के बाद से तथाकथित एक्टिविस्ट लुटियन्स गैंग का हुक्का-पानी पूरी तरह से बंद हो गया। ऐसे में राकेश अस्थाना जैसे सशक्त, प्रभावी एवं कुशल प्रशासक को किसी बड़ी और महत्वपूर्ण जगह नियुक्त करने की जब-जब चर्चा शुरू हुई, तो उन्हें रोकने के लिए लुटियन्स गैंग ने धरती-आसमान एक कर दिया।

तमाम झंझावातों एवं आरोपों-प्रत्यारोपों को झेलते हुए जब एक बार पुन: राकेश अस्थाना को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देते हुए दिल्ली पुलिस का कमिश्नर नियुक्त किया गया, तब लुटियन्स गैंग ने एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट को जरिया बनाकर प्रहार करने की कोशिश की है।

सवाल यह उठता है कि देश में मुंबई पुलिस कमिश्नर, बेंगलुरु  पुलिस कमिश्नर, हैदराबाद पुलिस कमिश्नर समेत समय-समय पर कई ऐसे अधिकारी हैं, जो डीजी रैंक पर प्रोन्नत होने के बाद भी पुलिस कमिश्नर बने, तब किसी के भी पेट में दर्द नहीं हुआ।

दिल्ली में साल 2010 से लेकर 26 जुलाई 2021 तक करीब आधा दर्जन पुलिस कमिश्नर बदले, जो डीजी रैंक के थे। तब किसी लुटियन्स गैंग को पीआईएल का खयाल नहीं आया। लेकिन जब राकेश अस्थाना को पुलिस कमिश्नर बनाया गया, तो लुटियन्स गैंग और खान मार्केट गैंग में मातम-सा छा गया।

कारण एक ही है कि राकेश अस्थाना न तो लुटियन्स गैंग से और न खान मार्केट गैंग से डरते हैं और न उनको मिलने का वक्त देते हैं।इसके पहले भी इस तरह की साजिशें राकेश अस्थाना के खिलाफ रची गई हैं, लेकिन इन साजिशों में शामिल सभी अधिकारी न सिर्फ  बेनकाब हो गए, बल्कि उनकी काली करतूतों की सजा भी उन्हें मिल गई।

नौकरशाही में सेवानिवृत्ति के बाद किसी भी अधिकारी का ‘डाइस नॉन’ घोषित किया जाना, उसके लिए उसके सेवाकाल का शून्य हो जाना है। इन अथरे में ऐसी कार्रवाई किसी अधिकारी को सरकार द्वारा दिया गया सबसे गंभीर दंड है।

अपनी करतूतों को लेकर पूरी तरह से बेनकाब हो चुके लुटियन्स गैंग ने इससे पहले भी राकेश अस्थाना को प्रमोशन न मिल पाए, वो सीबीआई के निदेशक न बन पाएं, इसके लिए तमाम तरह की कहानियां न सिर्फ  मीडिया में प्लांट कीं, बल्कि अपने राजनीतिक एवं कानूनी साझेदारों के जरिए भी गंभीरतम आरोप लगवाए।

आरोप बेबुनियाद थे, गलत इरादे से गढ़े गए थे, लिहाजा ये आरोप बहुत जल्द सच की कसौटी और अदालत की दहलीज पर मुंह के बल गिर पड़े।कहना न होगा कि प्रशासनिक ढांचे में जब तक आमूल-चूल परिवर्तन न हो जाए, राकेश अस्थाना जैसे ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ एवं अपने दायित्वों के लिए प्रतिबद्ध अधिकारी का लगातार प्रताड़ित होते रहना नियति है।

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