सेक्स एजुकेशन- कितनी कारगर..?

देश की राजधानी में गैंगरेप के बाद जस्टिस जे एस वर्मा समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की है कि स्कूली पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल किया जाए ताकि बच्चों को सही गलत जैसे व्यवहार और आपसी संबंधों के बारे में जानकारी हो।

सिफारिशों पर गौर करते हुए केन्द्रीय मानव संसाधन एवं विकास मंत्री एम एल पल्लम राजू ने इन सिफारिशों पर सभी राज्यों से बातचीत के बाद इसे अमल में लाने के संकेत भी दिए हैं लेकिन स्कूली पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल करने को लेकर सवालों की फेरहिस्त काफी लंबी है। मसलन यौन अपराधों पर लगाम कसने के लिए सेक्स एजुकेशन कहां तक सही है…?

सेक्स भारत जैसे देश के लिहाज से आज भी एक तरह से सामान्य बातचीत में न होते हुए भी एक वर्जित शब्द की तरह है और लोग इस पर बात करने से चर्चा करने में संकोच करते हैं..! आज भी देश की बड़ी आबादी ऐसी है जिन्हें इस विषय पर बात करना किसी अपराध करने की तरह लगता है शायद यही वजह है कि स्कूली पाठ्यक्रम में यौन शिक्षा को शामिल करने को लेकर इसके विरोधियों की तादाद अधिक है जबकि शहरीकरण की जद में आए खुले विचारों के लोग या कहें कि बुद्धिजीवी वर्ग इसके पक्ष में दिखाई देते हैं।

जहां तक बात है कि क्या वाकई में सेक्स एजुकेशन से यौन अपराधों में नकेल कस पाएगी तो ये थोड़ा मुश्किल सवाल लगता है क्योंकि जब तक अपराध करने वाले की सोच में मानसिकता में बदलाव नहीं आएगा इस पर रोक लग पाना संभव नहीं लगता।

हां, इसका इतना फायदा जरूर हो सकता है कि जानकारी के अभाव में जो मामले अब तक सामने नहीं आ पाते थे उन पर से पर्दा हटने में इससे मदद मिलेगी। जो शायद एक वजह बन सकती है कि अपराधी अगर बेनकाब होगा तो वो दोबारा किसी के साथ ऐसी हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा क्योंकि यौन अपराध के पीड़ित की चुप्पी कहीं न कहीं अपराधी का हौसला बढ़ाती हैं। जानकारी होने के बाद जब ज्यादा से ज्यादा मामलों पर से पर्दा हटेगा तो शुरुआत में ऐसा दिखाई देगा कि यौन अपराध के मामले बढ़े हैं। कुल मिलाकर दूरदर्शी परिणाम सकारात्मक होंगे और कुछ हद तक इस पर लगाम कसी जा सकेगी हालांकि सोच और मानसिकता का पैमाना यहां पर भी लागू होता है।

जहां तक सवाल है कि क्या सेक्स एजुकेशन के जरिए भटकते युवा सही मार्ग पर आ सकते हैं तो मुझे नहीं लगता कि सिर्फ सेक्स एजुकेशन से युवाओं का भटकाव कम होगा या खत्म हो जाएगा क्योंकि सेक्स एजुकेशन के साथ ही युवा किस माहौल में…किस परिवेश में रह रहे हैं ये फेक्टर भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं।

तेजी से बदलते सामाजिक परिवेश में यौन शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम से ज्यादा दिन तक दूर रखना आसान नहीं है…देर सबरे इसे स्कूली पाठ्यक्रम में शमिल करना ही पड़ेगा लेकिन सरकार सिर्फ सेक्स एजुकेशन के लॉलीपाप से महिलाओं को दी जाने वाली सुरक्षा से जुड़ी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला नहीं झाड़ सकती। इसके साथ भी सरकार को महिलाओं की सुरक्षा को लेकर संजीदगी से कदम उठाने ही होंगे।

ऐसे नहीं है कि महिलाओं के प्रति अपराधों  की रोकथाम के लिए सेक्स एजुकेशन ही एकमात्र रास्ता है क्योंकि अपराधों की रोकथाम के सबसे पहली चीज किसी पीड़ित के अंदर ये विश्वास जगाना ज्यादा महत्वपूर्ण है कि अगर वो अपना दर्द लेकर पुलिस के पास पहुंचती है तो वहां पर उसे अपमानजनक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ेगा। उसका मजाक नहीं बनाया जाएगा बल्कि प्राथमिक्ता के आधार पर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का न सिर्फ भरोसा मिलेगा बल्कि दोषियों के खिलाफ कार्रवाई भी होगी।

दीपक तिवारी

पत्रकार

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