वो तेरे नसीब की बारिशें, किसी और छत पे बरस गयीं…

लाल कृष्ण आडवाणी ने राजनाथ सिंह को लिखी इस्तीफे की अपनी चिट्ठी में न सिर्फ अपने दर्द को बयां किया बल्कि ये भी लिखा कि जिस पार्टी का ध्येय देश सेवा हुआ करता था वह पार्टी अब नेताओं के निजि हितों को पूरा करने का माध्यम बन गयी है।

ये बात जगजाहिर हो चुकी है कि आडवाणी को पार्टी का उनकी इच्छा के खिलाफ मोदी को चुनाव अभियान समिति का चेयरमैन बनाने के फैसले पर आपत्ति है लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आडवाणी खुलकर इस बात को क्यों नहीं कहते कि उन्हें पीएम पद के उम्मीदवार के तौर पर हो रही मोदी की ताजपोशी की तैयारी से दिक्कत है और वे खुद एक बार फिर से पीएम पद के उम्मीदवार बनना चाहते हैं..?

पार्टी में गिने चुने नेताओं को छोड़ दें तो कोई भी इस बात को कहने वाला नहीं है कि आडवाणी 2014 के लिए भाजपा के पीएम पद के उम्मीदवार हों..! आडवाणी मोदी के बढ़ते कद से तो नाराज़ हैं लेकिन खुद न तो इस बात को कह रहे है कि मोदी को पीएम पद का उम्मीदवार न बनाया जाए और न ही ये कि पीएम पद की उम्मीदवार वे खुद बनना चाहते हैं..!

माना कि आडवाणी खुद पीएम पद का उम्मीदवार नहीं बनना चाहते तो फिर वे विकल्प सुझाएं न…वे क्यों नहीं अपनी दिल की पूरी बात कहते कि फलां नेता के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाए और फलां नेता को ही पीएम पद का उम्मीदवार बनाया जाए..?

जाहिर है आडवाणी कि खुद की इच्छा है कि वे पीएम पद के उम्मीदवार बनें और शायद इसलिए ही मोदी की चुनाव अभियान समिति के चेयरमैन पद पर ताजपोशी से आडवाणी को ये आभास हो गया है कि अब मोदी पीएम पद के उम्मीदवार की दौड़ में उनसे कहीं आगे निकल गए हैं..! ऐसे में आडवाणी ने पार्टी में उनकी एक न सुनी जाने पर पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा देकर पार्टी के काम काज के तरीके और औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया..!

राजनीति भी गजब है जिस पार्टी को खड़ा करने में आडवाणी ने अपना पूरा जीवन लगा दिया उस पार्टी की कार्यप्रणाली और दशा-दिशा पर अब आडवाणी खुद ही सवाल उठाने लगे हैं और खुद के साथ ही पार्टी की भी मिट्टी पलीत करने में लगी हैं।

आडवाणी जी ये कैसा आपका पार्टी प्रेम हैं…खुद के निजि हित पूरे होते नहीं दिखाई दे रहे तो पार्टी पर ही सवाल खड़ा कर दिया..! और बात कर रहे हैं कि पार्टी नेताओं के निजि हितों को पूरा करने का माध्यम बन गयी है।

जिस पार्टी के साथ आडवाणी ने अपना पूरा जीवन गुजार दिया उम्र के इस पड़ाव में आडवाणी उस पार्टी का दमन छोड़कर अलग पार्टी का गठन या किसी दूसरे दल में तो शामिल होंगे नहीं..! ताउम्र भाजपा के प्राथमिक सदस्य तो बने ही रहेंगे फिर भी अपनी पार्टी की मिट्टी पलीत करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं..!

यहां आडवाणी की बात पर गौर कीजिए…आडवाणी कहते हैं कि वे पार्टी के काम करने के तरीके और दशा दिशा से खुद को इसलिए नहीं जोड़ पा रहे हैं कि क्योंकि उन्हें लगता है कि भाजपा अब वो पार्टी नहीं रही जिसका ध्येय राष्ट्र व राष्ट्र के लोगों की सेवा हुआ करता ।

आडवाणी जी आप राष्ट्र सेवा की बात कर रहे हैं तो क्या सिर्फ पार्टी में रहकर या पीएम की कुर्सी पाकर ही राष्ट्र व राष्ट्र के लोगों की सेवा की जा सकती है..? क्या जो लोग किसी न किसी पार्टी के महत्वपूर्ण पदों पर बैठे हैं या पीएम जैसी कुर्सी पर बैठे हैं वे ही लोग राष्ट्र सेवा कर रहे हैं..?

जाहिर है राष्ट्र व राष्ट्र के लोगों की सेवा के लिए पार्टी या कुर्सी की जरुरत नहीं है बस सेवा करने का भाव दिल में होना चाहिए वरना जो लोग राजनीतिक दलों में बड़े पदों पर हैं या पीएम की कुर्सी पर बैठे हैं वे लोग कैसी देश सेवा कर रहे हैं ये तो देश बरसों से देखता आ रहा है..!

बहरहाल भाजपा में घमासान जारी है…लाल कृष्ण आडवाणी को इस्तीफा वापस लेने के लिए उन्हें मनाने की पूरी कोशिश की जा रही है ऐसे में देखना ये होगा कि आडवाणी के निजि हित पार्टी पर भारी पड़ेंगे या फिर आडवाणी भाजपा के लिए इतिहास हो जाएंगे। फिलहाल तो आडवाणी जी के लिए एक मशहूर शेर याद आ रही है-

वो तेरे नसीब की बारिशें, किसी और छत पर बरस गयीं

जो तुझे मिला उसे याद कर, जो न मिला उसे भूल जा

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