कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर आज करवा चौथ मनाई जाती है. आज का दिन सुहागिन महिलाओं का है. आज के दिन महिलाएं पति की लंबी उमर् के लिए व्रत रखती हैं. दिनभर निर्जल उपवास के बाद शाम को चंद्रमा की पूजा करने बाद व्रत का पारण होता है. करवा चौथ की तिथि और शुभ मुहूर्त हम आपको सब बताएंगे लेकिन इससे पहले करवा चौथ की कथा के बारे में जान लेते हैं.
पुराणों के सुनहरे पन्नों में भी करवा चौथ की कथा और इस व्रत का महत्व मिलता है. कहते हैं महाभारत युद्ध में विजय पाने के लिए अर्जुन ने नीलगिर पर्वत पर तपस्या की. उनकी तपस्या में कोई विघ्न न आए और अर्जुन दीर्घायु हों इसलिए द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत रखा था. इस व्रत के महात्म्य के बारे में द्रौपदी को स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने बताया था.
कृष्ण जी ने कथा सुनाते हुए कहा था कि पूर्ण श्रद्धा और विधि-पूर्वक इस व्रत को करने से पति और पत्नी के जीवन के समस्त दुख दूर हो जाते हैं. उन्हें जीवन भर सुख-सौभाग्य तथा धन-धान्य की प्राप्ति होती है. वैसे तो करवा चौथ की कई कथाएं आपको सुनने को मिलेंगी लेकिन वीरावती की कथा सबसे अधिक प्रचलित है.
वीरावती की कथा :- एक राजा के सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री थी. सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह हो गया. विवाह के बाद वीरावती मायके आई तो उसने अपनी भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वो भूख से व्याकुल हो उठी.
वीरावती की ये हालत भाइयों से देखी नहीं गई तब एक भाई ने पेड़ पर दीपक जलाकर छलनी की ओट में रखकर कहा कि बहन चांद निकल आया है, तुम अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो.वीरावती ने खुशी से चांद देखकर अर्घ्य दिया और खाना थाने बैठ गई.
जैसे ही उसने पहला निवाला मुंह में डाला तो उसे छींक आ गई, दूसरे निवाले में बाल निकला और जैसे ही उसने तीसरा निवाला मुंह में डाला तो पति की मृत्यु का समाचार उसे मिला. यह सुनते ही वो तुरंत अपने ससुराल के लिए रवाना हो गयी. रास्ते में उसकी भेंट भगवान शिव और माता पार्वती से हुई.
मां पार्वती ने उसे बताया कि उसके पति की मृत्यु का कारण वह स्वयं है. जब उसे पूरी बात पता चली तो उसने मां पार्वती से अपने भाइयों की भूल के लिए क्षमा याचना की.यह देख माता पार्वती ने वीरावती से कहा कि उसका पति पुनः जीवित हो सकता है यदि वह सम्पूर्ण विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत करे.
इसके बाद मां की बताई विधि का पालन कर वीरावती ने करवा चौथ का व्रत संपन्न किया और अपने पति को फिर से प्राप्त किया तब से आज तक सुहागिन महिलाएं इसी कथा के साथ करवा चौथ का व्रत करती हैं. कुछ जगहों पर कुंवारी कन्याएं मनचाहे वर की कामना से भी इस व्रत को करती हैं.करवा चौथ की कथा तो आपने सुन ली अब आपको बताते हैं अखंड सौभाग्य व्रत का विधि विधान.
करवा चौथ पूजा विधि :- करवा चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके सूर्यादय से पहले सरगी खाएं और दिन भर निर्जल व्रत रखें. दीवार पर गेरू और चावल के घोल से करवा का चित्र बनाएं. माता पार्वती की प्रतिमा लकड़ी के आसान पर विराजमान करें. माता को सुहाग की पिटारी अर्पित करें.
इसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें और रोली से करवा पर स्वास्तिक बनाएं. गौरी-गणेश और चित्रित करवा की पूजा करते हुए पति की लंबी उम्र के लिए शिव-पार्वती को ध्यान करें. करवा चौथ की कथा सुनें और कथा सुनने के बाद सभी बड़ों का आशीर्वाद लें. रात को चांद निकलने पर चांद को अर्घ्य दिया जाता है.
छलनी की ओट से पति को देखकर चंद्रमा से जिंदगी भर साथ रहने की कामना की जाती है इसके बाद पति के हाथों से जल पीकर व्रत का पारण कर पति पत्नी साथ बैठकर भोजन करते हैं.
शुभ मुहूर्त :- इस बार करवा चौथ पर चंद्रमा, माता पार्वती के साथ-साथ भगवान शिव का भी आशीर्वाद मिलेगा. पूरे दिन शिव योग बन रहा है. सर्वार्थसिद्धि और अमृतसिद्धि योग भी बनेंगे. हिंदू पंचाग के मुताबिक आज दिन में 3 बजे तक तीज रहेगी. इसके बाद चतुर्दशी लग जायेगी. शाम को 5.30 बजे से 6.48 तक पूजा का शुभ मुहूर्त है. 8.15 पर चंद्रमा को अर्घ्य देना शुभ होगा.