तीन तलाक से जुड़ा नया विधेयक करीब 5 घंटे चली चर्चा के बाद लोकसभा से पारित हो गया। विधेयक के पक्ष में 245 और विरोध में 11 वोट पड़े। वोटिंग के दौरान कांग्रेस, अन्नाद्रमुक, द्रमुक और सपा के सदस्यों ने वॉकआउट कर दिया। अब यह विधेयक राज्यसभा में भेजा जाएगा।
सरकार 8 जनवरी तक चलने वाले शीतसत्र में ही इसे पारित कराना चाहती है। इसी साल सितंबर में तीन तलाक पर अध्यादेश जारी किया गया था।इससे पहले सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने बिल को ज्वाइंट सिलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की। वहीं, एआईएमआईएम के असदउद्दीन ओवैसी और कांग्रेस की दो सांसद सुष्मिता देव और रंजीत रंजन ने तीन तलाक देने के दोषी को जेल भेजे जाने के प्रावधान का विरोध किया।
चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि जब पाकिस्तान, बांग्लादेश समेत 22 इस्लामिक देशों ने तीन तलाक को गैर-कानूनी करार दिया है तो भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में तीन तलाक को अपराध मानने में क्या परेशानी है? महिला सशक्तिकरण के लिए यह बिल जरूरी है।
चर्चा का जवाब देते हुए विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि एफआईआर का दुरुपयोग न हो, समझाैते का माध्यम हो और जमानत का प्रावधान हो, विपक्ष की मांग पर ये सभी बदलाव बिल में किए जा चुके हैं। यह बिल किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है।
जब यह संसद बच्चियों से दुष्कर्म करने वालों के लिए फांसी की सजा पर मुहर लगा चुकी है तो यही संसद तीन तलाक को खत्म करने की आवाज क्यों नहीं उठा सकती? दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा जैसे कानूनों में भी सजा का प्रावधान है। उस पर इस सदन ने विरोध नहीं किया। फिर तीन तलाक के मामले में विरोध क्यों हो रहा है?
पीड़ित महिला को सम्मान देने के लिए ही हमने मजिस्ट्रेट की सुनवाई के बाद जमानत का प्रावधान दिया है। यह भी कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने कानून बनाने को नहीं कहा था। जबकि हकीकत यह है कि जजमेंट में पांच जज थे। तीन जज कह चुके हैं कि तीन तलाक असंवैधानिक है।
जस्टिस खेहर ने कहा था कि कानून बनना चाहिए। जनवरी 2017 से सितंबर 2018 तक तीन तलाक के 430 मामले सामने आए थे। इनमें 229 मामले सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले और 201 केस उसके बाद के हैं।सरकार ने तीन तलाक को अपराध करार देने के लिए सितंबर में अध्यादेश जारी किया था।
इसकी अवधि 6 महीने की होती है। लेकिन अगर इस दरमियान संसद सत्र आ जाए तो सत्र शुरू होने से 42 दिन के भीतर अध्यादेश को बिल से रिप्लेस करना होता है। मौजूदा संसद सत्र 8 जनवरी तक चलेगा। अगर इस बार भी बिल राज्यसभा में अटक जाता है तो सरकार काे दोबारा अध्यादेश लाना पड़ेगा।